छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला, आरटीआई के दायरे में रहेगा मनरेगा लोकपाल, देनी होगी जानकारी
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, मनरेगा के तहत केंद्र सरकार गठित लाेकपाल को आरटीआई के दायरे में लाते हुए आवेदकर्ता द्वारा मांगी गई जानकारी देने का निर्देश दिया है। हाई कोर्ट ने जगदलपुर जिला पंचायत मनरेगा लोकपाल की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें लोकपाल ने स्वयं को न्यायालय बताते हुए आरटीआई के दायरे से बाहर बताया था। कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है किएमजीएनआरईजी अधिनियम के तहत लोकपाल आरटीआई अधिनियम, 2005 के अधीन है।
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में मनरेगा लोकपाल को आरटीआई के दायरे में ला दिया है। मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस बीडी गुरु ने जगदलपुर जिला पंचायत मनरेगा लोकपाल व जन सूचना अधिकारी की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें याचिकाकर्ता ने खुद को न्यायालय बताते हुए आरटीआई के दायरे से बाहर बताया था। हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता लोकपाल के दावे के साथ ही याचिका को भी खारिज कर दिया है। कोर्ट ने राज्य सूचना आयुक्त के उस आदेश को सही ठहराया है, जिसमें राज्य सूचना आयुक्त ने लोकपाल को आवेदनकर्ता बीरबल रात्रे को आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था।
लोकपाल व जन सूचना अधिकारी ने राज्य सूचना आयुक्त के इस फैसले को चुनौती देते हुए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। दायर याचिका में कहा कि वह न्यायालय के कार्य का निर्वहन कर रहा है और न्यायालय होने के नाते याचिकाकर्ता बीरबल रात्रे के द्वारा आरटीआई अधिनियम के तहत मांगी गई जानकारी प्रदान करने के लिए बाध्य नहीं है। उन्होंने आरटीआई की धारा 8 का हवाला दिया और कहा कि आरटीआई अधिनियम की धारा 8 भी प्रत्ययी संबंध में किसी व्यक्ति द्वारा प्राप्त जानकारी के प्रकटीकरण से छूट प्रदान करती है। उन्होंने यह भी कहा कि आरटीआई अधिनियम की धारा 8 की धारा (एच) उन सूचनाओं के प्रकटीकरण से छूट प्रदान करती है जो जांच की प्रक्रिया या अपराधियों के अभियोजन की आशंका को बाधित करती हैं। याचिकाकर्ता लोकपाल महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम एवं लोक सूचना अधिकारी द्वारा छत्तीसगढ़ राज्य सूचना आयुक्त द्वारा पारित आदेश 30.08.2016 पर प्रश्न उठाया गया है, जिसके द्वारा छत्तीसगढ़ राज्य सूचना आयुक्त ने याचिकाकर्ता को बीरबल रात्रे ग्राम पंचायत राजनगर जिला बस्तर द्वारा मांगी गई सूचना उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है।
0 इसलिए हुआ विवाद
बीरबल रात्रे ने 19.08.2015 को सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के तहत एक आवेदन प्रस्तुत किया और मुख्य कार्यकारी अधिकारी, जिला पंचायत जगदलपुर (छ.ग.) से 1 जनवरी 2015 से आज तक लोकपाल के समक्ष दायर सभी शिकायतों की प्रति, सभी जांच रिपोर्टों, नोटशीट्स और लोकपाल द्वारा जांच के दौरान दर्ज किए गए बयानों की प्रतियों के बारे में जानकारी मांगी, जिसमें जांच पूरी हो गई है। उक्त आवेदन के अनुसरण में जिला पंचायत सीईओ जगदलपुर ने उक्त आवेदन को 24.08.2015 द्वारा याचिकाकर्ता को अग्रेषित किया। 24.08.2015 को ज्ञापन प्राप्त होने पर याचिकाकर्ता ने इसका उत्तर देते हुए कहा कि मनरेगा अधिनियम के प्रावधानों के तहत वह अपने पास मौजूद सभी सूचनाओं को गुप्त रखने के लिए बाध्य है और किसी भी व्यक्ति को इसका खुलासा नहीं कर सकता। यह भी उत्तर दिया गया कि आरटीआई अधिनियम की धारा 8 के प्रावधानों ने ऐसी सूचनाओं को आरटीआई के तहत किसी को भी बताने से छूट दी है।
0 पहली और दूसरी दोनों अपील में राज्य सूचना आयुक्त ने दिया निर्देश
जब सूचना उपलब्ध नहीं कराई गई, तब बीरबल रात्रे ने सीईओ जिला पंचायत जगदलपुर के समक्ष अपील दायर की, लेकिन जब उक्त अपील पर निर्णय नहीं हुआ, तब उसने राज्य सूचना आयुक्त के समक्ष दूसरी अपील दायर की। आवेदन पर सुनवाई करते हुए राज्य सूचना आयुक्त ने 19.08.2015 के आदेश के तहत जनसूचना अधिकारी जगदलपुर महेंद्र महावर को बीरबल रात्रे द्वारा मांगी गई सूचना 30 दिनों की अवधि के भीतर उपलब्ध कराने का निर्देश दिया।
0 मनरेगा अधिनियम के तहत लोकपाल की स्थापना
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कहा कि 'एमजीएनआरईजी अधिनियम' की धारा 27 में प्रावधान है कि यदि 'एमजीएनआरईजी अधिनियम' के तहत दी गई निधि के अनुचित उपयोग के बारे में कोई शिकायत प्राप्त होने पर, यदि केंद्र सरकार संतुष्ट है कि प्रथम दृष्टया मामला बनता है तो वह अपने द्वारा नामित एजेंसी द्वारा जांच करवाएगी। लोकपाल की स्थापना 'मनरेगा अधिनियम' के तहत की गई है, जिसका उद्देश्य 'मनरेगा अधिनियम' के कार्यान्वयन से संबंधित शिकायतों के निवारण और निपटान के लिए एक प्रणाली की स्थापना करना है और यह वैधानिक प्रकृति का है। इसलिए जिस आदेश के तहत याचिकाकर्ता को आवेदनकर्ता बीरबल रात्रे को सूचना उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया है, वह पूरी तरह से अवैध है और अधिनियम 2005 के विपरीत है।
0 सूचना आयुक्त ने कहा,उनके द्वारा पारित आदेश उचित
सूचना आयुक्त के अधिवक्ता ने कहा कि लोकपाल को सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अंतर्गत शामिल किया जाएगा। राज्य सरकार का नोडल विभाग इस उद्देश्य के लिए लोक सूचना अधिकारी और अपीलीय प्राधिकरण को अधिसूचित करेगा। राज्य सूचना आयुक्त द्वारा पारित आदेश उचित और न्यायसंगत है।
0 आरटीआई के तहत लोकपाल को देनी होगी जानकारी
क्या लोकपाल अधिनियम आरटीआई अधिनियम, 2005 के अंतर्गत आएगा, लोकपाल पर निर्देशों के प्रासंगिक भाग को उद्धृत करना उचित होगा, जिसे एमजीएनआरईजी अधिनियम की धारा 27 के तहत तैयार किया गया है, जिसका उद्देश्य एमजीएनआरईजी अधिनियम और राज्यों द्वारा अधिनियम के तहत बनाई गई योजनाओं के कार्यान्वयन से संबंधित शिकायतों के निवारण और निपटान के लिए एक प्रणाली स्थापित करना है।
0 लोकपाल के अधिकार और कर्तव्य
. लोकपाल को सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अंतर्गत कवर किया जाएगा, राज्य सरकार का नोडल विभाग इस प्रयोजन के लिए लोक सूचना अधिकारी और अपीलीय प्राधिकारी को अधिसूचित करेगा।
. निर्देश में प्रावधान है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 के लोकपाल अधिनियम, 2005 के अधीन होंगे और कोई भी लोकपाल की कार्यवाही या अधिनियम के बारे में जानकारी सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत सूचना चाहने वाले को प्रदान की जा सकती है। एक बार जब विशेष अधिनियम 2005 यानी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 में अधिनियम, 2005 के तहत लोकपाल शामिल हो जाता है तो सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई जानकारी याचिकाकर्ता द्वारा प्रदान की जानी चाहिए।
0 हाई कोर्ट ने याचिका किया खारिज
जहां तक याचिकाकर्ता का यह तर्क है कि उसे आरटीआई अधिनियम की धारा 8 से छूट प्राप्त है, सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 8 के अवलोकन से, यह लोकपाल के अधिनियम के लिए कोई छूट निर्धारित नहीं करता है और लोकपाल/याचिकाकर्ता के पास मौजूद जानकारी को बिल्कुल भी छूट नहीं है। इसलिए, सूचना आयुक्त ने याचिकाकर्ता जनसूचनाअधिकारी को आवेदनकर्ता बीरबल रात्रे द्वारा मांगी गई जानकारी प्रदान करने का सही निर्देश दिया।