High Court News: गलत पहचान, पुलिसिया प्रताड़ना और जेल, बंगाल के 12 मजदूरों ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट से मांगा न्याय, पुलिस की कार्रवाई को बताया अवैध
High Court News: छत्तीसगढ़ के कोंडागांव पुलिस की शिकायत करते हुए पश्चिम बंगाल के 12 मजदूरों ने कटघरे में खड़ा कर दिया है। इन मजदूरों को बांग्लादेशी बताते हुए जेल में बंद कर दिया था। मजदूरों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर को रद्द करने और मानसिक प्रताड़ना के एवज में प्रति मजदूर एक-एक लाख रुपये मुआवजा की मांग की है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई के बाद बेंच ने राज्य शासन को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने का निर्देश दिया है। अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव व रजनी सोरेन ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की है।
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High Court News: बिलासपुर। पश्चिम बंगाल के 12 मजदूर जिन्हें कोंडागांव पुलिस ने बांग्लादेशी होने के आरोप में गिरफ्तार किया था और बाद में भारतीय नागरिक होने के कारण छोड़ दिया था, सभी मजदूरों ने अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव व रजनी सोरेन के जरिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका में पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर को रद्द करने और मानसिक प्रताड़ना के एवज में बतौर क्षतिपूर्ति प्रति मजदूर एक-एक लाख रुपये मुआवजा की मांग की है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच में याचिका की सुनवाई हुई। डिवीजन बेंच ने राज्य शासन को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने का निर्देश दिया है। बेंच ने राज्य सरकार को दो सप्ताह का समय दिया है।
छत्तीसगढ़ पुलिस की दमनात्मक कार्रवाई से भयभीत श्रमिकों ने अपनी याचिका में छत्तीसगढ़ राज्य में स्वतंत्रतापूर्वक रोजगार और काम करने के लिए सुरक्षा की मांग भी की है। पश्चिम बंगाल के कृष्णा नगर और मुर्शिदाबाद क्षेत्र के निवासी महबूब शेख और 11 अन्य लोगों ने बिलासपुर हाई कोर्ट में याचिका दायर कर अपने खिलाफ भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 128 के तहत की गई कार्रवाई को रद्द करने की मांग की है । याचिका में पुलिस हिरासत में उनके साथ की गई मारपीट, दुर्व्यवहार आदि के बदले में एक लाख रुपए प्रति व्यक्ति मुआवजा देने की भी मांग की गई है। याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में कहा है कि छत्तीसगढ़ राज्य में अगर वह रोजगार के लिए मजदूर के रूप में आते हैं तो उन्हें सुरक्षा प्रदान की जाए।
29 जून को पश्चिम बंगाल के कृष्णानगर और मुर्शिदाबाद क्षेत्र के 12 निर्माण श्रमिक जो ठेकेदार के माध्यम से बस्तर के कोंडागांव में एक स्कूल निर्माण के लिए श्रमिक के रूप में गए थे। इन सभी मजदूरों को 12 जुलाई को साइबर सेल पुलिस थाना कोंडागांव ने स्कूल निर्माण साइट से सुपरवाइजर पाण्डेय के साथ गाड़ी मे कर ले गई थी। साइबर सेल थाने में इन 12 श्रमिकों के साथ मारपीट, गाली गलौज और दुर्व्यवहार किया गया। आधार कार्ड आदि प्रस्तुत करने के बाद भी पुलिस ने बांग्लादेशी करार देते हुए शाम 6 बजे इन सभी को कोंडागांव पुलिस कोतवाली ले जाया गया और वहां से रात के समय गाड़ी में भर कर 12 और 13 जुलाई की दरमियानी रात जगदलपुर सेंट्रल जेल दाखिल कर दिया।
13 जुलाई को इस बात की जानकारी होने पर रिश्तेदारों ने सांसद महुआ मित्रा से संपर्क किया और पश्चिम बंगाल पुलिस ने इन सभी के भारतीय नागरिक होने की रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस आधार पर अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव और रजनी सोरेन ने एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका हाई कोर्ट में दायर की। याचिका सुनवाई में आने के पूर्व एसडीएम कोंडागांव के आदेश से 14 जुलाई को उन्हें रिहा कर दिया गया। हालांकि सभी को पुलिस के द्वारा धमकाया गया और छत्तीसगढ़ छोड़ने को मजबूर कर दिया गया। जिसके कारण सभी मजदूर अपनी रोजी रोटी गंवा कर पश्चिम बंगाल लौट गए। शुक्रवार को याचिका पर डिवीजन बेंच में सुनवाई हुई। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव व रजनी सोरेन ने बहस की। राज्य शासन को जवाब पेश करने के लिए दो सप्ताह की मोहलत कोर्ट ने दे दी है। राज्य शासन के जवाब आने के एक सप्ताह में याचिकाकर्ता के अधिवक्ता रिज्वाइंडर पेश करेंगे।