स्कूल में घोटाला: छत्तीसगढ़ में ट्रेजरी के सिस्टम को बायपास कर इस तरह किया गया 77 लाख का गड़बड़झाला

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Update: 2022-12-21 12:54 GMT

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बिलासपुर। स्कूल के व्याख्याता के खाते में महज 11 महीनों में 77 लाख की राशि पहुंच गई और किसी कार्यालय को भनक तक नहीं लगी यह बात अब उच्च कार्यालय को भी पच नहीं रही है यही वजह है कि उप संचालक लोक शिक्षण संचालनालय ने पत्र जारी करके जेडी और डीईओ से पूरे मामले की जानकारी मांगी है लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इससे पहले अगस्त माह में अपर संचालक कोष लेखा एवं पेंशन ने 6 सदस्यीय टीम भेजकर जो जांच की थी उसकी रिपोर्ट सार्वजनिक क्यों नहीं हुई और उसमें दोषी किसे पाया गया । 23 अगस्त 2022 को मामला सामने आने के बाद अपर संचालक द्वारा पत्र जारी कर गिरीश कोल्हे के नेतृत्व में कुल 6 सदस्यीय जांच कमेटी बनाई थी लेकिन किसी पर भी कार्यवाही नहीं हुई जबकि बताया जाता है कि पत्र में संचालनालय कोष लेखा एवं पेंशन विभाग ने जो आशंका जाहिर की थी वह सही थी। ट्रेजरी बिलासपुर में इस मामले में जबरदस्त चूक हुई है। बेलतरा के मामले में लिपिक कैलाश चंद्र सूर्यवंशी की भूमिका सबसे संदिग्ध है और उनके द्वारा बिल तैयार कर हर बार ट्रेजरी के एक ऐसे कर्मचारी नेता को दी जाती थी, जिसकी जिम्मेदारी सीधे बिल लेने की थी ही नहीं। बिल काउंटर पर जो कर्मचारी बिल लेने के लिए ट्रेजरी द्वारा नियुक्त किया गया था उसके पास जाना चाहिए था लेकिन ऐसा न करके हर बार बिल संबंधित कर्मचारी के पास पहुंचा दिया जाता था। यह सीधे तौर पर सिस्टम को बाईपास करने वाला मामला था और इसकी पुष्टि दस्तावेजों से की जा सकती है क्योंकि बिल रिसीव करने वाले कर्मचारी के हस्ताक्षर उसमें अंकित होते हैं । यही नहीं तत्कालीन समय में बिल भी बिलासपुर ट्रेजरी से जुड़ा हुआ एक कर्मचारी ही बनाता था जिसकी पदस्थापना बिलासपुर जिले में ही अब अन्य कार्यालय में है। एक स्कूल विशेष का बिल ट्रेजरी के कर्मचारी द्वारा बनाया जाना समझ से परे है। इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि ऐसा अन्य स्कूलों और कार्यालयों के मामले में भी हुआ होगा और हो सकता है कि जिसे महज 77 लाख का घोटाला माना जा रहा है वह कई करोड़ का घोटाला हो। क्योंकि बेलतरा स्कूल का मामला आपसी लड़ाई में 3 साल बाद सामने आ गया इसलिए इस पूरे मामले का खुलासा हो गया।

आपसी लड़ाई में खुल गई पोल

शासकीय उच्चतर माध्यमिक शाला बेलतरा के तत्कालीन प्राचार्य पी एल मरावी, व्याख्याता पुन्नीलाल कुर्रे और सहायक ग्रेड 2 कैलाश चंद्र सूर्यवंशी ने मिलकर ऐसा खेल खेला कि महज 11 महीने में 77 लाख की राशि के वारे न्यारे हो गए और ट्रेजरी को यह पता भी नहीं चला कि उसका कोषालय लूटा जा रहा है इस मामले का भी खुलासा शायद नहीं होता यदि बाद में आए प्राचार्य एन पी राठौर का विवाद , पुन्नीलाल कुर्रे और कैलाशचंद्र सूर्यवंशी से नहीं होता। दरअसल, कार्यभार ग्रहण करने के बाद से प्राचार्य एन पी राठौर का विवाद लगातार कुर्रे और सूर्यवंशी से होता आ रहा था इसकी पुष्टि अनुसूचित जाति थाना सरकंडा और थाना रतनपुर में दर्ज मामलों से होती है जहां कई शिकायतें प्राचार्य के खिलाफ की गई थी हालांकि सारे मामले झूठे पाए गए लेकिन शिकायतों में कहीं कोई कमी नहीं थी यही नहीं बेलतरा स्कूल में आए दिन पुलिस का आना जाना था क्योंकि फर्जी नाम से भी शिकायतों का दौर जारी था और इसी से प्राचार्य परेशान थे। तंग आकर जब प्राचार्य मेडिकल अवकाश पर चले गए तो प्रभार व्याख्याता पी एल कुर्रे ने स्वयं ले लिया और जब प्राचार्य छुट्टी से लौटे तो प्राचार्य बन कर बैठे कुर्रे ने न तो उन्हें प्रभार दिया और न ही उनका वेतन जारी किया जिसकी तस्दीक पीएम राठौर द्वारा जिला शिक्षा अधिकारी से लेकर स्कूल शिक्षा विभाग मे की गई शिकायतों से होता है , जिला शिक्षा अधिकारी बिलासपुर दिनेश कौशिक के हस्तक्षेप के बाद जब प्राचार्य एनपी राठौर को प्रभार मिला तो फिर उन्होंने पूरे मामले को खंगालना शुरू किया और इसी के चलते 2022 में जा कर 2018-19 में किए गए इस घोटाले का खुलासा हुआ।

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