500 साल पहले बना था ये मठ: दूध पर जिंदा रहने वाले महंत के नाम पर पड़ा दूधाधारी मठ, जानिए मंदिर से जुड़ी रोचक बातें और इतिहास...
रायपुर। दूधाधारी मठ छत्तीसगढ़ रायपुर के प्रसिद्ध हिंदू धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मठ अपने इतिहास और शानदार स्थापत्य कला के लिये भी पहचाना जाता है। कहा जाता है कि यह मठ 500 साल पुराना है। मठ के महंत बलभद्र दास हनुमानजी के परम भक्त थे।
महाराजबन्ध तालाब के पास हरे-भरे पेड़ो के बीच बलभद्रदास अपनी कुटिया में रहते थे। बलभद्रदास का अधिकतर समय उनके इष्ट हनुमान की भक्ति में निकलता था। वे गाय के दूध से हनुमान का अभिषेक करते और उसी दूध का सेवन, अन्य कोई आहार नहीं। मठ की स्थापना बलभद्र दास ने की थी। आस-पास के लोगों ने देखा की बलभद्र सिर्फ दूध का सेवन ही करते है, तब से उन्हें 'दूधाधारी' के नाम से जाना जाने लगा और यहीं से मठ का नामकरण हो गया 'दूधाधारी मठ'।
मठ की सीढ़िया चढ़ते ही सामने मोटी लौहे की सलाखों से बने मंदिर का मुख्य द्वार है। जिसके ऊपर लगे हुए सफेद मार्बल में लिखा है "श्री दूधाधारी मठ, स्थापित – संवत 1610" यानि सन 1554। मठ भले ही ब्रिटिश काल के पहले स्थापित हुआ था, लेकिन आज दिखाई देने वाले मठ का निर्माण ब्रिटिश काल मे हुआ था। जिससे मंदिर को बाहर से देखते ही मन में ब्रिटिश काल की झलक सामने आ जाती है।
मठ के प्रांगण में तीन मुख्य मंदिर हैं। राम जानकी मंदिर, श्री बालाजी मंदिर और हनुमान मंदिर। हनुमानजी मठ के इष्टदेव माने जाते हैं। राम जानकी मंदिर का िनर्माण पुरानी बस्ती में रहने वाले दाऊ परिवार ने कराया था। वहीं, बालाजी मंदिर का निर्माण नागपुर के भोसले वंश ने कराया था। मान्यता है कि वनवास के दौरान श्रीराम ने यहां विश्राम किया था। मठ में रामसेतु पाषाण भी है। रोजाना सैकड़ों भक्त इस मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
हनुमानजी का यह मंदिर सब मंदिरों से बिलकुल अलग है, क्योंकि इस मंदिर की सीढि़यां उत्तर की दिशा में हंै और दरवाजा दक्षिण की दिशा में है। इस मंदिर में भगवान श्री राम, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न और सीता देवी सभी की मूर्तियां हैं इसीलिए मंदिर को राम पंचायत कहा जाता है। त्योहार- राम नवमी, रथयात्रा, जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी, दशहरा, कार्तिक पूर्णिमा और दिवाली जैसे उत्सव बड़े आनंद से मनाए जाते हैं। लोगों की इस मंदिर में बहुत श्रद्धा और आस्था है। दूर-दूर से श्रद्धालू इस मंदिर में नतमस्तक होने और भगवान के दर्शन करने के लिए आते हैं।
यूं तो मठ में बलभद्रदास के बाद कई महंत हुए, जिन्होंने मठाधीश का पद संभाला। उन्हीं में से एक थे महंत वैष्णवदास। ऐसे महंत जो स्वतंत्रता की लड़ाई में जेल भी गए। उस समय ऐसा कोई भी निर्णय लेने से पहले मठ संगठन की सहमति लेना ज़रूरी माना जाता था। लेकिन जब महंत वैष्णवदास ने जेल जाने की सूचना संगठन को दी, तब उन्होंने कहा- 'स्वतंत्रता के लिये मैं जेल जाऊंगा, यह मैं आपसे अनुमति के लिये नहीं, केवल सूचना के बतौर कह रहा हूं'। महंत वैष्णवदास ही थे, जिन्होंने महिला उच्च शिक्षा के लिये एक बड़ा कदम उठाया था। इन्होंने ही रायपुर में डी.बी. महिला महाविद्यालय और संस्कृत महाविद्यालय की शुरुआत की।