Sawan Special : भगवान शिव के त्रिनेत्र, त्रिशूल, नंदी और गले में लिपटे सांप का मतलब क्या है...इससे जानिए जीवन के असली अर्थ को

Update: 2022-07-11 00:00 GMT

शांति सुमन

NPG डेस्क । Sawan Special : 14 जुलाई से सावन शुरू हो रहा है। जो भगवान शंकर का प्रिय मास है। इस मास में शिव के जलाभिषेक और पूजा की जाती है। हिंदू पंचांग में सावन का खास स्थान है। यह हर तरफ हरियाली और नव जीवन का प्रतीक है। हमारी परंपरा में धर्म का स्थान अहम है और धर्म में देवताओं का। इनके साथ इनके प्रतीक चिह्नों का भी महत्व रहता है। सृष्टि के रचियेता ब्रह्मा,विष्णु और शिव के बिना सबकुछ अधूरा है। हम अक्सर भगवान के साथ उनके प्रतीक चिह्न को भी देखते है। इसमें सृष्टि के संहारकर्ता भगवान शिव के साथ भी हम कुछ चोजों को देखते है। जब हम शिव की कल्पना करते है तो उनके माथे पर तीसरी आंख, उनका वाहन नंदी, और त्रिशूल को साथ में देखते हैं। क्या सच में शिव के माथे पर एक और आंख है? और क्या वे हमेशा नंदी और त्रिशूल को अपने साथ रखते हैं? एक नजर डालते हैं सावन की शुरुआत के साथ भगवान शंकर के इन संकेतों के बारे में...

भगवान शिव के त्रिनेत्र

शिव को त्रयंबक कहते है, क्योंकि उनकी एक तीसरी आंख है। तीसरी आंख का मतलब ये नहीं है कि उनके माथे पर कुछ निकल आया! इसका मतल‍ब सिर्फ ये है कि ज्ञान और अनुभव का एक तीसरा आयाम। दो आंखें सिर्फ भौतिक चीजों को देख सकती हैं। अगर तीसरी आंख खुल जाती है, तो इसका मतलब है कि ज्ञान का आयाम खुल जाता है जो कि भीतर की ओर देख सकता है। इसके बाद दुनिया में जितनी चीजों का अनुभव किया जा सकता है, उनका अनुभव हो सकता है।

इसलिए अगर अगर आप तीसरी आंख से देखते हैं, तो आप वह देख सकते हैं जिसका सामने आना अभी बाकी है और जो सामने आ सकता है। ज्ञान का मतलब जीवन को एक नई दृष्टि से देखना है।

भगवान शिव के नंदी

भगवान शिव के नंदी का गुण ये है की, वह बस सजग और शांत होकर बैठा रहता है। एक बात साफ कर दें कि नंदी सजग है, सुस्त नहीं है। वह आलसी की तरह नहीं बैठा है। वह पूरी तरह सक्रिय, पूरी सजगता से, जीवन से भरपूर बैठा है, ध्यान यही है। नंदी अनंत प्रतीक्षा का प्रतीक है। भारतीय संस्कृति में इंतजार को सबसे बड़ा गुण माना गया है।

जो बस चुपचाप बैठकर इंतजार करना जानता है, वो कुदरती तौर पर ध्यान मग्न हो सकता है। नंदी शिव का सबसे करीबी है क्योंकि उसमें ग्रहणशीलता का गुण है। किसी मंदिर में जाने के लिए आपके अंदर नंदी का गुण होना चाहिए, ताकि आप बस बैठ सकें।

ये सिर्फ गुण है यही बुनियादी अंतर है। प्रार्थना का मतलब है कि आप भगवान से बात करने की कोशिश कर रहे हैं। ध्यान का मतलब है कि आप भगवान की बात सुनना चाहते हैं। आप बस अस्तित्व को, सृष्टि की परम प्रकृति को सुनना चाहते हैं। आपके पास कहने के लिए कुछ नहीं है, आप बस सुनते हैं। नंदी का गुण यही है, वो बस सजग होकर बैठा रहता है।

भगवान शिव के त्रिशूल

शिव का त्रिशूल जीवन के तीन मूल पहलुओं को दर्शाता है। योग परंपरा में उसे रुद्र, हर और सदाशिव कहा जाता है। ये जीवन के तीन मूल आयाम हैं, जिन्हें कई रूपों में दर्शाया गया है। उन्हें इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना भी कहा जा सकता है। जीवन की रचना भी इसी के आधार पर होती है। इन दोनों गुणों के बिना, जीवन ऐसा नहीं होता, जैसा अभी है। सृजन से पहले की अवस्था में सब कुछ मौलिक रूप में होता है। उस अवस्था में द्वैत नहीं होता, लेकिन जैसे ही सृजन होता है, उसमें द्वैतता आ जाती है। पुरुषोक्त और स्त्रियोचित गुण का मतलब लिंग भेद से नहीं है, बल्कि प्रकृति में मौजूद कुछ खास गुणों से है।

भगवान शिव के त्रिशूल में लिंगात्मक गुणों का संगम

प्रकृति के कुछ गुणों को पुरुषोचित माना गया है और कुछ अन्य गुणों को स्त्रियोचित। आप भले ही पुरुष हों, लेकिन यदि आपकी इड़ा नाड़ी अधिक सक्रिय है, तो आपके अंदर स्त्रियोचित गुण हावी हो सकते हैं। आप भले ही स्त्री हों, मगर यदि आपकी पिंगला अधिक सक्रिय है तो आपमें पुरुषोचित गुण हावी हो सकते हैं।

अगर आप इड़ा और पिंगला के बीच संतुलन बना पाते हैं तो दुनिया में आप प्रभावशाली हो सकते हैं। इससे आप जीवन के सभी पहलुओं को अच्छी तरह संभाल सकते हैं। अधिकतर लोग इड़ा और पिंगला में जीते और मरते हैं, मध्य स्थान सुषुम्ना निष्क्रिय बना रहता है। लेकिन सुषुम्ना मानव शरीर-विज्ञान का सबसे अहम पहलू है।

जब ऊर्जा सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश करती है, जीवन असल में तभी शुरू होता है। आप एक नए किस्म का संतुलन पा लेते हैं, एक अंदरूनी संतुलन, जिसमें बाहर चाहे जो भी हो, आपके भीतर एक खास जगह बन जाती है, जो किसी भी तरह की हलचल में कभी अशांत नहीं होती, जिस पर बाहरी हालात का असर नहीं पड़ता। आप चेतनता की चोटी पर सिर्फ तभी पहुंच सकते हैं, जब आप अपने अंदर ये स्थिर अवस्था बना लें।

भगवान शिव का डमरू

भगवान शिव के डमरू की डम-डम से नाद उत्पन्न होता है। नाद अर्थात वह शब्द जो इस सृष्टि के प्रारम्भ में उत्पन्न हुआ था। इससे पूर्व सम्पूर्ण ब्रह्मांड में शून्यता थी कोई भी संगीत न था इसी नाद से संगीत एवं सुरों की रचना हुई।

भगवान शिव का सर्प

विषैले विषधर को अपने गले में धारण करके शिव यह संदेश देते हैं कि प्रेम भाव होने पर भयंकर से भयंकर शत्रु को भी अपने गले का हार बनाया जा सकता है भगवान शिव के गले में लिपटा विषधर सर्पों का राजा वासुकी है। नाग कुल के वासी भगवान शिव को अपना आराध्य देव मानते हैं। नागवंश का स्थान भी शिव के स्थान हिमालय के समीप ही था इसलिए नाग वंश प्रारम्भ से ही इनकी सेवा करता आया है जिस कारण शिवजी की इस वंश पर विशेष कृपा रहती है। वासुकी के वंशज शेषनाग जो कि श्री विष्णु के सेवक हैं वे वासुकी के बडे़ भाई हैं।

भगवान शिव के मस्तक पर चन्द्रमा

चंद्रमा मन का कारक है। मन चंचल होता है कभी भी एक स्थान पर टिककर नहीं रहता। भगवान शिव के धारण करने का अर्थ है कि उन्होंने मन को अपने नियंत्रण में किया है। इसके अतिरिक्त भगवान शम्भु ने चन्द्रदेव को मिले श्राप का निवारण किया था ।

शिव के प्रतीक की गहराई को समझकर हम जीवन पथ पर आगे बढेंगे तो यर्थाथ की पहचाना के साथ हम मृत्यु लोक से स्वर्ग लोक का रास्ता अपने कर्मों से यही बना लेंगे।

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