Taali Review: नहीं गूंज पाई सुष्मिता सेन की 'ताली', फीके निकले आवाज, शानदार कहानी की डायलॉग्स ने बचाई लाज...
Sushmita Sen Movie " Taali " Review : मुंबई। बड़े होकर क्या बनोगे? 'मुझे मां बनना है। गोल गोल चपाती बनानी है। सबका ख्याल रखना है।' इस तरह के सवाल पर जब एक पुलिस वाले का बेटा ऐसा जवाब दे तो बच्चों के बीच हंसी का पात्र बनना तो तय है। आप भी यही सोच रहे होंगे लेकिन जवाब अगर एक ऐसा बच्चा दे, जो अपनी मूल पहचान से जूझ रहा है, तो आप क्या कहेंगे? एक ऐसा मानव शरीर जिसने जन्म तो लड़के के रूप में लिया है, लेकिन उसकी अंतर-आत्मा उसे चीख-चीख कर लड़की होने का एहसास दिला रही है। ऐसी ही एक कहानी को उजागर करती है, सुष्मिता सेन की हालिया रिलीज वेब सीरीज 'ताली'। तो चलिए आपको बताते हैं, कैसी है ये सीरीज, करते हैं रिव्यू....
कुछ ऐसी है वेब सीरीज की कहानी
जब एक बच्चे का जन्म होता है तब मां-बाप डॉक्टर से पूछते हैं...बेटा हुआ है या बेटी...गौरी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। जब उसका जन्म हुआ तब डॉक्टर ने उसके मां-बाप को बताया कि बेटा पैदा हुआ है। मां-बाप खुशी से झूमने लगे। बचपन से ही अपने बेटे गणेश को वो सारी चीजें करने पर मजबूर करने लगे जो समाज के हिसाब से एक लड़के को करना चाहिए। लेकिन, गणेश का मन चूड़ियों को देखकर मचलने लगा। उसे वीडियो गेम नहीं बार्बी डॉल पसंद आने लगीं। जब गणेश का ये सच उसके पिता के सामने आया तब उन्होंने उसे घर से बाहर निकाल दिया। हमेशा मां-बाप की छत्र छाया में रहा गणेश भटक गया। उसके पिता ने उसके जिंदा होते हुए उसका अंतिम संस्कार कर दिया। अब आगे क्या होगा? वह कहां जाएगा? समाज से कैसे लड़ेगा? गणेश से गौरी कब और क्यों बनेगा? ये सब जानने के लिए आपको वेब सीरीज देखनी पड़ेगी।
वेब सीरीज के निर्माता अर्जुन सिंग्ध बरन और करटक डी निशांदार की हिम्मत की दात देनी पड़ेगी। उन्होंने न सिर्फ मिस यूनिवर्स रह चुकीं सुष्मिता सेन को ट्रांसजेंडर का रोल ऑफर किया बल्कि उन्हें ये किरदार निभाने के लिए राजी भी किया। सुष्मिता को कास्ट करके जितना बेहतरीन काम अर्जुन और करटक ने किया है उससे कहीं ज्यादा काबिल-ए-तारीफ काम सुष्मिता सेन ने किया है। ऐसा इसलिए क्योंकि ट्रांसजेंडर की कहानी दिखाने के लिए सुष्मिता सेन को इस वेब सीरीज में सिर्फ एक्टिंग ही नहीं करनी पड़ी थी बल्कि एक ऐसा लुक भी धारण करना पड़ा था जिसके लिए शायद ही कोई और एक्ट्रेस राजी होती। उन्होंने अपना वजन बढ़ाया ग्लैमर छोड़ कहीं-कहीं अपने चेहरे पर दाढ़ी तक दिखाई। उन्होंने अपने लुक से लोगों को इस कदर प्रभावित कर दिया कि सिर्फ 'ताली' का पोस्टर देखकर ही लोग उन्हें छक्का कहने लगे।
लगते हैं वेब सीरीज के डायलॉग्स
सुष्मिता सेन के अलावा नितीश राठौर, अंकुर भाटिया, ऐश्वर्या नारकर, हेमांगी कवि और सुव्रत जोशी ने भी कमाल का काम किया है। क्षितिज पटवर्धन ने काफी बेहतरीन और दिल छू लेने वाले डायलॉग्स लिखे हैं। ये डायलॉग्स किसी बड़े तमाचे की तरह आपके मुंह पर आकर लगते हैं। वहीं ऑडियो एडिटर्स ने सुष्मिता सेन की आवाज पर कमाल का काम किया है। उन्होंने सुष्मिता की ओरिजनल आवाज को | रखते हुए उनमें इस कदर मॉड्यूलेशन किए हैं कि वह सचमें मर्दाना आवाज लगने लगती है।
'ताली' के कुछ छह एपिसोड हैं। हर एपिसोड तकरीबन 30 मिनट का है। यानी पूरी सीरीज मात्र तीन घंटे की है। लेकिन, इस तीन घंटे में इमोशनल ड्रामा बहुत कम देखने को मिला। जैसे ही एक एपिसोड माहौल बनाना शुरू करता है वैसे ही 30 मिनट खत्म हो जाते हैं। एपिसोड के खत्म होते ही कहीं न कहीं कनेक्ट भी छूट जाता है। ऐसे में वेब सीरीज वो समा नहीं बांध पाती जो उसे बांधना चाहिए। श्रीगौरी सावंत की जिंदगी में कई सारी घटनाएं हुई हैं। लेकिन, उन घटनाओं को उतनी अच्छी तरीके से नहीं दिखाया गया है। कहीं-न-कहीं इसमें निर्देशक और म्यूजिक डायरेक्टर की गलती है।
देखें या नहीं?
साल 2019 में ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम लाया गया था। लेकिन, चार साल बाद भी ट्रांसजेंडर्स को समानता की नजरों से नहीं देखा जाता है। इसलिए ये वेब सीरीज हर किसी को देखनी चाहिए। उन्हें देखना चाहिए की ट्रांसजेंडर्स सिर्फ ताली बजाने के लिए नहीं बने हैं। वे हम आम लोगों की तरह नौकरी भी कर सकते हैं। ये सीरीज आम लोगों के लिए जितनी जरूरी है उतनी ही जरूरी ट्रांसजेंडर्स के लिए भी है। क्योंकि आज भी देश में कुछ ऐसे ट्रांसजेंडर्स हैं जो बच्चे के जन्म के वक्त ताली बजाने और ट्रेन में पैसा मांगने को ही अपना काम मानते हैं।
कौन हैं श्रीगौरी सावंत जिन पर आधारित है ये वेब सीरीज? अब जिन पर यह वेब सीरीज बनी है उनके बारे में बताते हैं। श्रीगौरी सावंत एक ट्रांसजेंडर सोशल वर्कर हैं। वे पिछले कई सालों से बेसहारा किन्नरों के हितों के लिए काम कर रही हैं। श्रीगौरी ने ही साल 2009 में ट्रांसजेंडर्स को मान्यता दिलाने के लिए अदालत में पहला हलफनामा दाखिल किया था। इस याचिका की सुनवाई के बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर को कानूनी पहचान दी थी।