7 बैच के 7 सिकरेट्री

7 secretaries of 7 batches... Tarkash, a popular weekly column by senior journalist Sanjay K, Dixit focused on the bureaucracy and politics of Chhattisgarh

Update: 2022-12-04 12:00 GMT

संजय के. दीक्षित

तरकश, 4 दिसंबर 2022

7 बैच के 7 सिकरेट्री

छत्तीसगढ़ में अगले महीने सात और आईएएस अफसर सिकरेट्री बन जाएंगे। दरअसल, 2007 बैच के छत्तीसगढ़ कैडर के सातों आईएएस अधिकारियों का जनवरी में सिकरेट्री पद पर प्रमोशन ड्यू हो जाएगा। सामान्य प्रशासन विभाग में इन अधिकारियों के प्रमोशन की फाइल आगे बढ़ गई है। मुख्यमंत्री के अनुमोदन के बाद प्रमोशन का प्रॉसेज कंप्लीट हो जाएगा। जीएडी के सूत्रों की मानें तो सब कुछ ठीक रहा तो जनवरी के पहले हफ्ते में इन अफसरों को न्यू ईयर गिफ्ट मिल सकता है। 2007 बैच में शम्मी आबिदी, केसी देव सेनापति, बसवराजू एस, हिमशिखर गुप्ता, मोहम्मद कैसर हक, यशवंत कुमार और जनकराम पाठक षामिल हैं। इनमें बसवराजू डेपुटेशन पर कर्नाटक में पोस्टेड हैं। बाकी सभी छत्तीसगढ़ में हैं। कुछ मिलाकर सचिवों की संख्या अब 43 हो जाएगी। इनमें से दस सिकरेट्री डेपुटेशन पर हैं। तब भी छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राज्य के लिए ये बड़ी संख्या है। बता दें, डेपुटेशन पर पोस्टेड सिकरेट्र्री में सोनमणि बोरा, डॉ0 रोहित यादव, ऋतु सेन, अविनाश चंपावत, अमित कटारिया, संगीता पी, मुकेश बंसल, रजत कुमार, अलेक्स पाल मेनन और श्रुति सिंह शामिल हैं।

भुवनेश पर भरोसा

2006 बैच के आईएएस अधिकारी भुवनेश यादव के पास पहले से महिला बाल विकास, समाज कल्याण और उच्च शिक्षा विभाग था। सरकार ने अब उद्योग विभाग की कमान सौंप दी है। अब वे चार विभागों के सिकरेट्री हो गए हैं। चारों विभाग शिक्षा, सोशल और इंडस्ट्री सेक्टर से जुड़े हुए हैं। इंडस्ट्री अपने आप में बड़ा एक्सपोजर वाला विभाग माना जाता है। आने वाले समय में सूबे में इंवेस्टर मीट होने वाला है, इसका आयोजन भी उनके लिए चुनौती होगी।

ब्रम्हानंद की मुश्किलें

भानुप्रतापपुर विधानसभा उपचुनाव के लिए पांच दिसंबर को वोट पड़ेंगे। वोटिंग पूरे होने के साथ ही बीजेपी प्रत्याशी ब्रम्हानंद नेताम की मुश्किलें बढ़ सकती है। मानकर चलिए, झारखंड पुलिस भी वोटिंग से पहले कार्रवाई की संजीदगी को समझती है। मतदान के बाद वो भी फ्री होगी तो वहीं छत्तीसगढ़ पुलिस भी वोटिंग की बाट जोह रही है। ब्रम्हानंद ने नामंकन फार्म के साथ भरे शपथ पत्र में अपराध दर्ज होने की जानकारी छिपाई है। इस मामले में पुलिस उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कर सकती है। कुल मिलाकर उपचुनाव का रिजल्ट कुछ भी आए, ब्रम्हानंद को कुछ दिन कठिनाइयों का सामना करना होगा।

निरंजन और धनंजय

सिकरेट्री लेवल के दो आईएएस अधिकारी अगले जनवरी और फरवरी में रिटायर हो जाएंगे। इनमें निरंजन दास आबकारी आयुक्त और आबकारी सचिव, पंजीयन तथा नान जैसे अहम महकमा संभाल रहे हैं। निरंजन का रिटायरमेंट जनवरी में है तो धनंजय देवांगन उसके एक महीने बाद फरवरी में रिटायर होंगे। निरंजन के बारे में ब्यूरोक्रेसी में चर्चा है कि उन्हें इसी विभाग में संविदा नियुक्ति मिल सकती है। मगर लाख टके का सवाल है कि वर्तमान समय में क्या वे संविदा नियुक्ति चाहेंगे। हमारे खयाल से तो बिल्कुल नहीं। इसके उलट वे भगवान से रोज प्रार्थना कर रहे होंगे, हे ईश्वर! किसी तरह जनवरी निकाल दें। निरंजन दास की तुलना में धनंजय देवांगन को कोई खास पोस्टिंग नहीं मिल पाई। जबकि, वे कांग्रेस नेता के दामाद हैं और अच्छे अधिकारी भी। मगर किस्मत अपनी-अपनी।

रामगोपाल की पोस्टिंग

राज्य सरकार ने रामगोपाल गर्ग को सरगुजा पुलिस रेंज का प्रभारी आईजी अपाइंट किया है। 2007 बैच के आईपीएस अधिकारी रामगोपाल कुछ महीने पहले सीबीआई से डेपुटेशन से लौटे हैं। कह सकते हैं, उन्हें बड़ा जंप मिला है। अभी 2005 बैच आईजी प्रमोट होने वाला है। 2006 बैच को पीछे छोड़ते हुए 2007 बैच के रामगोपाल को रेंज मिल गया। उन्हीं के बैच के दीपक झा बलौदा बाजार जैसे छोटे जिले में एसएसपी हैं, तो जीतेंद्र मीणा जगदलपुर के कप्तान। हालांकि, रामगोपाल की अच्छे अधिकारियों में गिनती होती है।

कवासी अध्यक्ष?

पीसीसी अध्यक्ष मोहन मरकाम का कार्यकाल खतम हो गया है। इस समय वे एक्सटेंशन पर चल रहे हैं। मरकाम के बाद कौन...? यह सवाल कांग्रेस नेताओं के मन-मतिष्क में कौंध रहा है। वैसे, भीतर की खबर यह है कि कांग्रेस किसी आदिवासी चेहरे को ही फिर पार्टी की कमान सौंपेगी। और यह चेहरा मंत्री कवासी लखमा का हो सकता है। हालांकि, बीजेपी ने ओबीसी कार्ड खेलते हुए अरुण साव को प्रदेश अध्यक्ष और नारायण चंदेल को नेता प्रतिपक्ष बनाया है। मगर कांग्रेस के साथ ओबीसी को साधने जैसी अब कोई विवशता नहीं है। सीएम भूपेश बघेल खुद ओबीसी वर्ग से हैं तो ओबीसी का आरक्षण 27 फीसदी बढ़ाने का प्रस्ताव विधानसभा से पारित कर सरकार ने ट्रंप कार्ड चल दिया है। बात कवासी की तो बीजेपी की तरह कांग्रेस पार्टी के पास भी कोई बड़ा आदिवासी चेहरा नहीं है। कवासी मंत्री रहने के साथ ही पीसीसी की कमान भी संभाल सकते हैं। वैसे भी अगला चुनाव भूपेश बघेल के नाम पर ही होना है।

बारनवापारा में सावधानी...

बारनवापारा सेंचुरी अगर आप जा रहे हैं तो बेहद सावधानी के साथ जाइये। पिछले कुछ महीनों में हाथियों के अचानक गाड़ियों के सामने आ जाने की कई घटनाएं हुई हैं। लास्ट संडे को रायपुर की दो फेमिली दो गाड़ियों में देर बारनवापारा गई थी। देर शाम बड़ी घटना होते-होते बची, जब रोड पर गाड़ी के आगे-पीछे हाथियों का झुंड आकर खड़ा हो गया। फॉरेस्ट के अधिकारी भी मानते हैं कि डेढ़ से दो दर्जन हाथियों का समूह अब बारनवापारा को स्थायी ठिकाना बना लिया है। इसलिए, रात में तफरी तो बिल्कुल नहीं।

तहसील सिस्टम पर सवाल

राजधानी में एक ही जमीन तीन लोगो को बेचने के मामले में तरकश में खबर छपने पर रजिस्ट्री अधिकारी को सस्पेंड कर दिया गया। पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर लिया है। मगर इस प्रकरण ने तहसीलदारों के बेलगाम स्वेच्छाचारिता पर भी प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। जाहिर है, मनमोहन सिंह गाबा की रजिस्ट्री मार्च में हुई थी। लेकिन तहसीलदार ने इसका नामांतरण नही किया। वही जमीन मई में रूपेश चौबे के नाम से दूसरी बार रजिस्ट्री हो गई। दूसरे रजिस्ट्री का तहसीलदार ने तुरंत नामांतरण कर दिया। जबकि, दूसरे रजिस्ट्री में न सहकारी सोसायटी का एनओसी था, न टीडीएस काटा गया। हास्यपद यह कि दूसरी रजिस्ट्री पार्किंग में हुई। स्टांप शुल्क की चोरी और बी1 में कैफियत में कामर्सियल लैंड को मिटाया भी गया है। रजिस्ट्री के साथ लगे पार्टनरशिप में दो पार्टनर का नाम है जबकि, विक्रेता कोई और। फिर भी तहसीलदार के न्यायालय ने लंबा चौड़ा कई पेज का आदेश पारित कर दूसरी रजिस्ट्री को सही ठहरा दिया। आदेश का सार ये था कि दूसरे रजिस्ट्री के साथ लगे कंपनी के बोर्ड रेजोल्यूशन में सारे डायरेक्टर के दस्तखत है जबकि, पहले रजिस्ट्री में एक ही डायरेक्टर ने बोर्ड रेसोल्शन का सर्टिफाइड जारी किया है। तहसीलदार कई दिनों के एक्सरसाइज के बाद भी ये भूल गया कि ये तो कंपनी ही नही है। दो पार्टनर का पार्टनरशिप है। पार्टनरशिप में ना तो बोर्ड होता है और ना कोई डायरेक्टर होते हैं। ना बोर्ड रेजोल्यूशन होता है। अगर ये कंपनी होती तो भी रजिस्ट्री को सही गलत ठहराने का पावर केवल सिविल कोर्ट को है। अगर यही काम कोई ज्यूडिशियरी का न्यायाधीश कर देता तो हाईकोर्ट अब तक उसको नौकरी से बेदखल कर चुकी होती। पर तहसीलदार को सफाई से इस मामले में बचा लिया गया।

अंत में दो सवाल आपसे

1. भोजराम पटेल महासमुंद एसपी से हट गए तो उन्हें खुश होना चाहिए या दुखी?

2. क्या एसपी की लिस्ट भानुप्रतापपुर उपचुनाव के बाद अगले हफ्ते निकल जाएगी?

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