Achanakmar Tiger Reserve आज से कोटा-केंवची मार्ग पुनः बंद, पूर्व में हाईकोर्ट के आदेश पर बंद रास्ता खोलना पड़ा था

Update: 2023-04-01 11:02 GMT

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Achanakmar Tiger Reserve 

सत्यप्रकाश पांडेय. तारीख 19 दिसंबर 2022, वन मुख्यालय रायपुर में छत्तीसगढ़ राज्य वन्य जीव बोर्ड की 13 वीं बैठक हुई थी। बैठक में कोटा से केंवची मार्ग को एक बार फिर से पूर्णतः प्रतिबंधित करने का निर्णय लिया गया था। इस निर्णय का कड़ाई से पालन आज 1 अप्रेल 2023 से लागू होगा। कड़ाई शब्द का इस्तेमाल इसलिए किया गया है, क्योंकि छत्तीसगढ़ शासन के आदेशानुसार जो सरकारी तख्ती पटैता और शिवतराई नाका पर लगाई गई है, उसमें स्पष्ट शब्दों में उल्लेखित है कि अचानकमार टाईगर रिजर्व अंतर्निहित क्षेत्र में निवासरत वास्तविक निवासी के वाहनों, सार्वजनिक परिवहन की दो यात्री बस, शासकीय सेवा में संलग्न वाहन के अलावा एम्बुलेंस को ही प्रवेश की पात्रता होगी। ऐसे में विकल्प स्वरूप रतनपुर, मजवानी, केंदा, केवची मार्ग से आवागमन करना होगा। कोटा-अचानकमार-केंवची राजमार्ग 8 को पूर्णतः बंद करने के पीछे वन्यजीवन की सुरक्षा, संरक्षण को सम्भवतः ठोस आधार बनाया गया है। एक वाइल्ड लाइफ फोटो जर्नलिस्ट के तौर पर मुझे इस निर्णय का खुले मन से स्वागत करना चाहिए और मुक्त कंठ से फैसले की प्रशंसा भी होनी चाहिए।


छत्तीसगढ़ शासन के हवाले से लगाई गई सरकारी तख्ती पर उल्लेखित शब्दों और प्रतिबंध पर गौर करें तो कुछ सवाल जाहिर तौर पर मन में उछलकूद करने लगते है। पहला सवाल, क्या इस प्रतिबंध के बाद इस मार्ग पर वीवीआईपी या वीआईपी कल्चर भी प्रभावित होगा ?

दूसरा सवाल, अचानकमार, छपरवा और ग्राम लमनी में लगने वाले साप्ताहिक बाज़ार में सामान ढोकर पहुँचने वाले बड़े वाहनों के लिए किस तरह की व्यवस्था होगी ?

तीसरा सवाल, अचानकमार टाईगर रिजर्व अंतर्निहित क्षेत्र में निवासरत वास्तविक निवासी के बाहरी रिश्तेदारों, परिचितों को प्रतिबंधित मार्ग में जाने की अनुमति कैसे और किस आधार पर होगी?

चौथा सवाल इस पूर्व के निर्णय से जुड़ा हुआ है। आपको बता दें कि भारत सरकार, केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय एवं राष्ट्रीय बाघ संरक्षण अधिकरण द्वारा वन्य जीव संरक्षण एक्ट 1972 के तहत 24 सितंबर 2015 को अचानकमार टाइगर रिजर्व फारेस्ट के अंदर के मार्ग का यातायात के लिए बंद करने का निर्देश जारी किया था। कलेक्टर सह जिला मजिस्ट्रेट बिलासपुर ने अधिसूचना जारी कर कोटा-अचानकमार-केंवची राजमार्ग 19 जनवरी 2017 को पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए पूर्णतः बंद कर दिया। पूर्व में मार्ग को बंद करने के खिलाफ तत्कालीन विधानसभा उपाध्यक्ष धर्मजीत सिंह, सज्जाद खान, अविश कुमार यादव सहित अन्य ने अधिवक्ता सतीशचंद्र वर्मा के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी।

याचिका में कहा गया था कि कोटा-अचानकमार-केंवची मार्ग को बंद करना नागरिकों को संविधान धारा 19 (1) बी के तहत मिले मूलभूत अधिकार का उल्लंघन है। एटीआर के अंदर 19 गांव में रहने वालों को उनके मूलभूत अधिकार से वंचित किया जा रहा है। याचिका पर शासन की ओर से जवाब पेश कर कहा गया था कि केंद्र सरकार, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण अधिकरण ने अचानकमार को नेशनल टाइगर रिजर्व फारेस्ट घोषित किया है। इस मार्ग से प्रतिदिन एक हजार से अधिक गाड़ियां गुजरती थीं। इसके कारण वन्य जीवों का प्राकृतिक रहवास प्रभावित हो रहा है। तेज रफ्तार वाहनों की चपेट में आने से प्रतिवर्ष कई वन्य जीवों की मौत होती है। वन्य जीवों को संरक्षण देने इस मार्ग को बंद किया गया है। याचिका में जस्टिस संजय के. अग्रवाल के कोर्ट में सुनवाई हुई। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि कलेक्टर सह जिला मजिस्ट्रेट को मोटर यान अधिनियम 1988 की धारा 115 के अंतर्गत कोटा-अचानकमार-केंवची राजमार्ग 8 को बंद करने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने प्रशासन को इस मार्ग को यातायात के लिए खोलने का आदेश दिया दे दिया था । आदेश में माननीय उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह मार्ग सिर्फ आने-जाने के लिए उपयोग किया जाएगा। जंगल के अंदर के प्रतिबंधित क्षेत्र में कोई भी प्रवेश नहीं कर सकता है । चौथा सवाल यही है, क्या कोटा से केंवची मार्ग को एक बार फिर से पूर्णतः प्रतिबंधित करने के निर्णय में माननीय उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़ के 8 मार्च 2018 के उक्त आदेश को ध्यान में रखा गया है ?

पांचवां सवाल, क्या अचानकमार टाईगर रिजर्व प्रबंधन आमजन की जानकारी के लिए कोटा सकरी माेड़ व कोटा में बोर्ड लगायेगा जिसके माध्यम से जनसामान्य को जानकारी दी जाए कि वे यदि अमरकंटक जाना चाहते हैं तो कोटा रतनपुर केंदा केंवची मार्ग से जाएं। आगे शिवतराई-अचानकमार होकर केंवची पहुँच मार्ग बंद है ?

मेरा व्यक्तिगत तौर पर मत यही है कि वन्यजीवन की सुरक्षा, संरक्षण के लिए छत्तीसगढ़ राज्य वन्यजीवन बोर्ड की 13 वीं बैठक में लिया गया निर्णय स्वागतेय है मगर इस निर्णय के पीछे पारदर्शिता पर कड़ा पहरा भी होगा। शिवतराई बैरियर से केंवची बेरियर के बीच जंगल के कानून और कामकाज को अब आप सिर्फ विभागीय नज़रिये से देखेंगे। मीडिया भी प्रतिबंध के दायरे में, अफ़सरशाही के चश्में से देखें तो होना भी चाहिए। तमाम मसलों पर ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा प्राथमिकता रहे तो निर्णय स्वागतेय है, अफ़सोस सालों से जैसा देखा है उम्मीद नहीं है कि इतनी जल्दी कुछ बदलेगा।

हां, वर्तमान में जिन अफसरों के कन्धों पर अचानकमार टाईगर रिजर्व की जिम्मेदारी है उनकी सकारात्मक कोशिशें दफ्तर से लेकर फील्ड तक दिखाई देती हैं, अफ़सोस जमीनी अमला उन्हीं कोशिशों को उदासीनता की उबासी से हाशिये पर फिर खड़ा कर देता है। सवाल इच्छाशक्ति, जंगल से अपनेपन की कमी का है। 

अब सिर्फ देखने वाली बात यह होगी कि छत्तीसगढ़ राज्य वन्यजीवन बोर्ड की बैठक में लिए गए निर्णय का भविष्य कितना उज्जवल और लम्बा है। चुनावी साल है, सरकार और सियासत आने वाले कुछ महीनों में उठापटक के लिए खाका तैयार कर चुकी है। इस निर्णय पर पूर्व की तरह सियासी बादल नहीं मंडराये, वीवीआईपी या वीआईपी कल्चर को जंगल के कानूनी दायरे में रखा गया तो निश्चित तौर पर वन्यजीवन के रहवास पर अनुकूल असर होता दिखाई देगा।

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