CG की शराब नीति झारखंड में फेल: ज्यादा कमाई के लालच में झारखंड ने छत्तीसगढ़ की शराब नीति अपनाई, घाटा हुआ तो कंपनी को हटाया, 44 करोड़ जुर्माना भी
रायपुर/रांची. छत्तीसगढ़ के पड़ोसी राज्य झारखंड से एक बड़ी खबर सामने आ रही है. झारखंड ने ज्यादा कमाई के लालच में छत्तीसगढ़ की शराब नीति अपनाई थी. यहां के एक अधिकारी को एक करोड़ रुपए सालाना फीस देकर सलाहकार नियुक्त किया था. निर्धारित लक्ष्य से 560 करोड़ रुपए कम राजस्व मिलने पर झारखंड सरकार ने छत्तीसगढ़ की एजेंसी को हटा दिया है. साथ ही, 44 करोड़ रुपए जुर्माना किया है. जो खबरें आ रही हैं, उसके मुताबिक झारखंड सरकार शराब बेचने का काम अपने हाथ में लेने जा रही है.
भाजपा शासन में छत्तीसगढ़ की आबकारी नीति में बदलाव करते हुए ठेका पद्धति को खत्म कर सरकार ने शराब बेचना शुरू किया. शराब की दुकानें सरकारी कर दी गई और निजी प्लेसमेंट एजेंसियों के कर्मचारियों को दुकानों पर बैठाया गया. इससे राज्य सरकार की कमाई में वृद्धि हुई, लेकिन इस नीति में कई तरह की खामियां भी सामने आईं. भाजपा ने शराबबंदी की ओर कदम बढ़ाने का हवाला देकर विधानसभा चुनाव से कुछ पहले ही यह नीति अपनाई थी.
कांग्रेस की सरकार बनने के बाद यह नीति जारी रही. हालांकि कुछ खामियों के मद्देनजर फिर से ठेका सिस्टम लागू होने की भी बातें सामने आई थी. इस बीच छत्तीसगढ़ में शराब से मिलने वाले राजस्व से प्रभावित होकर झारखंड सरकार ने भी इस नीति को अपनाने का फैसला लिया. छत्तीसगढ़ सरकार में पदस्थ इंडियम टेलीकॉम सर्विस के अधिकारी एपी त्रिपाठी को सलाहकार नियुक्त किया गया. छत्तीसगढ़ में काम करने वाली कई एजेंसियों सुमीत फैसिलिटीज, ए2जेड इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड, प्राइम वन और इगल हंटर आदि ने मैनपॉवर काम अपने हाथों में ले लिया.
झारखंड सरकार ने वित्तीय वर्ष 2022-23 में 2310 करोड़ रुपए कमाने का लक्ष्य रखा था. अंतिम महीने के दस दिन बीत चुके हैं और अभी भी लक्ष्य से 560 करोड़ पीछे हैं. झारखंड के उत्पाद एवं मद्य निषेध मंत्री जगरनाथ महतो ने इसकी समीक्षा के बाद कंसल्टेंट कंपनी को हटाने का निर्णय लिया है. नई नीति की समीक्षा करने के निर्देश दिए हैं. इसके बाद यह तय किया जाएगा कि नए वित्तीय वर्ष में यह नीति लागू रहेगी या बंद कर दी जाएगी.
जानकारों का कहना है कि छत्तीसगढ़ में इस नीति से राजस्व काफी जंप किया। जो पैसा ठेकेदारों के जेब में जाता था, वह सरकार के खजाने में आने लगा। उसकी वजह मानिटारिंग थी। झारखंड में प्रॉपर मॉनिटरिंग नहीं हुई।