CG आरक्षण पर आर-पार: सीएम का सीधे राज्यपाल पर हमला- वे हस्ताक्षर नहीं करना चाहतीं, बहाना ढूंढ रही हैं, पढ़ें अब आगे क्या...

छत्तीसगढ़ विधानसभा में 2 दिसंबर को पारित आरक्षण विधेयक पर राज्यपाल अनुसुइया उइके ने हस्ताक्षर नहीं किया है। अब मामला और उलझने के आसार हैं।

Update: 2022-12-27 20:29 GMT

रायपुर। छत्तीसगढ़ में आरक्षण संशोधन विधेयक पर अब राज्य सरकार और राज्यपाल आमने-सामने आ गए हैं। सीएम भूपेश बघेल ने राज्यपाल अनुसुइया उइके पर खुला आरोप लगाया है कि वे हस्ताक्षर नहीं करना चाहती हैं। वे विधेयक को अनिश्चितकाल तक रखना चाहती हैं, लेकिन बहाना ढूंढ रही हैं। यह कतई उचित नहीं है। सीएम ने आशंका जताई है कि राज्यपाल ने जिन 10 बिंदुओं पर जवाब मांगा था, उसे राजभवन भेज दिया गया है, लेकिन उसमें भी मीन-मेख निकाला जा रहा है। अब जो हालात बनते दिख रहे हैं, उसे लेकर जानकारों का कहना है कि मामला सुलझने के बजाय उलझने के आसार हैं, क्योंकि राज्यपाल अभी भी राज्य सरकार की ओर से भेजे गए जवाब से संतुष्ट नजर नहीं आ रहीं, ऐसे में आरक्षण की नई व्यवस्था लागू नहीं हो पाएगी और लंबे समय तक मामला उलझ जाएगा।

पहले पढ़ें, सीएम भूपेश बघेल ने क्या कहा...

मीडिया से बातचीत में सीएम भूपेश बघेल ने कहा, "रमन सिंह जी ने एक राष्ट्रीय अखबार में बयान दिया है, Governor cannot sign the bill on wish of cm...। बिल विभाग तैयार करता है। कैबिनेट में प्रस्तुत होता है। कैबिनेट के अप्रूवल के बाद विधानसभा में एडवाइजरी कमेटी के सामने रखा जाता है। उसके बाद विधानसभा में चर्चा होती है। जहां तक आरक्षण बिल की बात है, सारी प्रक्रिया पूरी की गई है। विधानसभा में सर्व सम्मति से पारित किया गया। ये मुख्यमंत्री की विश से नहीं हुआ है। ये विधानसभा द्वारा सर्व सम्मति से पारित हुआ है। सभी लोगों ने भाग लिया। विपक्ष के ऐसे कोई सदस्य नहीं हैं, जिन्होंने भाषण न किया हो। दुर्भाग्य की बात यह है कि रमन सिंह जैसे नेता, जो 15 साल मुख्यमंत्री रहे, वे कहते हैं कि मुख्यमंत्री की विश से... मुख्यमंत्री की विश से नहीं, ये विधानसभा से पारित हुआ है। ये बिल विधानसभा का है, मुख्यमंत्री का नहीं है।'

"दूसरी बात आज तक भाजपा के एक भी नेता, जब सर्व सम्मति से बिल पारित हुआ है तो गवर्नर से ये नहीं कहा कि इसमें हस्ताक्षर करिये। उन्होंने कभी नहीं कहा। एक भी भाजपा का नेता, ये डेलीगेशन लेकर बार-बार जाते हैं, वहां वे कभी नहीं बोले कि इसमें हस्ताक्षर होना चाहिए। तीसरी बात जो कल मैं बोला कि ये जो विधिक सलाहकार है, वह कौन है? ये विधिक सलाहकार एकात्म परिसर में बैठते हैं। राज्यपाल भाजपा नेताओं के दबाव में हस्ताक्षर नहीं कर रहीं। मेरे सारे अधिकारियों ने कहा कि इन्हें अधिकार ही नहीं है। फिर भी पौने तीन करोड़ जनता के हित को ध्यान में रखते हुए मैंने जवाब भेजवा दिया। अब उसमें पता चल रहा है कि उसमें फिर से मीन मेख निकालेंगे। फिर जवाब भेजा जाएगा, फिर मीन मेख निकालेंगे। कुल मिलाकर राज्यपाल को हस्ताक्षर नहीं करना है।'

"नहीं करना है तो वापस करें बिल। उनके अधिकार क्षेत्र में क्या है? उनके अधिकार क्षेत्र में है कि यदि बिल उचित नहीं लगता तो वापस करें सरकार को, दूसरा, राष्ट्रपति को भेजें, तीसरा अनिश्चितकाल तक रखे रहें। वे (राज्यपाल) अनिश्चितकाल तक रखना चाहती हैं, लेकिन बहाना ढंूढ रही हैं। यह कतई उचित नहीं है। ये सलाहकार विधानसभा से बड़ा हो गया। विधानसभा जो छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी पंचायत है, जिसमें पूरे प्रदेश की जनता का प्रतिनिधित्व विधानसभा करती है, उसमें सर्व सम्मति से बिल पारित किया गया है। विधानसभा में सारे अनुभवी विधायक भी हैं, मंत्री हैं, वकील भी हैं, जिन्होंने एलएलबी किया है। सारी प्रक्रिया वर्षों से छह, सात, आठ बार के विधायक हैं, उन्होंने इसमें भाग लिया और ये विधिक सलाहकार पता नहीं कौन हैं? एकात्म परिसर में बैठता है, वह विधानसभा से बड़ा हो गया है।'

राज्यपाल अनुसुइया उइके ने क्या कहा...

राज्यपाल अनुसुइया उइके ने कहा था कि जैसे ही बिल पारित होगा, वे दस्तखत करेंगी। जब मंत्रियों के एक प्रतिनिधिमंडल ने उन्हें विधानसभा से पारित बिल की जानकारी दी, तब उन्होंने कहा कि वे अपने विधिक सलाहकार का अभिमत लेंगी। इसके बाद दस्तखत करेंगी। इसके बाद राज्यपाल की ओर शासन से 10 बिंदुओं पर जवाब मांगा गया। राज्यपाल की ओर से जो सवाल भेजे गए थे, उसे लेकर सीएम भूपेश बघेल के साथ-साथ संवैधानिक जानकारों ने कहा कि विधानसभा से पारित विधेयक पर अब राज्यपाल को सवाल-जवाब करने का अधिकार नहीं है। हालांकि राज्यपाल का कहना था कि वे अच्छी तरह जांच-परखकर, सभी बिंदुओं पर संतुष्ट होने के बाद विधेयक पर दस्तखत करेंगी, जिससे फिर कानूनी रूप से चैलेंज न किया जा सके। राज्यपाल को शासन की ओर से जवाब भेज दिया गया है, लेकिन वे जवाब से संतुष्ट नहीं हैं।

राज्यपाल के पास ये चार स्टेप...

1. राज्यपाल सभी बिंदुओं पर सहमत होकर दस्तखत कर देंगी।

2. राज्य सरकार द्वारा भेजी गई जानकारी से असहमति की स्थिति में राज्यपाल विधेयक को लौटा सकती हैं।

3. राज्यपाल विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेज सकती हैं।

4. राज्यपाल अनिश्चितकाल तक विधेयक को अपने पास रख सकती हैं।

आगे क्या...

राज्यपाल यदि दस्तखत कर देंगी तो अदालत में चुनौती दी जा सकती है। हाईकोर्ट ने 58 प्रतिशत आरक्षण को असंवैधानिक माना है। ऐसे में 76 प्रतिशत आरक्षण को प्रथम दृष्टया असंवैधानिक मानकर हाईकोर्ट इन्हीं बिदुओं पर राज्य सरकार से जवाब तलब कर सकती हैं, जो राज्यपाल ने उठाए हैं।

राज्यपाल यदि विधेयक को फिर से विचार करने के लिए लौटाती हैं तो नए सिरे से विधेयक लाना होगा। इसमें उन बिंदुओं को शामिल करना होगा, जो राज्यपाल ने उठाए होंगे। 

राज्यपाल यदि राष्ट्रपति को भेज देती हैं या अपने पास रख लेती हैं, तब भी असमंजस की स्थिति बनी रहेगी, क्योंकि हाईकोर्ट के फैसले के बाद राज्य सरकार ने ही सूचना का अधिकार के तहत दी गई जानकारी में यह स्वीकार किया है कि फिलहाल आरक्षण का कोई रोस्टर लागू नहीं है। ऐसे में भर्तियों पर असर पड़ेगा।

तस्वीर तीन साल पहले युवा महोत्सव के दौरान की है। आरक्षण मसले पर फिलहाल इसी तरह रस्साकशी की स्थिति बनी हुई है।

क्या लिखा है संविधान में...

अनुच्छेद 200. विधेयकों पर अनुमति:

जब कोई विधेयक राज्य की विधान सभा द्वारा या विधान परिषद वाले राज्य में विधान-मण्डल के दोनों सदनों द्वारा पारित कर दिया गया है तब वह राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा और राज्यपाल घोषित करेगा कि वह विधेयक पर अनुमति देता है या अनुमति रोक लेता है अथवा वह विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखता है ।

परन्तु राज्यपाल अनुमति के लिए अपने समक्ष विधेयक प्रस्तुत किये जाने के पश्चात यथाशीघ्र उस विधेयक को, यदि वह धन विधेयक नहीं है तो सदन या सदनों को इस संदेश के साथ लौटा सकेगा कि सदन या दोनों सदन विधेयक पर या उसके किन्हीं विनिर्दिष्ट उपबंधों पर पुनर्विचार करें और विशिष्टतया किन्हीं ऐसे संशोधनों के पुरःस्थापन की वांछनीयता पर विचार करें जिनकी उसने अपने संदेश में सिफारिश की है और जब विधेयक इस प्रकार लौटा दिया जाता है तब सदन या दोनों सदन विधेयक पर तदनुसार पुनर्विचार करेंगे और यदि विधेयक सदन या सदनों द्वारा संशोधन सहित या उसके बिना फिर से पारित कर दिया जाता है और राज्यपाल के समक्ष अनुमति के लिए प्रस्तुत किया जाता है तो राज्यपाल उस पर अनुमति नहीं रोकेगा ।

परन्तु यह और कि जिस विधेयक से, उसके विधि बन जाने पर, राज्यपाल की राय में उच्च न्यायालय की शक्तियों का ऐसा अल्पीकरण होगा कि वह स्थान, जिसकी पूर्ति के लिए वह न्यायालय इस संविधान द्वारा परिकल्पित है संकटापन्न हो जाएगा, उस विधेयक पर राज्यपाल अनुमति नहीं देगा, किन्तु उसे राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखेगा ।

अनुच्छेद 201. विचार के लिए आरक्षित विधेयक:

जब कोई विधेयक राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रख लिया जाता है तब राष्ट्रपति घोषित करेगा कि वह विधेयक पर अनुमति देता है या अनुमति रोक लेता है ।

परन्तु जहां विधेयक धन विधेयक नहीं है वहाॅं राष्ट्रपति राज्यपाल को यह निदेश दे सकेगा कि वह विधेयक को, यथास्थिति, राज्य के विधान-मण्डल के सदन या सदनों को ऐसे सन्देश के साथ, जो अनुच्छेद 200 के पहले परन्तुक में वर्णित हैं, लौटा दे और जब कोई विधेयक इस प्रकार लौटा दिया जाता है तब ऐसा संदेश मिलने की तारीख से छह मास की अवधि के भीतर सदन या सदनों द्वारा उस पर तदनुसार पुनर्विचार किया जाएगा और यदि वह सदन या सदनों द्वारा संशोधन सहित या उसके बिना फिर से पारित कर दिया जाता है तो उसे राष्ट्रपति के समक्ष उसके विचार के लिए फिर से प्रस्तुत किया जाएगा ।

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