High Court News: पत्नी की कॉल डिटेल मांगना निजता का उल्लंघन, हाईकोर्ट ने कहा- दबाव बनाने पर माना जाएगा घरेलू हिंसा
High Court News: एक पति ने पत्नी की चरित्र पर संदेह व्यक्त करते हुए सेलफोन का कॉल डिटेल सार्वजनिक करने की मांग की थी। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने इसे निजता के अधिकार का उल्लंघन मानते हुए याचिका को खारिज कर दिया है। हाई कोर्ट परिवार न्यायालय के फैसले काे बरकरार रखते हुए विवाह विच्छेद तलाक की याचिका को नामंजूर कर दिया है। मामले की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने कहा, पति अगर पत्नी पर या पत्नी, पति पर इस तरह का दबाव बनाता है तो इसे घरेलू हिंसा की श्रेणी में माना जाएगा।
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High Court News: बिलासपुर। पति द्वारा पत्नी से विवाह विच्छेद की मांग करने वाली याचिका को हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है। पति ने पत्नी के मोबाइल का कॉल डिटेल पेश करने की मांग की थी। मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस राकेश मोहन पांडेय ने कहा कि पति पत्नी को अपने मोबाइल या बैंक खाते का पासवर्ड साझा करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है। पति अगर इस संबंध में पत्नी पर दबाव बनाता है तो यह घरेलू हिंसा माना जाएगा। कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक निजता और पारदर्शिता की आवश्यकता और साथ ही रिश्ते में विश्वास के बीच संतुलन होना चाहिए।
याचिकाकर्ता चंद्रकांत महिलांगे ने प्रथम अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश, परिवार न्यायालय, दुर्ग के आदेश को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। परिवार न्यायालय ने याचिकाकर्ता के उस मांग को खारिज कर दिया था जिसमें उसने पत्नी के सेलफोन का कॉल डिटेल पेश करने की मांग की थी। याचिकाकर्ता का चार जुलाई 022 को गांव में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुआ था।
याचिकाकर्ता पति ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(1a) के तहत विवाह विच्छेद के लिए याचिका दायर की थी। पत्नी पर आरोप लगाते हुए कहा कि शादी के 15 दिन बाद अपने माता-पिता के घर गई और उसके तुरंत बाद उसका व्यवहार काफी बदल गया। याचिका के अनुसार पत्नी ने उसकी मां और भाई के साथ दुर्व्यवहार किया। सितंबर और अक्टूबर के महीने में, पत्नी फिर से अपने मायके गई और जब उसने उससे संपर्क किया, तो उसने उसके साथ जाने से साफ इनकार कर दिया।
याचिकाकर्ता ने 7 अक्टूबर 2002 को वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना के लिए हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के तहत याचिका दायर की। 14 अक्टूबर 2022 को याचिकाकर्ता की पत्नी ने पारिवारिक न्यायालय, राजनांदगांव के समक्ष सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक आवेदन दायर किया और याचिकाकर्ता की मां, पिता और भाई के खिलाफ घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत कार्रवाई की मांग की। इसके अलावा महिला थाना, राजनांदगांव के समक्ष अपने ससुराल वालों के खिलाफ शिकायत भी दर्ज कराई गई। इसके बाद, याचिकाकर्ता ने क्रूरता के आधार पर विवाह विच्छेद के लिए एक याचिका दायर की। प्रतिवादी/पत्नी ने अपना जवाब दाखिल किया और तलाक याचिका में किए गए कथनों का खंडन किया। याचिकाकर्ता ने 24 जनवरी 2024 को वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, दुर्ग के समक्ष एक आवेदन प्रस्तुत किया जिसमें कॉल डिटेल रिकॉर्ड (सीडीआर) उपलब्ध कराने का अनुरोध किया गया।
याचिकाकर्ता ने अपनी पत्नी की चरित्र पर संदेह करते हुए काल डिटेल की मांग की। याचिकाकर्ता ने पारिवारिक न्यायालय के समक्ष एक आवेदन दिया जिसमें अधिकारियों को पत्नी के बातचीत की कॉल डिटेल रिकॉर्ड उपलब्ध कराने का निर्देश देने की मांग की गई थी। लिखित बहस में, याचिकाकर्ता ने कहा कि पत्नी अपने बहनोई (जीजा) से लंबे समय तक बात करती थी। यह भी आरोप लगाया गया था कि प्रतिवादी और उसके बहनोई के बीच अवैध संबंध हो सकता है, और इसलिए, मामले के निर्णय के लिए कॉल डिटेल रिकॉर्ड आवश्यक हैं। मामले की सुनवाई के बाद पारिवारिक न्यायालय ने आवेदन को खारिज कर दिया।
याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी करते हुए वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता की पत्नी उसके बहनोई के बीच लगातार फोन कॉल होती थीं, जिससे संभावित अवैध संबंध का संकेत मिलता है। उन्होंने आगे कहा कि व्यभिचार के आरोप को पुष्ट करने के लिए कॉल डिटेल रिकॉर्ड प्रस्तुत करना आवश्यक है। उन्होंने यह भी कहा कि आवेदन शुरू में पुलिस अधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत किया गया था, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई, इसलिए बाद में
मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस राकेश मोहन पांडेय ने कहा कि दायर तलाक की याचिका के अवलोकन से पता चलता है कि इसे पूरी तरह से क्रूरता के आधार पर दायर किया गया है। पूरी याचिका में व्यभिचार के संबंध में कोई आरोप नहीं लगाया गया है। पहली बार ऐसा आरोप 24 जनवरी 2024 को वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, दुर्ग को दिए आवेदन में लगाया गया था और इसे 30 नवंबर 2023 के बाद के आवेदन में दोहराया गया था। याचिकाकर्ता और गवाहों के बयान पुलिस अधिकारियों द्वारा दर्ज किए गए थे, जहां इसी तरह के आरोप लगाए गए थे। जब पुलिस अधिकारियों द्वारा कॉल डिटेल रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं कराए गए, तो याचिकाकर्ता ने 12 अक्टूबर 2023 को इसी तरह की प्रार्थना के लिए पारिवारिक न्यायालय के समक्ष एक आवेदन दायर किया। उक्त आवेदन में, याचिकाकर्ता ने केवल अधिकारियों को पत्नी के मोबाइल नंबर की सीडीआर प्रदान करने का निर्देश देने की मांग की है और उक्त आवेदन में व्यभिचार के संबंध में कोई आरोप नहीं है।
कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी-
मामले की सुनवाई करते हुए सिंगल बेंच ने कहा कि यह एक स्थापित कानूनी स्थिति है कि किसी व्यक्ति के कॉल डिटेल रिकॉर्ड को अस्पष्ट आरोपों या संदेह के आधार पर अदालतों द्वारा तलब नहीं किया जा सकता है। गोपनीयता के मूल में व्यक्तिगत अंतरंगता, पारिवारिक जीवन, विवाह, यौन अभिविन्यास, पवित्रता, प्रजनन, घर और गोपनीयता का संरक्षण शामिल है। गोपनीयता अकेले रहने के अधिकार को भी दर्शाती है। गोपनीयता व्यक्तिगत स्वायत्तता की रक्षा करती है और व्यक्ति की अपने जीवन के महत्वपूर्ण पहलू को नियंत्रित करने की क्षमता को मान्यता देती है। जीवन के तरीके को नियंत्रित करने वाले व्यक्तिगत विकल्प गोपनीयता के आंतरिक अंग हैं। गोपनीयता विविधता की रक्षा करती है और हमारी संस्कृति की बहुलता और विविधता को मान्यता देती है।गोपनीयता व्यक्ति से जुड़ी होती है क्योंकि यह जीवन का एक अनिवार्य पहलू है।
याचिकाकर्ता द्वारा विवाह विच्छेद हेतु दायर याचिका में व्यभिचार का कोई आरोप नहीं है। लिखित बहस में इस तरह के आरोप पहली बार लगाए गए हैं। इसके अलावा, याचिकाकर्ता द्वारा कॉल डिटेल रिकॉर्ड की मांग करते हुए दायर आवेदन में भी व्यभिचार के संबंध में कोई आरोप नहीं लगाया गया था।
निजता के मौलिक अधिकार की रक्षा जरुरी-
मोबाइल पर बातचीत करने का अधिकार निजता के अधिकार के अंतर्गत निश्चित रूप से संरक्षित है। ऐसी बातचीत अक्सर अंतरंग और गोपनीय प्रकृति की होती है और किसी व्यक्ति के निजी जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू होती है। हमारे संविधान में पति और पत्नी दोनों को अपने वैवाहिक जीवन में निजता का मौलिक अधिकार है और इस अधिकार की रक्षा की जाती है।