मनोज मुंतशिर : पिता ने मुंबई जाने के लिए इस शर्त पर 700 रुपए दिए थे कि असफल होने पर शुक्ला सरनेम लिखना होगा

फिल्म आदिपुरुष के डायलॉग को लेकर मनोज मुंतशिर विवादों में हैं. यहां पढ़िए एक किसान और पुरोहित के बेटे की मशहूर कवि और लेखक बनने की कहानी.

Update: 2023-06-19 09:42 GMT

मनोरंजन डेस्क. फिल्म आदिपुरुष के डायलॉग्स को लेकर मनोज मुंतशिर फिर विवादों में हैं. इससे पहले सड़कों और शहरों के नाम अकबर, हुमायूं और जहांगीर के नाम पर होने को लेकर अपने वीडियो के कारण अपनी ही बिरादरी के लोगों के निशाने पर आए थे. इसके बाद केसरी फिल्म के मशहूर गाने तेरी मिट्टी को लेकर साहित्यिक चोरी का आरोप लगा था. ताजा विवाद आदिपुरुष के डायलॉग्स को लेकर है, जिसमें हनुमान व अन्य देवी देवताओं के नाम पर फूहड़ डायलॉग पर ट्रोल हो रहे हैं. फिल्म को बैन करने की मांग की जा रही है. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से लेकर आप नेता संजय सिंह विरोध कर चुके हैं. यह तो फिल्मों की बात है. आज हम मनोज मुंतशिर की बात करेंगे. पहले यह बता दें कि मुंतशिर एक अरबी शब्द है. इसका अर्थ होता है, अस्त-व्यस्त, तितर-बितर, बिखरा हुआ, चिंतित, उद्विग्न या परेशान. मनोज का सरनेम शुक्ला है. मुंतशिर उनका तखल्लुस या पेन नेम है. आगे पढ़ें, मनोज के मुंतशिर बनने की कहानी...

मुंबई में कड़ा संघर्ष, फुटपाथ पर बिताई रातें...

मनोज मुंतशिर का जन्म 27 फरवरी 1976 को यूपी के अमेठी के गौरीगंज में हुआ. उनके पिता शिवप्रताप शुक्ला किसान थे. मां प्रेमा शुक्ला प्राइमरी टीचर थीं. उनका परिवार आज भी लखनऊ के गौरीगंज नगर पालिका में वार्ड नंबर-16 में रहता है. मां के सरकारी नौकरी होने के बाद भी परिवार में आर्थिक दिक्कतें थीं. मां का वेतन सिर्फ 500 रुपए था. पिता 6 महीने खेती और 6 महीने पुरोहिती करते थे. बेटे को अच्छी शिक्षा देने के लिए उन्होंने कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ाया. मनोज बचपन से ही लिखने पढ़ने के शौकीन थे. आठवीं क्लास में रहने के दौरान इन्होंने दीवान ए ग़ालिब किताब पढ़ी थी. उस वक्त में उर्दू नहीं आती थी, इसलिए वे किताब का भावार्थ समझ नहीं पाए थे. ब्राह्मण परिवार से होने के कारण आसपास उर्दू का माहौल भी नहीं था. एक दिन मस्जिद के नीचे से एक सेकेंड हैंड उर्दू की किताब उन्होंने 2 रुपए में खरीदी. उसमें उर्दू के शब्दों के बाजू में हिंदी के शब्दों में ट्रांसलेशन था. इस तरह उन्होंने उर्दू सीखी. लखनऊ के सेंट फ्रांसिस कॉलेज से स्नातक करने के बाद उन्होंने व्यवसाय में डिग्री हासिल करने के लिए लखनऊ यूनिवर्सिटी में अपनी शिक्षा जारी रखी. स्नातक के बाद उन्होंने अपने रिश्तेदार के गहने की दुकान में काम किया.

पिता ने रखी शर्त, मनोज ने चुनौती के रूप में स्वीकारा

लिखने के शौक के कारण मनोज मुंतशिर ने पत्रकारिता की. उन्होंने कई पत्रिकाओं के लिए लिखा. फिर उन्होंने कवि के रूप में शुरुआत की. अपने गानों में उर्दू के शब्दों का प्रयोग करने के लिए उन्होंने उर्दू सीखी. इसके बाद उन्होंने अपने उपनाम में शुक्ल की जगह मुंतशिर लगाने लगे. उनके घरवालों को जब उनके सरनेम बदलने का पता चला तो काफी बवाल भी मचा. उन्होंने मनोज से सरनेम बदलने के लिए कहा पर मनोज ने ठान लिया था कि वे फिल्मों में मनोज मुंतशिर के नाम से गाने लिखेंगे इसलिए वे अड़े रहे. तब तक वे लखनऊ ही में थे. उनके पिता व परिवार ने पंडित परिवार के होने के नाते कभी मुंतशिर शब्द नहीं सुना था. इस पर उन्होंने विरोध करते हुए पूछा कि सरनेम बदलने के लिए उन्हें क्या चाहिए? तब मनोज ने 300 रुपए की मांग की थी.

दरअसल उस समय लखनऊ से मुंबई की टिकट की कीमत 300 रुपए थी और मनोज मुंबई जाना चाहते थे. पिता ने पूछा क्यों जाना चाहते हो तो मनोज ने कहा कि लेखक बनने. इस पर पिता ने कहा कि मैं तुम्हें तुम्हारी मांगी रकम दे दूंगा पर शर्त यह है कि यदि तुम मुंबई में जाकर सफल नहीं हो पाए तो वापस आकर मुंतशिर सरनेम बदल कर वापस शुक्ला रख लोगे. इस पर मनोज के हामी भरते ही पिता ने उन्हें मुंबई जाने के साथ ही वापसी की टिकट के रुपए और 100 रुपए एक्स्ट्रा मिला कर 700 रुपए दिए थे. मनोज के पिता को लगा था कि उनका बेटा असफल होकर वापस आ जाएगा पर मनोज मुंबई में जाकर जम गए और मनोज मुंतशिर के नाम से एक से एक गाने व डायलॉग लिखने लगे. इसी नाम से फेमस हो गए.

आकाशवाणी में किया काम, 135 रुपए सैलरी

मनोज मुंतशिर ने फिल्मी दुनिया में स्थापित होने के लिए काफी संघर्ष किया. फिल्मों में आने से पहले 1997 में इलाहाबाद आकाशवाणी में भी काम कर चुके हैं. वहां उन्हें 135 रुपए सैलरी मिलती थी. वे राइटर बनना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने 1999 में अनूप जलोटा के लिए भजन लिखा. इसके लिए उन्हें 3000 रुपये मिले थे. मुंबई में आने के बाद मनोज का संघर्ष बढ़ गया. उन्होंने फुटपाथ पर कई रातें बिताई. संघर्ष करते हुए उनके काम को स्टार टीवी के एक अधिकारी ने देखा था. एक दिन उस अधिकारी ने उन्हें अमिताभ बच्चन से मिलवाने की बात कही, जिस पर मनोज को यह मजाक लगा. उन्होंने एक होटल में मनोज को अमिताभ से मिलवाया. यह 2005 के समय की बात थी. इसके बाद अमिताभ की पहल पर मनोज को केबीसी के लिए गीत लिखने का काम मिला. उन्हें आगे भी इस काम के बाद काम मिलते गए.

इसके बाद मनोज ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. वे कवि, गीतकार और पटकथा लेखक के रूप में बॉलीवुड में अपना नाम जमाने लगे. उनके द्वारा लिखे गए हार्ट टचिंग सांग्स लोगों को बहुत पसंद आते हैं. 2014 में उन्होंने फिल्म एक विलन का गाना गलिया... लिखा, जिसे लोगों ने काफी पसंद किया. इस गाने के लिए उन्हें कई सम्मान के साथ ही उत्कृष्ट गीतकार के लिए आइफा अवॉर्ड भी मिला. फिल्म केसरी के प्रसिद्ध देश भक्ति गीत तेरी मिट्टी में मिल जावा के लिए भी दूसरी बार आइफा अवार्ड उन्हें मिला. उन्हें कुल 3 बार सर्वश्रेष्ठ गीतकार के लिए आइफा पुरस्कार मिल चुका है. इसके अलावा सर्वश्रेष्ठ गीतकार के लिए फिल्म फेयर पुरुस्कारों के साथ और भी बहुत कुछ अवार्ड मिला है. उन्होंने कई बॉलीवुड फिल्मों के लिए पटकथा लिखी है, जिसमें बागी-2 और एमएस धोनी द अनटोल्ड स्टोरी है. 30 सितंबर 2022 को दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में मनोज मुंतशिर को फिल्म साइना के लिए बेस्ट लिरिक्स का अवार्ड भी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों मिला है.

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मनोज मुंतशिर के महत्वपूर्ण गाने व लेखन

2016 में मुंतशिर ने रुस्तम फिल्म के लिए तेरे संग यारा... गाने के बोल लिखे थे, जो काफी हिट हुई थी. उसके बाद अजय देवगन इलियाना डिक्रूज अभिनीत फिल्म बादशाहो के लिए लिखे गए गाने मेरे रस्के कमर के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्म फेयर पुरस्कार मिला था. यह गाना देश भर में छाया था और लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ था. मुंतशिर को मिर्ची म्यूजिक अवार्ड और जी सिने अवॉर्ड भी मिला है. उन्होंने फिल्म एमएस धोनी के लिए कौन तुझे गाना भी लिखा है. बागी-2 और एमएस धोनी द अनटोल्ड स्टोरी की पटकथा भी उन्होंने लिखी है. परिणीति चोपड़ा अभिनीत खिलाड़ी साइना नेहवाल के जीवन पर बनी बायोपिक साइना फिल्म के गीत भी उन्होंने लिखे हैं. 2019 में उनकी एक किताब मेरी फितरत है मस्ताना नाम से भी आ चुकी है. उन्होंने बाहुबली फिल्म के चर्चित डायलॉग भी लिखे हैं, जिसमें यदि किसी ने देवसेना को हाथ लगा दिया तो समझ लो बाहुबली की तलवार को हाथ लगा दिया, और औरतों पर हाथ डालने वालों की उंगलियां नहीं काटते, काटते हैं उनका गला जैसे प्रसिद्ध डायलॉग लिखे हैं.

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