High Court News: 4 हजार सहायक आरक्षकों व DSF जवानों की जनहित याचिका खारिज, हाई कोर्ट के डिवीजन बेंच ने पीआईएल मानने से किया इंकार, जानिए कोर्ट ने क्या कहा?

High Court News: बस्तर में कार्यरत 4 हजार से अधिक सहायक आरक्षकों और DSF जवानों को पुलिस आरक्षकों के समान सुविधा और वेतनमान दिलाने के लिए संयुक्त पुलिस कर्मचारी एवं परिवार कल्याण संघ द्वारा दायर जनहित याचिका को डिवीजन बेंच ने खारिज कर दिया है। बेंच ने इसे जनहित याचिका नहीं मानते हुए सर्विस मैटर माना है। हालांकि याचिकाकर्ता को इस बात की लिबर्टी दी गई है कि वह सर्विस मैटर के रूप में दोबारा याचिका दायर कर सकते हैं।

Update: 2025-08-30 13:14 GMT

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High Court News: बिलासपुर। हाई कोर्ट ने बस्तर के सहायक आरक्षकों और डिस्ट्रिक्ट स्ट्राइक फोर्स DSF जवानों की सुविधाओं, वेतन और पदोन्नति को लेकर दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया है। संयुक्त पुलिस कर्मचारी एवं परिवार कल्याण संघ की ओर से दायर इस याचिका पर चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने सुनवाई करते हुए कहा कि यह जनहित याचिका नहीं है, बल्कि यह सर्विस मैटर है।

याचिका में क्या था-

याचिका में बताया गया कि प्रदेश मंत्रिमंडल के निर्णयानुसार सहायक आरक्षक के पद को समाप्त कर डीएसएफ (डिस्ट्रिक्ट स्ट्राइक फोर्स) बनाने की अनुशंसा की गई थी। इसके तहत लगभग 2700 सहायक आरक्षकों को डीएसएफ में शामिल किया गया, लेकिन शेष हजारों जवान अब भी इसके लिए प्रतीक्षा कर रहे हैं। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उन्हें तत्काल डीएसएफ बनाया जाना चाहिए था।

अनुकंपा नियुक्ति का नहीं मिल रहा लाभ, वेतन व सुविधाएं भी नाकाफी

जिन सहायक आरक्षकों को डीएसएफ बनाया गया है, उन्हें जिला पुलिस बल के आरक्षकों के बराबर वेतन और सुविधाएं नहीं दी जा रही हैं। डीएसएफ जवानों के परिजनों को अनुकंपा नियुक्ति का लाभ नहीं मिल रहा है। गोपनीय सैनिक लंबे समय से अपनी जान जोखिम में डालकर सेवा दे रहे हैं, लेकिन उन्हें अब तक आरक्षक नहीं बनाया गया है।

जोखिम के बावजूद समानता से वंचित-

याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि सहायक आरक्षक और डीएसएफ जवान पुलिस आरक्षकों की तरह ही जोखिमभरे हालात में ड्यूटी करते हैं। उनसे पूरे काम लिए जाते हैं, लेकिन उन्हें समान सुविधाएं नहीं मिलतीं। यही स्थिति गोपनीय सैनिकों की है, जो कई वर्षों से सेवा में हैं और अब भी आरक्षक बनने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

हाई कोर्ट का फैसला-

हाई कोर्ट ने सभी दलीलों पर विचार करने के बाद यह स्पष्ट किया कि यह मामला जनहित याचिका का विषय नहीं है। अदालत ने कहा कि यह पूरी तरह से सर्विस मैटर है और इस पर निर्णय संबंधित सेवा नियमों और प्रशासनिक प्रक्रिया के अंतर्गत ही लिया जा सकता है। इसी आधार पर अदालत ने संयुक्त पुलिस कर्मचारी एवं परिवार कल्याण संघ की याचिका को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता को अदालत ने लिबर्टी दी है कि वह सर्विस मैटर के रूप में इस याचिका को फिर से लगा सकते हैं।


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