KBC में दिखेंगे दुर्ग के प्रो. DC: अमिताभ बच्चन की ऐसी दीवानगी की पहले भाई ने पीटा, फिर पुलिस के डंडे खाए... 21 साल बाद KBC में मिला मौका

2000 में जब केबीसी का पहला सीजन शुरू हुआ, तब से जाने की इच्छा थी। रात-रात भर टेलीफोन लगाते रहते थे। हॉट सीट पर बैठने का मौका नहीं मिला तो केबीसी का सेट देखने पहुंच गए थे।

Update: 2022-08-04 15:07 GMT

रायपुर। अमिताभ बच्चन के ढेरों दीवाने आपने देखें होंगे, लेकिन ऐसे कम ही होंगे, जो बचपन में घरवालों को बिना बताए 60 किलोमीटर दूर फिल्म देखने जाए। रातभर घर से बाहर रहे और अगले दिन घर लौटने पर मार खाए। इसके बाद पहला शो देखने के लिए उमड़ी भीड़ में पुलिस के डंडे खाए और एक कसम खाए कि आज के बाद यह फिल्म नहीं देखूंगा। आखिरकार अमिताभ बच्चन से रूबरू होने का मौका मिले। ऐसा किस्सा आपको देखने मिलेगा केबीसी के नए सीजन के 8 व 9 अगस्त को शो में। इसमें दुर्ग में गर्ल्स कॉलेज के प्रोफेसर दुलीचंद अग्रवाल (DC) नजर आएंगे। यह शो काफी रोमांचक जाने वाला है, क्योंकि आपको अमिताभ बच्चन के प्रति हद दर्जे की दीवानगी देखने को मिलेगी। अमिताभ से मिलने के लिए 21 साल की मेहनत नजर आएगी। छत्तीसगढ़ के बारे में बातें होंगी। खास बात यह है कि केबीसी की एक नई परिभाषा भी सुनने को मिलेगी। यह शो कितना रोचक होगा इसका अंदाजा ऐसे लगाएं कि अमिताभ बच्चन भी प्रो. अग्रवाल से प्रभावित हुए और अपने ब्लॉग में उनके बारे में लिखा। आगे पढ़ें, प्रो. अग्रवाल ने NPG.News से चर्चा में क्या-क्या अनुभव बताए...


टॉकीज के सामने पॉकेटमारी हुई तो अमिताभ ने ब्याज सहित लौटाए पैसे

प्रो. अग्रवाल मूलत: पिथौरा के हैं। 1975 में दीवार फिल्म देखने के लिए घर से भागकर महासमुंद चले गए थे। रात में लौटने का साधन नहीं मिला। पूरी रात घर के लोग तलाश करते रहे। जब वे घर पहुंचे तो पिटाई पड़ी। इसके बाद रायपुर पहुंचे। 1977 में दुर्गा कॉलेज में बी.कॉम में एडमिशन लिया। 1978 में मुकद्दर का सिकंदर मूवी लगी थी। फर्स्ट डे फर्स्ट शो के चक्कर में राज टॉकीज पहुंच गए। वहां इतनी भीड़ लगी थी कि धक्का-मुक्की देखकर पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया था। प्रो. अग्रवाल ने भी पुलिस के डंडे खाए। जेब में 10 रुपए थे, जो गायब थे। उसी समय यह प्रण लिया कि अब वे यह मूवी तभी देखेंगे, जब अमिताभ बच्चन उनके साथ मूवी देखेंगे। बस मन में यह लालसा दबी रही। जुलाई, 2000 में केबीसी का पहला सीजन आया। अगस्त में उन्हें इस शो के बारे में पता चला। तभी मन बना लिया कि अमिताभ से मिलने का यही जरिया है। तब से 21 साल तक तैयारी करते रहे। जब हॉट सीट पर पहुंचे तो अमिताभ बच्चन को यह किस्सा सुनाया। तब उन्होंने अपनी जेब से 20 रुपए निकाले। 10 रुपए मूलधन और 10 रुपए ब्याज दिया।

पत्नी कहती थी कि किस्मत खराब है, बहन मंदिर में मन्नत मांगती रही

प्रोफेसर अग्रवाल ने इकॉनामिक्स से एमए किया। वे उस समय रविशंकर यूनिवर्सिटी के सेकंड टॉपर थे। इसी के आधार पर 1982 में उनकी नौकरी लग गई। जीवन में सब कुछ सामान्य तरीके से चलता रहा, लेकिन अमिताभ बच्चन के लिए दीवानगी बनी रही। 2000 में जब केसीबी की शुरुआत हुई, तब 2008 तक टेलीफोन लाइन पर फोन करना होता था। अग्रवाल बताते हैं कि पहले उनकी पत्नी प्रो. शिखा अग्रवाल भी मदद करती थीं, लेकिन बाद में वे कहने लगीं कि उनकी किस्मत खराब है। हालांकि इस बीच प्रोफेसर की सिस्टर रमता मित्तल मंदिर जाती रहीं और भगवान से मन्नत मांगती रहीं। शो में पत्नी, बहन के साथ बेटे प्रसून जो कि हाईकोर्ट एडवोकेट हैं, उनकी फैमिली भी साथ थी।


अमिताभ बच्चन ने पूछा- क्या है दुलीचंद नाम का मतलब

प्रो. अग्रवाल का परिचय कराने के बाद अमिताभ बच्चन पूछते हैं कि उनके नाम दुलीचंद का मतलब क्या है। प्रोफेसर बताते हैं कि जब वे पैदा हुए उस समय उनके गांव में एक बड़े व्यापारी थे, जिनका नाम दुलीचंद था। जब पंडित ने जन्म के समय के अनुसार राशि का नाम देखा तो द दे दू अक्षर आए। उस समय घरवालों ने यह सोचकर दुलीचंद नाम रखा कि बड़े व्यापारी की तरह वे भी बड़े आदमी बनेंगे। हालांकि जब कॉलेज आए तो दोस्तों को यह नाम ऑड लगने लगा। इस बीच एक ने उन्हें डीसी कहना शुरू किया और यह नाम चल निकला। प्रो. को भी यह नाम पसंद आया, क्योंकि अमिताभ बच्चन के एबी की तरह उनका नाम एबी के बाद सीडी या डीसी था।


हॉट सीट को चूमकर आ चुके थे एक बार पहले

हॉट सीट पर बैठने से पहले प्रो. अग्रवाल एक बार छूकर और चूमकर आ चुके हैं। दरअसल, किस्सा ऐसा है कि उन्हें जब केबीसी में जाने का मौका नहीं मिल रहा था तो सेट देखने चले जाते थे। बीच में जोड़ीदार का कॉन्सेप्ट भी था। एक बार वे अपने करीबी के जोड़ीदार बनकर गए थे। उस समय उन्हें हॉट सीट के पास जाने का मौका मिला। उसे छूकर और चूमकर लौटे थे। धीरे से मन में यह भी दोहराया था कि एक बार हॉट सीट पर जरूर बैठेंगे। प्रोफेसर के मुताबिक एक बार अमिताभ बच्चन ने अपने शो में कहा था, 'आपके मन का हो रहा तो अच्छा है, लेकिन आपने मन का नहीं हो रहा तो बहुत अच्छा है। क्योंकि कुछ और बेहतर आपका इंतजार कर रहा है।' इसी बात को पॉजिटिव तरीके से मन में रखकर वे तैयारी करते रहे।

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