बैंक मित्र और बैंक सखियों से छत्तीसगढ़ में संवर रहा आदिवासियों का जीवन, 36 हजार से अधिक तेंदूपत्ता संग्राहकों को 12 करोड़ रुपए से ज्यादा पारिश्रमिक भुगतान

छत्तीसगढ़ में तेंदूपत्ता को हरा सोना माना जाता है, जो वनांचल के संग्राहकों की अतिरिक्त आय का मुख्य जरिया है...

Update: 2024-08-21 08:30 GMT

रायपुर। छत्तीसगढ़ में तेंदूपत्ता को हरा सोना माना जाता है, जो वनांचल के संग्राहकों की अतिरिक्त आय का मुख्य जरिया है। गर्मी के दिनों में जब ग्रामीणों के पास न तो खेतों में काम होता है और न ही घर में कुछ काम, तब इसी तेंदूपत्ता यानी हरा सोना का संग्रहण उन्हें मेहनत एवं संग्रहण के आधार पर भरपूर पारिश्रमिक देता है। वनांचल में रहने वाले ग्रामीणों के लिये तेंदूपत्ता के प्रति मानक बोरा की दर में हुई वृद्धि भी खुशियां जगा दी है। प्रदेश के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय द्वारा तेंदूपत्ता का प्रति मानक बोरा राशि 5500 रुपए किए जाने के बाद संग्राहकों में अपार खुशी है। वहीं तेंदूपत्ता संग्राहकों को तेंदूपत्ता पारिश्रमिक राशि स्थानीय स्तर पर बैंक सखियों के माध्यम से भुगतान होने के फलस्वरूप विशेषकर दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों के संग्राहकों को बहुत सहूलियत हो रही है। बस्तर जिले के अंदरूनी ईलाके के संग्राहकों को तेंदूपत्ता पारिश्रमिक राशि का भुगतान बैंक मित्र और बैंक सखियों के माध्यम से किया जा रहा है।

बस्तर में तेंदूपत्ता सीजन 2024 में संग्रहित तेंदूपत्ता का 36 हजार 229 संग्राहकों को 12 करोड़ 43 लाख 95 हजार 749 रुपए पारिश्रमिक राशि अपने गांव के बैंक मित्र एवं बैंक सखियों द्वारा भुगतान की गयी है। बैंक मित्र पखनार रामो कुंजाम ने बताया कि वह इलाके के 5 ग्राम पंचायतों के 250 से ज्यादा तेंदूपत्ता संग्राहकों को तेंदूपत्ता पारिश्रमिक राशि का भुगतान कर चुके हैं। वहीं लोहण्डीगुड़ा ब्लॉक के कस्तूरपाल के बैंक मित्र सामू कश्यप ने 50 से अधिक संग्राहकों तथा बस्तर विकासखण्ड के भानपुरी की बैंक सखी जमुना ठाकुर ने 56 से ज्यादा संग्राहकों को भुगतान किया है। वहीं बकावंड ब्लॉक के डिमरापाल की बैंक सखी तुलेश्वरी पटेल अब तक डिमरापाल एवं छिंदगांव के 90 से अधिक तेंदूपत्ता संग्राहकों को डेढ़ लाख रुपए से ज्यादा का भुगतान कर चुकी हैं।

वनमंडलाधिकारी एवं प्रबंध संचालक जिला सहकारी यूनियन जगदलपुर उत्तम गुप्ता के मुताबिक जिले के सभी 7 विकासखण्डों के अंतर्गत 15 प्राथमिक वनोपज सहकारी समितियों के कुल 36 हजार 229 संग्राहकों को 12 करोड़ 43 लाख 95 हजार 749 रुपए पारिश्रमिक राशि अपने गांव के बैंक मित्र एवं बैंक सखियों से भुगतान किया जा रहा है। जिसके तहत लोहण्डीगुड़ा ब्लॉक के 13 ग्राम पंचायतों के 1947 संग्राहकों को 79 लाख 47 हजार 665 रुपए, तोकापाल विकासखण्ड के एक ग्राम पंचायत के 76 संग्राहकों को 03 लाख 36 हजार 193 रुपए,बास्तानार ब्लॉक के 22 ग्राम पंचायतों के 1831 संग्राहकों को 79 लाख 69 हजार 995 रुपए,बस्तर विकासखण्ड के 65 ग्राम पंचायतों के 10 हजार 78 संग्राहकों को 02 करोड़ 68 लाख 72 हजार 736 रुपए, दरभा ब्लॉक के 21 ग्राम पंचायतों के 1782 संग्राहकों को एक करोड़ 37 लाख 71 हजार 934 रुपए तथा बकावंड विकासखण्ड के 86 ग्राम पंचायतों के 16 हजार 510 संग्राहकों को 05 करोड़ 45 लाख 47 हजार 614 रुपए पारिश्रमिक राशि का भुगतान स्थानीय बैंक सखियों द्वारा किया जा रहा है। जिससे जहां ग्रामीण संग्राहकों को भुगतान प्राप्त करने में सुविधा हुई, वहीं इन बैंक सखियों को भी अच्छी कमीशन राशि मिली।

सुशासन से मिला स्वावलंबन

0 बिहान से जुड़कर महिलाएं बन रहीं हैं लखपति

महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने के लिए शासन द्वारा संचालित योजनाएं धरातल पर सार्थक साबित हो रहीं हैं। इसी कड़ी में सरगुजा जिले के लखनपुर विकासखंड निवासी मंजू राजवाड़े ने अपनी मेहनत और दृढ़ संकल्प से एक सफल उद्यमी बनने की कहानी को फलीभूत की हैं। उनकी कहानी से क्षे़त्र की अनेक महिलाओं को प्रेरणा मिली हैं और वे लखपति दीदी के रूप में एक मिसाल बनकर सामने आई है। लखपति दीदी मंजू राजवाड़े ने बताया कि उनके पति रुपचंद राजवाड़े कृषि कार्य से जुडे़ हैं। उन्होंने बताया कि पहले उनकी घर आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी। घर परिवार की जिम्मेदारी और आर्थिक तंगी से जूझ रही थीं। इस दौरान मंजू राजवाड़े को छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन बिहान योजना के बारे में जानकारी मिली और बिहान योजना से जुड़कर उनकी जीवनशैली में बड़ा बदलाव आया है। मंजू राजवाड़े ने गांव की 10 महिलाओं के साथ मिलकर ‘‘खुशी स्व-सहायता समूह’’ बनाया। महिला समूह के माध्यम से बैंक में खाता खोलकर छोटी-छोटी राशि की बचत करने लगे। सबसे पहले उन्हें व्यवसाय के लिए रिवोल्विंग फंड में 15 हजार रुपए की सहायता मिली। जिससे उन्होंने अपने कच्चे मकान में छोटा सा किराने की दुकान खोली। कठिन परिश्रम और दृढ़ संकल्प से किराने की दुकान अच्छी चलने लगी। बैंक से लगातार लेन-देन होने पर उनका क्रेडिट बढ़ते ही चला गया। जिसके कारण बैंक से लोन लेकर उन्होंने अपने व्यवसाय को और आगे बढ़ाया। उन्होंने गांव में छोटी सी दुकान से शुरुआत की थी। आज किराना दुकान के साथ-साथ उन्होंने चप्पल जुता और कपड़े का भी दुकान खोल लिया है। मेहनत और कठिन परिश्रम से उन्होंने अपना पक्का मकान भी बना लिया है। छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन से उनकी जीवनशैली में बड़ा बदलाव लाया है। वर्तमान में उनकी सालाना बचत एक लाख रुपए तक हो जाती है। छत्तीसगढ़ शासन की बिहान योजना से जुड़कर श्रीमती राजवाड़े आज लखपति दीदी की सूची में शामिल हैं। उन्होंने महिलाओं को रोजगार और स्वावलंबी बनाने के लिए मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री का आभार व्यक्त करते हुए अपनी खुशी जाहिर की। छत्तीसगढ़ सरकार की महत्वाकांक्षी योजना से जुड़कर महिलाएं अपने सपनों को पूरा कर रही हैं।

मनरेगा से बन रहे हैं बकरी पालन शेड

0 आजीविका के साथ आर्थिक रूप से सशक्त हो रहे छत्तीसगढ़ के लोग

छोटे-छोटे स्वरोजगारों को अपनाकर लोग आर्थिक रुप से आगे बढ़ रहे हैं और वर्तमान समय में लोगों का रुझान बकरीपालन की तरफ तेजी से बढ़ते जा रहा है। राज्य सरकार भी स्वरोजगार को प्रोत्साहित करने का काम कर रही है। ऐसे में छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचल के किसान बकरीपालन कर अपनी सफलता की नई कहानी गढ़ रहे हैं और लोगों के लिए नई मिसाल बन रहे हैं। ऐसा ही है हरदीविशाल का रहने वाले कांशीराम का जिन्होंने अपनी किस्मत को दूसरों के भरोसे पर नहीं छोड़ा बल्कि बदलते समय के साथ अपने को मजबूत बनाया और अपनी मेहनत के बल से अपनी किस्मत को बदल दिया। जांजगीर-चांपा जिले के बलौदा विकासखण्ड की ग्राम पंचायत हरदीविशाल निवासी कांशीराम अपने परिवार चलाने के लिए वह अपने खेती-किसानी पर ही निर्भर था और अपने परिवार का गुजारा चलाता था। इसके अलावा उनकी आय का कोई अन्य जरिया नहीं था। फिर कुछ साल पहले उन्होंने बकरी पालन कार्य शुरू किया और कम समय में ही बकरी पालन के व्यवसाय से अच्छा लाभ अर्जित करने लगा, लेकिन उनके सामने एक बड़ी समस्या खड़ी थी कि जिस घर में वह बकरी पालन का कार्य करता था, वह मिट्टी का था और जर्जर हो चुका था। ऐसे में बारिश और ठंड में बकरियों को सुरक्षित रखना उनके लिए मुश्किल हो रहा था। बीमारियों के चलते कई बार बकरियों की मृत्यु भी हो जाती थी, जिससे उन्हें बहुत अधिक नुकसान उठाना पड़ता था, जितनी भी आमदनी बकरीपालन से होती थी, उससे ही गुजरा बसर चल रहा था।

कांशीराम बताते हैं कि उनके पास वर्तमान में 20 बकरी है। एक वर्ष के अंतराल में चार बकरी को बेचकर बीस हजार रुपया कमाया और अपने परिवार का जीवन यापन में खर्च किया एवं चार वर्ष के अंतराल में 40 बकरी को बेचकर दो लाख रूपये कमाया। इस आमदनी से बच्चों की पढ़ाई, खेत एवं घर बनाने में खर्च किया, लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई थी क्योंकि अब भी बकरियों को रखने के लिए उनके पास कोई पक्का घर नहीं था। ऐसे में कांशीराम बताते हैं कि इस समस्या के समाधान के लिए उन्होंने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के व्यक्तिगत हितग्राही मूलक कार्य के तहत ग्राम पंचायत में बकरी पालन शेड के लिए आवेदन किया। आवेदन की मंजूरी के बाद 93 हजार 63 रुपये की प्रशासकीय स्वीकृति मिली और एक पक्का शेड बनवाया। इस निर्माण कार्य के दौरान कांशीराम के परिवार को 52 दिनों का रोजगार भी प्राप्त हुआ। शेड बनने के बाद कांशीराम ने अपनी बकरियों को सुरक्षित छत प्रदान किया, जिससे उनकी बकरियों की सेहत में सुधार हुआ और उनकी आय में भी बढ़ोतरी हुई। कांशीराम का कहना है कि अगर मनरेगा से शेड बनाने में मदद नहीं मिली होती, तो यह उनके लिए संभव नहीं था। अब वे अपने बकरी पालन व्यवसाय को और बढ़ाने की योजना बना रहे हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति और मजबूत होगी और परिवार की आय से वह अपने बकरी पालन के व्यवसाय को आगे बढ़ा सकेगा। 

Tags:    

Similar News