अब छत्तीसगढ़ के कृष्ण: सीएम भूपेश ने बताया कृष्ण से नाता, बोले- अर्जुन के साथ यहां आए थे देवकीनंदन
Now Chhattisgarh's Krishna:
रायपुर। भगवान राम ने अपने वनवास का अधिकांश समय दंडकारण्य यानी छत्तीसगढ़ में ही बीताया था। सरकार भगवान राम से जुड़े ऐसे 100 से ज्यादा स्थानों की पहचान कर चुकी है, जहां भगवान राम रुके थे या वहां से उनके गुजरने के निशान है। राज्य की भूपेश सरकार इन स्थानों को अपने राम वन गमन पथ परियोजना के तहत पर्यटन केंद्र के रुप में विकसित कर रही है। पहले चरण में ऐसे 9 स्थानों का चयन किया गया है।
भगवान राम से छत्तीसगढ़ का नाता तो सभी जानते हैं, लेकिन यहां भगवान कृष्ण भी आए थे, यह बात बहुत कम ही लोग जानते होंगे। जो लोग जानते भी हैं तो इसकी चर्चा बहुत कम ही होती है, लेकिन इसके भी चर्चा में आने की संभावना बढ़ गई है। वजह यह है कि इस बार यह बात सीएम भूपेश बघेल ने कही है। एक न्यूज एजेंसी के साथ चर्चा के दौरान सीएम भूपेश ने बताया कि भगवान कृष्ण अर्जुन के साथ यहां आरंग आए थे, जो माता कौशिल्य की जन्मभूमि चंदखुरी से महज 10 किलोमीटर दूर है। मुख्यमंत्री का यह वीडियो सीएमओ छत्तीसगढ़ ने ट्वीट किया है। इसमें सीएम बता रहे हैं कि भगवान कृष्ण, अर्जुन के साथ यहां मोरध्वज की परीक्षा लेने आए थे। मोरध्वज से शेर की भूख मिटाने के लिए अपने पुत्र को आरी से चीरा दिया था। इसी वजह से उस क्षेत्र का नाम आरंग पड़ा है। सीएम ने कहा कि वहां भगवान राम, शिव और कृष्ण के प्राचीन मंदिर हैं। चुनावी सीजन में मुख्यमंत्री के इस बयान पर आने वाले दिनों में राजनीति गरमा सकती है। बता दें कि राज्य सरकार राम वन गमन पथ विकसित करने के साथ ही राज्य के सभी शहरों में भगवान कृष्ण के नाम पर कृष्ण कुंज विकसित कर रही है।
भगवान कृष्ण के छत्तीसगढ़ आने के कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है, लेकिन जिस मोरध्वज की कथा का जिक्र किया जाता है वे छत्तीसगढ़ के ही हैं। हालांकि मोरध्वज की राजधानी को लेकर इतिहासकारों में एक राय नहीं है। कुछ लोग मानते हैं कि राजा मोरध्वज की राजधानी आरंग थी। आरंग का नाम आरी की वजह से आरंग पड़ा। तो कुछ का मानना है कि उनकी राजधानी रतनपुर थी, और भगवान कृष्ण भी वहीं आए थे। रतनपुर में एक तालाब का नाम कृष्णार्जुनी है।
जनश्रुतियों के अनुसार युधिष्ठिर के अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा इसी तालाब के किनारे मोरध्वज के बेटे ताम्रध्वज ने पकड़ लिया और घोड़े के पीछे चल रहे अर्जुन से उसका युद्ध हुआ। इसके बाद जब अर्जुन ने श्रीकृष्ण से ताम्रध्वज के संबंध में पूछा तो उन्होंने मोरध्वज की दानवीरता, भक्ति के बारे में बताया और प्रमाण देने साधु के वेश में अर्जुन को मोरध्वज के दरबार ले गए।