Supreme Court News: वसीयत को लेकर सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: वसीयतनामा के आधार पर नामांतरण करने पर कानूनी प्रतिबंध नहीं.....

Supreme Court News: वसीयत और जमीनों के नामांतरण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जमीनों का नामांतरण करने से इसलिए इंकार नहीं कर सकते कि यह वसीयतनामा है। वसीयत के आधार पर जमीनों के नामांतरण पर कोई कानूनी प्रतिबंध नहीं है। कोर्ट ने कहा, यदि वैधानिक उत्तराधिकारियों द्वारा कोई गंभीर विवाद नहीं उठाया गया हो और कोई कानूनी रोक न हो, तो वसीयत के आधार पर नामांतरण से इंकार करना राजस्व हितों के प्रतिकूल होगा।

Update: 2025-12-24 07:12 GMT

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Supreme Court News: दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने वसीयत को लेकर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि जमीनों का नामांतरण करने से इसलिए इंकार नहीं कर सकते कि यह वसीयतनामा है। वसीयत के आधार पर जमीनों के नामांतरण पर कोई कानूनी प्रतिबंध नहीं है। इस फैसले के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के फैसल को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने पंजीकृत वसीयत के आधार पर उत्तराधिकारी के पक्ष में किए गए नामांतरण को बहाल कर दिया है।

मध्य प्रदेश के मौजा भोपाली की कृषि भूमि रोडा उर्फ रोडीलाल के नाम पर दर्ज थी। नवंबर 2019 में उनके निधन के बाद, याचिकाकर्ता ताराचंद्र ने मई 2017 में निष्पादित पंजीकृत वसीयत के आधार पर राजस्व दस्तावेजों में नामांतरण के लिए आवेदन किया। तहसीलदार ने सार्वजनिक सूचना जारी कर दावा-आपत्ति मंगाई। वसीयत के दौरान जिन लोगों ने बतौर साक्षी हस्ताक्षर किए गए थे, उनके बयान के बाद नामांतरण की अनुमति दे दी। भंवरलाल, जिसने एक सर्वे नंबर पर अपंजीकृत बिक्री अनुबंध और विपरीत कब्ज़े के आधार पर दावा करते हुए नामांतरण को चुनौती दी। मामले की सुनवाई पहले एसडीओ और फिर आयुक्त के कोर्ट में हुई। दोनों ने अपील खारिज कर दी। आयुक्त के आदेश को भंवरलाल ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने राजस्व अधिकारियों के आदेशों को रद्द कर दिया और हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के तहत वैधानिक उत्तराधिकारियों (या उनके अभाव में राज्य) के नाम नामांतरण का निर्देश दिया।

मध्य प्रदेश भू-राजस्व संहिता नियम, 2018 में वसीयत को नामांतरण हेतु अधिकार अर्जन का एक मान्य तरीका माना गया है

अपील स्वीकार करते हुए, सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने कहा कि हाई कोर्ट यह जांच करने में विफल रहा कि क्या राजस्व अधिकारियों के आदेशों में कोई क्षेत्राधिकार संबंधी त्रुटि या कानूनी खामी थी, जो अनुच्छेद 227 के तहत हस्तक्षेप को उचित ठहराती। डिवीजन बेंच ने कहा कि मध्य प्रदेश भूमि राजस्व संहिता, 1959 की धारा 109 और 110 भूमि अधिकारों के अर्जन को केवल बिक्री या उपहार जैसे तरीकों तक सीमित नहीं करतीं। अधिकार वसीयत के माध्यम से भी अर्जित किए जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त, मध्य प्रदेश भू-राजस्व संहिता (भू-अभिलेखों में नामांतरण) नियम, 2018 में वसीयत को नामांतरण हेतु अधिकार अर्जन का एक मान्य तरीका माना गया है।

तहसीलदार वसीयत के आधार पर नामांतरण आवेदन स्वीकार कर सकते हैं

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वसीयत के आधार पर नामांतरण का आवेदन प्रारंभिक स्तर पर खारिज नहीं किया जा सकता। इस संदर्भ में, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के पूर्ण पीठ का फैसला आनंद चौधरी बनाम मध्य प्रदेश राज्य का हवाला दिया गया, जिसमें स्पष्ट किया गया था कि तहसीलदार वसीयत के आधार पर नामांतरण आवेदन स्वीकार कर सकते हैं। वसीयत की वैधता या प्रामाणिकता से जुड़े विवाद सक्षम दीवानी अदालत द्वारा तय किए जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नामांतरण से कोई स्वत्व, अधिकार या हित उत्पन्न नहीं होता; यह केवल राजस्व, वित्तीय उद्देश्यों के लिए होता है। यदि वैधानिक उत्तराधिकारियों द्वारा कोई गंभीर विवाद नहीं उठाया गया हो और कोई कानूनी रोक न हो, तो वसीयत के आधार पर नामांतरण से इंकार करना राजस्व हितों के प्रतिकूल होगा। याचिका की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के हस्तक्षेप को त्रुटिपूर्ण मानते हुए आदेश को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता के पक्ष में नामांतरण बहाल कर दिया है।

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