"GPS" की जगह लेगा स्वदेशी "नाविक"! सरकार की तैयारी पूरी, कब से होगा प्रभावशील...पढ़िए NPG की खास रपट

Update: 2022-10-01 13:27 GMT

NPG.NEWSआपका मोबाइल अब अमेरिकी ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) की जगह स्वदेशी "नैविगेशन विथ इंडियन कॉन्स्टलेशन" (NavIC) यानी नाविक से लैस हो सकता है। केंद्र सरकार ने इसकी तैयारी कर ली है। इसे इसरो ने डेवलप किया है और सीमित स्तर पर ही सही लेकिन "नाविक"ने 2018 से काम करना शुरू कर भी दिया है। केंद्र सरकार अब सभी भारतीय स्मार्ट फोन यूजर्स के मोबाइल पर पर "नाविक" को GPS के विकल्प के तौर पर लाना चाहती है। सरकार ने सभी मोबाइल निर्माता कंपनियों से इसे एक जनवरी 2023 से लागू करने के लिए कहा है। हालांकि फिलहाल कोई डेडलाइन नहीं दी गई है। सरकार के निर्देश के बाद मोबाइल बनाने वाली कंपनियां परेशान भी हैं। इसके लिए नए सिस्टम को लागू करने में आने वाली अतिरिक्त लागत और बेहद कम समय को कारण बताया जा रहा है।

तो क्या स्वदेशी नाविक, जीपीएस को रिप्लेस कर पाएगा? इसकी खूबियां क्या होंगी? क्या भारतीय इसे अपनाने के लिए उत्साहित होंगे? और कंपनियों का पक्ष क्या है, इन पर नज़र डालते हैं।

* नाविक क्या है?

नाविक एक पूर्णत: स्वदेशी नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम है। इसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा विकसित किया गया है। 2006 में सरकार से इस सिस्टम को विकसित करने की मंजूरी मिली। उस वक्त इसके लिए 174 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे। मंजूरी मिलने के वक्त इसे 2011 तक पूरा कर लिए जाने का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन, सात साल देरी से 2018 में यह शुरू हुआ। नाविक आठ उपग्रहों की मदद से काम करता है। ये सिस्टम हिन्दुस्तान के पूरे भू-भाग को कवर करता है।

* क्यों पड़ी "नाविक" की ज़रूरत?

ये एक बहुत महत्वपूर्ण बिंदु है। बताया जाता है कि कारगिल युद्ध के समय भारत ने क्षेत्र की स्थिति को समझने के लिए अमेरिका से जीपीएस डेटा मांगा था। लेकिन तब अमेरिका ने डेटा देने से इंकार कर दिया था क्योंकि चोटी पर पाकिस्तानी सैनिक थे। इस अमेरिकी झटके ने भारत को अपने स्वदेशी नेविगेशन सिस्टम को बनाने के लिए प्रेरित किया था ताकि उसकी विदेशी सिस्टम पर निर्भरता खत्म हो जाए।

* नाविक की खूबी क्या है?

GPS और नाविक सिस्टम में दोनों द्वारा कवर होने वाले क्षेत्र को लेकर अंतर है। GPS पूरी पृथ्वी को कवर करता है। इसके उपग्रह दिन में दो बार पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं। वहीं, नाविक भारत और उसके आसपास के इलाके में इस्तेमाल के लिए है।यह भारत के आसपास करीब 1500 किलोमीटर के रेडियस को कवर करता है। इस लिहाज से यह जीपीएस के मुकाबले ज्यादा एक्यूरेट हो सकता है। गूगल का जीपीएस 15 से 20 मीटर की एक्यूरेसी देता है, जबकि नाविक करीब अगले 5 मीटर की एक्यूरेसी देता है यानी यह अधिक सटीक हो सकती है।

* अभी नाविक का प्रयोग शुरू हुआ है या नहीं?

मौजूदा समय में नाविक का सीमित दायरे में प्रयोग शुरू हो चुका है। इसका उपयोग देश में सार्वजनिक वाहन ट्रैकिंग में किया जा रहा है। इसके साथ ही गहरे समुद्र में मछली पकड़ने गए मछुवारों को आपातकालीन चेतावनी देने के लिए भी यह सिस्टम इस्तेमाल किया जा रहा है। प्राकृतिक आपदाओं से संबंधित जानकारी को ट्रैक करने और प्रदान करने के लिए भी यह सिस्टम इस्तेमाल हो रहा है। स्मार्टफोन को इस सिस्टम से लैस करना इस कड़ी में अगला कदम है।

* क्या जीपीएस के अलावा और भी नेविगेशन सिस्टम दुनिया में इस्तेमाल होते हैं?

हाँ, GPS की तरह कुछ और नेविगेशन सिस्टम दुनिया में इस्तेमाल होते हैं। यूरोपियन यूनियन में गैलीलियो, रूस में ग्लोनास और चीन में बीडो का इस्तेमाल करता है। इसी तरह QZSS को जापान संचालित करता है। भारत की सेटलाइट नेविगेशन ड्राफ्ट पॉलिसी 2021 के मुताबिक सरकार दुनिया के किसी भी हिस्से में NavIC सिग्नल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए "क्षेत्रीय से वैश्विक तक कवरेज का विस्तार" करने की दिशा में काम करेगी। भारत सरकार ने अगस्त में कहा था कि नाविक "स्थिति सटीकता के मामले में संयुक्त राज्य अमेरिका के जीपीएस जितना अच्छा है"

* सरकार नाविक को बढ़ावा क्यों दे रही है?

फरवरी 2020 में सरकार ने लोकसभा में कहा था कि नाविक मेक इन इंडिया की दिशा में एक कदम है। इसमें कहा गया था इस स्वदेशी रूप से विकसित प्रणाली के उपयोग से देश की सामाजिक-आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी।

* इस सिस्टम को लागू करने के लिए मोबाइल कंपनियाँ क्यों घबराई हुई हैं

स्मार्टफोन बनाने वाली कंपनियां सरकार के कदम से घबराई दिख रही हैं। सैमसंग, शाओमी और एपल जैसी कंपनियां इसे लागू करने करने के लिए दो साल की मोहलत मांग रही हैं। उनका कहना है कि इतनी जल्दी नाविक सिस्टम लागू करने पर फोन की लागत पर भी असर होगा। इसके साथ ही तकनीकी बाधाएं भी आएंगी। अभी कंपनियां अपने सिम को 4G से 5G में बदल रही हैं। सिम का क्राइसिस भी चल रहा है। नाविक के हिसाब से प्रोसेसर में बदलाव करने होंगे। कस्टम ड्यूटी, जीएसटी की बढ़ी हुई दरें भी बाधक लग रही हैं। इसलिए मोबाइल कंपनियां नाविक की वजह से उत्पादन और शोध लागत बढ़ने की बात कह रही हैं।

* सरकार जो चाह रही है, क्या वह संभव होगा?

भारत की अपनी कुछ सीमाएं हैं। देश के पास गूगल के मुकाबले डेटा की कमी है। संसाधन, टैक्नोलाॅजी और वर्क फोर्स भी इस लिहाज से कम है। लेकिन यदि पूरे दम-खम से इसके लिए प्रयास करेगी तो यह काम असंभव भी नहीं है।

भारत का पूरा ज़ोर इस समय "स्वदेशी" पर है। हर क्षेत्र में देश स्वदेशी को प्राथमिकता दे रहा है, फिर चाहे बात रक्षा प्रणाली की हो या टैक्नोलाॅजी की। मूलतः विदेशी उपग्रह प्रणालियों पर निर्भरता को दूर करने के लिए ही सरकार नाविक सिस्टम को स्मार्ट फोन्स में इंस्टॉल करवाना चाह रही है। जीपीएस और ग्लोनास जैसे विदेशी सिस्टम पर हमेशा भरोसा करना रणनीतिक तौर पर सही भी नहीं हो सकता है। क्योंकि, ये सभी उन देशों की सुरक्षा एजेंसियों द्वारा संचालित होते हैं।आने वाले एक-दो सालों में पता चल जाएगा कि आम जनता जीपीएस छोड़ "नाविक" को अपनाती है या नहीं।

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