बिहार में का बा: RCP के इस्तीफे के बाद सत्ता परिवर्तन की उथल-पुथल... नीतीश ने सोनिया से की बात, तेजस्वी का ऐलान...

Update: 2022-08-08 15:36 GMT

NPG ब्यूरो। जदयू के पूर्व अध्यक्ष आरसीपी सिंह (रामचंद्र प्रताप सिंह) के इस्तीफे के बाद बिहार की राजनीति में बड़ी उथल-पुथल के संकेत हैं। बात यहां तक आ पहुंची है कि 11 अगस्त तक सरकार बदल सकती है। इसमें आरसीपी की भूमिका को एकनाथ शिंदे की तरह देखा जा रहा है। दरअसल, आरसीपी का राज्यसभा का कार्यकाल नहीं बढ़ाया गया। इस वजह से उन्हें मोदी कैबिनेट से इस्तीफा देना पड़ा। इधर, आरसीपी को हटाने के बजाय उन्हें भ्रष्टाचार के मामले में नोटिस जारी कर दिया। इसके बाद आरसीपी ने खुद ही पार्टी छोड़ दी।

यहां दो बातें अहम है। पहली तो यह मोदी टीम का हिस्सा रहे आरसीपी सिंह के साथ 24 विधायकों का समर्थन होने की बात आ रही है। वहीं, दूसरी बात यह है कि बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने सोनिया गांधी से बात की है। साथ ही, तेजस्वी यादव ने ऐलान किया है कि यदि नीतीश कुमार एनडीए से अलग होते हैं तो वे समर्थन देने के लिए तैयार हैं। यहां समझने की कोशिश करते हैं कि उठापटक की स्थिति में किसका पलड़ा भारी है...

भाजपा के पास जदयू से ज्यादा विधायक पर आंकड़े साथ नहीं

बिहार में विधानसभा की 243 सीटें हैं। विधानसभा चुनाव में भाजपा के 77 विधायक जीते थे, जबकि जदयू के पास 45 विधायक थे। आपसी समझौते के तहत नीतीश कुमार सीएम बने थे। केंद्र में जदयू के आरसीपी सिंह मोदी कैबिनेट में शामिल हुए थे। पिछले महीने आरसीपी सिंह का राज्यसभा का कार्यकाल खत्म हुआ, तब उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। फिलहाल जदयू से कोई भी मोदी कैबिनेट में नहीं है। बिहार में एनडीए के पास 127 सीटें हैं।

इसमें भाजपा के 77, जदयू के 45, जीतनराम मांझी के हम के चार और एक निर्दलीय शामिल है। इसके विपरीत विपक्षी गठबंधन के पास 114 सीटें हैं। इसमें राजद के पास ही 79 सीटें हैं। कांग्रेस के पास 19 और लेफ्ट के पास 16 सीटें शामिल हैं। ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के पास एक विधायक है, जबकि एक सीट खाली है। आरसीपी यदि बगावत कर भाजपा के साथ जाते हैं तो दलबदल कानून से बचने के लिए 30 सीटें चाहिए। इसके बाद भी सरकार बनाने के आंकड़े तक नहीं पहुंच पाएंगे, क्योंकि 122 सीटों की जरूरत होगी।

नीतीश के कहने पर आईएएस की नौकरी छोड़ी थी

आरसीपी सिंह ने नीतीश कुमार के कहने पर आईएएस की नौकरी छोड़ी थी। यह बात 12 साल पहले ही है। उन्हें नीतीश का सबसे करीबी माना जाता था। दोनों कुर्मी हैं और एक ही जिले के रहने वाले हैं। डेढ़ साल पहले आरसीपी जदयू के अध्यक्ष भी रहे। नीतीश और पीके के बीच जो दूरी बनी, उसके पीछे आरसीपी को ही जिम्मेदार माना जाता है। 2015 में लालू यादव और नीतीश कुमार ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। दोनों की सरकार बनी, लेकिन 2017 में नीतीश ने लालू का साथ छोड़ बीजेपी के साथ सरकार बना ली थी।

2019 के लोकसभा चुनाव में 50-50 फॉर्मूले पर जदयू और भाजपा चुनाव लड़ी। इसमें भाजपा को नुकसान हुआ, क्योंकि पहले भाजपा के 22 सांसद थे, जो 17 रह गए। इस दौरान आरसीपी की भूमिका सामने आती है। आरसीपी को सीटों के बंटवारे की जिम्मेदारी दी गई थी। इसमें उन्हें खेल कर दिया और नीतीश के करीबी संजय झा की इच्छा के विपरीत दरभंगा सीट भाजपा को दे दी। इसमें भाजपा की जीत हुई। बाद में नीतीश ने भी इस बात को स्वीकार किया था कि वे झा के लिए दरभंगा सीट चाहते थे।

आरसीपी ने तैयार कर लिया था अपना अलग गुट

आरसीपी सिंह ने बिहार में अपना एक अलग गुट तैयार कर लिया था। यही वजह है कि एक-दो महीने पहले ही नीतीश कुमार ने आरसीपी के कुछ करीबियों प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया। इनमें महासचिव अनिल कुमार, विपिन यादव के साथ-साथ प्रवक्ता अजय आलोक और समाज सुधार ईकाई के अध्यक्ष जितेंद्र नीरज भी शामिल हैं। जुलाई में पार्टी की एक बैठक में आरसीपी को सीएम बनाने के लिए नारे लगे थे। इसके बाद पार्टी को सफाई देनी पड़ी थी कि नीतीश सर्वमान्य नेता हैं और कोई विवाद नहीं है, लेकिन आरसीपी को चेतावनी दी गई थी कि नारेबाजी करने वाले पार्टी के सदस्य नहीं माने जाएंगे। इसके बाद किसी ने आरसीपी के संबंध में बयान नहीं दिया था लेकिन इस्तीफे के बाद आरसीपी के करीबी कन्हैया सिंह ने 24 से ज्यादा विधायकों के संपर्क में होने का बयान देकर राजनीतिक अंतर्दंद्व को हवा दे दी।

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