High Court News: 17 साल पुराने दुष्कर्म केस में आरोपी बरी, ट्रायल कोर्ट की सजा को हाई कोर्ट ने किया खारिज
High Court News: पहले महिला ने लिखवाई थी छेड़खानी की रिपोर्ट, 20 दिन बाद दर्ज कराया दुष्कर्म का मामला डॉक्टर की गवाही से भी साफ़ हुआ कि, महिला यौन संबंधों की आदी थी। हाई कोर्ट ने कहा कि पीड़िता की गवाही विश्वसनीय नहीं, चिकित्सा रिपोर्ट में भी दुष्कर्म की पुष्टि नहीं हुई है।
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High Court News: बिलासपुर। बिलासपुर हाई कोर्ट ने 17 साल पुराने दुष्कर्म के मामले में अहम फैसला सुनाते हुए आरोपी को बरी कर दिया है। ट्रायल कोर्ट ने 2008 में सात साल की सजा सुनाई थी। हाई कोर्ट में दायर अपील पर सुनवाई करते हुए जस्टिस रजनी दुबे ने कहा कि पीड़िता की गवाही भरोसेमंद नहीं है, मेडिकल रिपोर्ट में भी दुष्कर्म की पुष्टि नहीं हुई और एफआईआर दर्ज कराने में भी 20 दिन की देरी हुई, जिसका कोई ठोस कारण नहीं बताया गया। सुनवाई के दौरान यह भी बात सामने आई कि, महिला ने पहले छेड़खानी की शिकायत की थी। फिर 20 दिन बाद दुष्कर्म का केस दर्ज कराया। यहां तक मेडिकल जांच करने वाले डॉक्टर ने गवाही में कहा कि महिला यौन संबंधों की आदी है।
यह था मामला-
2005 में सुरजपुर जिले के दरिमा गांव निवासी महिला ने रिपोर्ट दर्ज करवाई कि खेत में मजदूर खोजते वक्त आरोपित सत्यनारायण यादव ने उसे पकड़कर जबरन दुष्कर्म किया। पीड़िता ने बताया कि घटना के तुरंत बाद उसने स्वजनों को बताया, लेकिन एफआईआर 20 दिन बाद दर्ज कराई। ट्रायल कोर्ट ने महिला की गवाही के आधार पर आरोपित को आइपीसी की धारा 376(1) में दोषी माना और 7 साल की सजा सुनाई।
20 दिन बाद दर्ज कराई एफआईआर-
आरोपी सत्यनारायण यादव की ओर से अपील दायर की गई। सुनवाई में हाई कोर्ट ने कई अहम बिंदुओं पर ध्यान दिया। जैसे, एफआईआर 20 दिन बाद दर्ज की गई, देरी का कोई संतोषजनक कारण सामने नहीं आया। मेडिकल रिपोर्ट में कोई बाहरी या आंतरिक चोट नहीं, न ही यौन शोषण के स्पष्ट प्रमाण मिले। डाक्टर की गवाही में स्पष्ट था कि पीड़िता पहले से यौन संबंधों की आदी थी। मुख्य गवाहों ने भी पुलिस के सामने दिए बयान से मुकरते हुए आरोपित को निर्दोष बताया। इतना ही नहीं, जांच अधिकारी ने खुद माना कि पहले शिकायत छेड़छाड़ की थी, बाद में दुष्कर्म जोड़ा गया।
कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी-
जस्टिस रजनी दुबे ने कहा कि जब गवाही विरोधाभासी हो, एफआईआर में देरी हो और मेडिकल पुष्टि न करे, तो मात्र पीड़िता की बात पर आरोपित को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि कानून कहता है अगर शक की संभावना बचती है तो उसका लाभ आरोपी को दिया जाना चाहिए।
बहू ने भी दिया चौकाने वाला बयान-
हाई कोर्ट ने यह भी नोट किया कि पीड़िता की बहू ने बयान में कहा था कि, अगर आरोपित गांव में मारपीट के लिए हमसे माफी मांग लेता तो मामला दर्ज नहीं होता। यह बयान खुद संदेह को और गहरा कर गया। कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का फैसला पूरी तरह खारिज करते हुए कहा कि अभियोजन आरोप साबित करने में विफल रहा। आरोपित को दोषमुक्त कर दिया गया।