Anand Mohan Case ब्यूरोक्रेसी के लिए शर्मनाक : कलेक्टर की बेरहमी से हत्या के दोषी बाहुबली नेता आनंद मोहन की रिहाई का विरोध भी नहीं कर पाए अफसर

Update: 2023-04-26 15:17 GMT

एनपीजी विचार

बिहार के बाहुबली नेता आनंद मोहन की रिहाई ने ब्यूरोक्रेसी की भूमिका पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं. रिहाई के विरोध में एक तरफ सेंट्रल आईएएस एसोसिएशन बिहार सरकार के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित करता है, वहीं, यह सवाल बना हुआ है कि जब सरकार ने यह फैसला लिया, तब क्या किसी आईएएस अफसर की इतनी हिम्मत भी नहीं हुई कि इस फैसले का विरोध कर सकें. जाहिर है कि जब सरकार ने यह फैसला लिया, तब उस मीटिंग से लेकर नोटशीट और नोटिफिकेशन तक आईएएस अफसर ही रहे होंगे. सवाल यह भी है कि क्या ब्यूरोक्रेसी इस हद तक लाचार हो चुकी है कि सरकार के एक गलत फैसले का विरोध भी नहीं कर सके?

5 नवंबर 1994, यह वह तारीख थी, जब एक यंग कलेक्टर को भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला था. कलेक्टर का नाम था जी. कृष्णैया. मूलत: तेलंगाना के महबूबनगर के कृष्णैया दलित समाज से थे और ईमानदार अफसर थे. जब यह हादसा हुआ, तब वे गोपालगंज के कलेक्टर थे. माफिया छोटन शुक्ला के अंतिम संस्कार कार्यक्रम में बाहुबली नेता आनंद मोहन भी शामिल थे. उनकी मौजूदगी में कृष्णैया को भीड़ ने गाड़ी से बाहर निकाला और बेरहमी से पीट-पीटकर मार डाला. उस समय की तस्वीरें जिन लोगों ने देखी हैं, वे याद करते हैं कि कलेक्टर की गाड़ी पलटी हुई है और बाहर उनकी लाश पड़ी हुई थी.

इस मामले में आनंद मोहन को गिरफ्तार किया गया. निचली अदालत ने उन्हें 2007 में फांसी की सजा सुनाई. इसके एक साल बाद 2008 में हाईकोर्ट फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया था. आनंद मोहन 14 साल जेल में काट चुके हैं. इस बीच कई बार पैरोल पर रिहा भी हो चुके हैं और अपने पारिवारिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेते रहे. फिलहाल वे पैरोल पर बाहर ही थे और अपने विधायक बेटे चेतन आनंद की सगाई में शामिल होने आए थे. इसमें सीएम नीतीश कुमार सहित बड़े नेताओं ने भी शिरकत की है.

एक आईएएस अफसर की बेरहमी से हत्या के मामले में बिहार की ब्यूरोक्रेसी की लाचारी की चर्चा देशभर के आईएएस अफसरों में है. यह कहा जाता है कि देश या राज्य आईएएस चलाते हैं. या कहें कि ब्यूरोक्रेसी संचालित करती है. इसका हर जगह यह मतलब नहीं है कि नकारात्मक दृष्टिकोण से वे चलाते हैं, बल्कि सकारात्मक ढंग से केंद्र सरकार यूपीएससी सलेक्ट होने के बाद उन्हें ट्रेनिंग देकर प्रशासनिक रूप से इतना सक्षम बनाती है कि देश और समाज के हित में फैसले लें. इनमें आईएएस ही नहीं, बल्कि आईपीएस, आईएफएस, आईआरएस या अन्य सभी भारतीय सेवा के पद शामिल हैं, जो अलग-अलग राज्यों में सेवाएं देते हैं.

राज्य की सरकार भी अपने-अपने कैडर के अफसरों को अपने राज्य के संबंध में ट्रेनिंग देती है. गैर हिंदी भाषी राज्यों में तो बाकायदा उस राज्य की भाषा-बोली की भी जानकारी दी जाती है. इस पूरी कवायद का उद्देश्य यह होता है कि वे अपने देश या राज्य को समझ सकें और वहां की संस्कृति और समाज के लिए काम करें. इसके विपरीत ब्यूरोक्रेसी ने मलाईदार पदों पर बने रहने को ही अपनी संस्कृति बना ली है. आलम यह है कि अच्छी पोस्टिंग के लिए अफसर सार्वजनिक रूप से चापलूसी करने से भी नहीं झिझकते. ऐसे वाकये अलग-अलग राज्यों से मिलते रहते हैं.

इन सबके बाद भी हर राज्य में ऐसे अधिकारियों की एक लिस्ट होती ही है, गलत को गलत कहने की हिम्मत रखते हैं. देश या समाज के खिलाफ सरकार के फैसले को बदलने का माद्दा रखते हैं. सार्वजनिक रूप से मंत्री-मुख्यमंत्री से यह कहने से भी नहीं चूकते कि यह फैसला गलत है. इसके विपरीत बिहार की सरकार ने अपने राजनीतिक लाभ के लिए नियम में ऐसा संशोधन कर दिया, जिससे ड्यूटी पर तैनात सरकारी अधिकारी-कर्मचारी की हत्या के आरोपी को रिहाई का लाभ दिया जा सके. बाहुबली नेता आनंद मोहन ठाकुर जाति के हैं. बिहार में 30-35 प्रतिशत सीटों पर ठाकुर वोटरों का प्रभाव है. हार-जीत तय करते हैं. इसका लाभ लेने के लिए सरकार ने नियम ही बदल दिया और ब्यूरोक्रेसी देखती रह गई.

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