CIC-IC Appointment Bilaspur High Court: मुख्य सूचना आयुक्त व सूचना आयुक्त की नियुक्ति पर गहराया विवाद, डिवीजन बेंच पहुंचा मामला
CIC-IC Appointment Bilaspur High Court: छत्तीसगढ़ में मुख्य सूचनाआयुक्त व सूचना आयुक्त की नियुक्ति का विवाद गहराने लगा है। हाई कोर्ट के सिंगल बेंच के फैसले को चुनौती देते हुए अंबिकापुर के अधिवक्ता दिनेश्वर सोनी ने चुनौती देते हुए याचिका दायर की है। याचिकाकर्ता ने दोनों पर नियुक्ति के लिए बाद में जोड़े गए 25 वर्ष के अनुभव को चुनौती दी है।
CIC-IC Appointment Bilaspur High Court: बिलासपुर। छत्तीसगढ़ में मुख्य सूचनाआयुक्त व सूचना आयुक्त की नियुक्ति का विवाद गहराने लगा है। हाई कोर्ट के सिंगल बेंच के फैसले को चुनौती देते हुए अंबिकापुर के अधिवक्ता दिनेश्वर सोनी ने चुनौती देते हुए याचिका दायर की है। याचिकाकर्ता ने दोनों पर नियुक्ति के लिए बाद में जोड़े गए 25 वर्ष के अनुभव को चुनौती दी है।
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा है, 04 मार्च 2025 को राज्य शासन द्वारा राज्य सूचना आयुक्त के पद पर नियुक्ति हेतु अधिसूचना के माध्यम से एक और विज्ञापन जारी किया गया है, जिसमें केवल राज्य सूचना आयुक्त के पद के लिए 05 सितंबर 2022 और 07 फरवरी 2024 के विज्ञापनों को आगे बढ़ाया गया है। विज्ञापन के खंड 2.1 में उपरोक्त पदों पर नियुक्ति के लिए सभी आवश्यक विवरण शामिल थे। फॉर्म जमा करने की अंतिम तिथि 19 मार्च 2025 तय की गई थी। याचिकाकर्ता के पास बी.ए. एल.एल.बी. की शैक्षणिक योग्यता है।
पेशे से अधिवक्ता है। बीते 20 वर्षों से कानून का अभ्यास कर रहा है। याचिकाकर्ता ने 04 मार्च 2025 के विज्ञापन के आलोक में 05 मार्च 2025 को राज्य सूचना आयुक्त के पद के लिए आवेदन किया है।
छत्तीसगढ़ गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव की अध्यक्षता में 4 सदस्यों वाली सर्च कमेटी का गठन किया गया था, जिसने 05 सितंबर 2022, 07 फरवरी .2024 और 04 मार्च 2025 के विज्ञापनों के आलोक में राज्य सूचना आयुक्त के पद के लिए उम्मीदवारों के चयन के लिए 09 मई 2025 को अपनी बैठक बुलाई। उक्त पद के लिए कुल 163 उम्मीदवारों ने आवेदन किया है। बैठक के मिनट्स के क्लॉज 2 के अनुसार सर्च कमेटी ने मानदंड निर्धारित किया है कि जिन उम्मीदवारों को अपने संबंधित क्षेत्रों में 25 वर्ष या उससे अधिक का अनुभव है, उन्हें ही साक्षात्कार के लिए सूचीबद्ध किया जाएगा, जो 28 मई 2025 को आयोजित होने वाला है। यह भी उल्लेख किया गया कि उक्त मानदंड ऐसे पद के लिए प्राप्त आवेदनों की संख्या को देखते हुए पेश किए गए हैं।
समिति द्वारा निर्धारित उपर्युक्त मानदंड प्रथम दृष्टया विकृत और मनमाना प्रतीत होता है, जिसका प्राप्त किए जाने वाले उद्देश्य से कोई उचित संबंध नहीं है। इस मानदंड को अंतिम समय में लागू करने का तर्क, जबकि इसका उल्लेख न तो 04 मार्च 2025 के विज्ञापन में किया गया है और न ही इसे सार्वजनिक रूप से प्रकाशित किया गया है, अतार्किक और भेदभावपूर्ण प्रकृति का है। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा सर्च कमेटी के लिए उम्मीदवारों को शॉर्टलिस्ट करने के मानदंडों को सार्वजनिक करना भी उचित होगा, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि शॉर्टलिस्टिंग उद्देश्य और तर्कसंगत मानदंडों के आधार पर की जाती है।
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा है कि अभ्यर्थियों की शॉर्टलिस्टिंग के लिए सर्च कमेटी द्वारा जिन मानदंडों पर विचार किया जाएगा उन्हें सार्वजनिक किया जाना चाहिए, जो वर्तमान मामले में नहीं किया गया है। 25 वर्ष या उससे अधिक का अनुभव होने के मानदंड का न तो किसी विज्ञापन में उल्लेख किया गया है और न ही संबंधित विभाग द्वारा इसे सार्वजनिक किया गया है। यह स्पष्ट है कि यदि चयन के मानदंडों को सार्वजनिक नहीं किया जाएगा तो सुप्रीम कोर्ट की मंशा, जो यह सुनिश्चित करना था कि अभ्यर्थियों की शॉर्टलिस्टिंग या चयन वस्तुनिष्ठ और तर्कसंगत सिद्धांतों के आधार पर किया जाना चाहिए, निरर्थक हो गई है। बैठक के कार्यवृत्त में समिति द्वारा प्रदान किए गए 25 वर्ष या उससे अधिक के अनुभव होने के मानदंड को लागू करने का कारण राज्य सूचना आयुक्त के पद के लिए बड़ी संख्या में आवेदन प्राप्त होना है, कुल 163 आवेदन, जो प्रथम दृष्टया अतार्किक और सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व के निर्देशों के विरुद्ध है।
सिंगल बेंच ने खारिज कर दी थी याचिका
राज्य शासन द्वारा विज्ञापन के बाद जोड़ी गई शर्त को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई के बाद सिंगल बेंच ने इस आधार पर खारिज कर दिया था कि सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश नहीं दिया है कि मानदंड पहले प्रकाशित किए जाए। शॉर्टलिस्टिंग के लिए एकमात्र पूर्व शर्त यह है कि इसका तर्कसंगत और वस्तुनिष्ठ रूप से पालन किया जाए, जिसका राज्य शासन ने सावधानीपूर्वक पालन किया है। याचिकाकर्ता ने कहीं भी यह तर्क नहीं दिया है कि शॉर्टलिस्टिंग की विधि का प्रकाशन न करने से उन्हें कोई नुकसान हुआ है, जो इस न्यायालय के लिए सर्च कमेटी द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने का सर्वोपरि विचार है।
याचिकाकर्ता ने ये उठाए अहम सवाल
सिंगल बेंच इस बात पर विचार करने में विफल रही है कि सुप्रीम कोर्ट के साथ-साथ इस न्यायालय ने भी विशेष रूप से निर्देश दिया है कि शॉर्टलिस्टिंग के मानदंड सार्वजनिक किए जाने चाहिए। अंजलि भारद्वाज मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देशों का उल्लंघन कर रहे हैंञ मानदंड सार्वजनिक किए जाने थे, जो वर्तमान मामले में नहीं किया गया है।
सिंगल बेंच इस बात पर विचार करने में विफल रहा है कि खेल शुरू होने के बाद खेल के नियमों को बदला नहीं जा सकता है, 25 वर्ष या उससे अधिक का अनुभव होने का मानदंड विज्ञापन में उल्लेखित नहीं किया गया है और न ही इसे सार्वजनिक किया गया है, इसलिए बाद में इसे संशोधित नहीं किया जा सकता है।
सिंगल बेंच इस बात पर विचार करने में विफल रही है कि नए मानदंडों को प्रचारित किए बिना उन्हें लागू करना विज्ञापन में दी गई जानकारी स्पष्ट रूप से राज्य सरकार के प्राधिकारियों की याचिकाकर्ता के प्रति दुर्भावना को दर्शाती है। इससे स्पष्ट है कि कुछ अभ्यर्थियों को अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए उक्त मानदंड अपनाए गए हैं, वह भी भारी संख्या में आवेदन प्राप्त होने के तर्कहीन आधार पर। यह बात मायने नहीं रखती कि अपीलकर्ता को कोई नुकसान पहुंचा है या नहीं, क्योंकि अगर कोई निश्चित प्रक्रिया निर्धारित की गई है, तो उसका अक्षरशः पालन किया जाना चाहिए। इसके अलावा, राज्य ने रिट याचिका में अपने विवरण में ऐसा कोई आधार नहीं उठाया है। यह भी राज्य द्वारा रिकॉर्ड में नहीं रखा गया है कि राज्य द्वारा अचानक नए मानदंड लागू करने का इतना जल्दबाजी में निर्णय क्यों लिया गया, जो भर्ती प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठा रहा है। याचिकाकर्ता ने पेश की गई याचिका में सिंगल बेंच द्वारा 11 नवंबबर 2025 को पारित आदेश को रद्द करने की मांग की है।
सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई, देशभर के राज्यों के चीफ सिकरेट्री को किया तलब
देश के विभिन्न राज्यों में मुख्य सूचना आयुक्त व सूचना आयुक्त के पद लंबे समय से रिक्त है। नियुक्ति से संबंधित याचिकाओं की सीजेआई जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की डिवीजन बेंच में याचिका की सुनवाई। सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने कहा कि यह मामला भारत सरकार तथा देशभर की राज्य सरकारों में मुख्य सूचना आयुक्त, सूचना आयुक्तों की नियुक्ति से संबंधित है।
बेंच ने कहा, भारत सरकार द्वारा नियुक्ति के संबंध में, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम. नटराज ने 15 अक्टूबर 2025 के एक पत्र की प्रति सौंपी है, जिसके अनुसार, सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 12(3) के अंतर्गत गठित चयन समिति की बैठक 28.अक्टूबर 2025 को होनी थी। हालांकि, यह बैठक नहीं हो सकी और मामला स्थगित कर दिया गया।
हमने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम. नटराज से अनुरोध किया है कि वे कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग से बात करें और उन्हें कुल रिक्तियों से अवगत कराएं। कोर्ट को इस बात पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है कि सक्षम प्राधिकारी उपलब्ध रिक्तियों को भरने के लिए आवश्यक पहल करेगा। विभिन्न राज्यों के संबंध में, कोर्ट को सूचित किया गया है कि राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक जैसे राज्यों में नियुक्ति लंबित है।
0 देशभर के राज्यों के चीफ सिकरेट्री को किया तलब
मामले की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा, यह स्पष्ट किया जाता है कि यदि अगली सुनवाई की तारीख से पहले आवश्यक कार्रवाई नहीं की जाती है, तो मुख्य सचिव को अगली सुनवाई की तारीख पर इस न्यायालय के समक्ष व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहना होगा।