CG Principal News: बरसों से स्कूल का मुंह नही देखने वाले व्याख्याता प्राचार्य प्रमोट होने पर फिर अधिकारी बनने के लिए लगाने लगे जुगाड़
CG Principal News: प्रदेश में लंबी लड़ाई के बाद व्याख्याताओ, प्रधान पाठकों को उनका हक मिला है और लंबी लड़ाई के बाद ही सही व्याख्याता और प्रधान पाठक प्राचार्य बन गए हैं निश्चित तौर पर यह लाभ उन्हें काफी पहले मिल जाना था । शिक्षक खुश है कि अब वह प्राचार्य के पद पर विराजमान हो चुके हैं लेकिन जुगाड़ू व्याख्याताओ की चिंता बढ़ गई है।
रायपुर। छत्तीसगढ़ में लंबी लड़ाई के बाद व्याख्याताओ, प्रधान पाठकों को उनका हक मिला है और लंबी लड़ाई के बाद ही सही व्याख्याता और प्रधान पाठक प्राचार्य बन गए हैं साथ ही उन्हें पोस्टिंग भी मिल गयी है। निश्चित तौर पर यह लाभ उन्हें काफी पहले मिल जाना था। शिक्षक खुश है कि अब वह प्राचार्य के पद पर विराजमान हो चुके हैं लेकिन जुगाड़ू व्याख्याताओ की चिंता बढ़ गई है।
दरअसल सूची में ऐसे व्याख्याता और प्रधान पाठक भी थे जिन्होंने दशकों से विद्यालय का मुंह ही नहीं देखा है और अपनी जुगाड़ के दम पर स्कूल शिक्षा विभाग के जिला कार्यालय, राज्य कार्यालय से लेकर अन्य विभागों तक की कुर्सियों को गरम करने का काम किया है। यहां तक की रेरा और पीएससी जैसी संस्था भी इनकी पहुंच से कभी दूर नहीं रही।
अब ऐसे ही व्याख्याता और प्रधान पाठकों का मंत्री और राज्य कार्यालयो का चक्कर लगाना शुरू हो चुका है। इसमें से कुछ सफल भी हो गए और उन्हें काउंसलिंग के दौरान ही उनके मनपसंद कार्यालय में नियुक्ति मिल गई है और जिन्हें नहीं मिली है वह अब जुगाड़ की तैयारी में घूमते नजर आ रहे हैं।
नेक्सस तोड़े बिना नहीं हो सकता स्कूल शिक्षा विभाग में सुधार
दरअसल स्कूल शिक्षा विभाग में गठजोड़ का ऐसा तंत्र विकसित है कि व्यापारियों से लेकर नेताओं तक का हाथ कुछ तथाकथित अधिकारियों पर कुछ इस कदर है कि बरसों से वही कुर्सी पर जमे हुए है और जब तक विभाग पुराने लोगों की छुट्टी करके उन पदों पर नए लोगों को आसीन नहीं करेगा तब तक कुछ सुधार आने की उम्मीद नहीं की जा सकती। बात यदि समग्र शिक्षा की कर ले तो एक बार प्रतिनियुक्ति पर आए कर्मचारी को दो-दो दशक गुजर चुके हैं सरकार किसी की भी रहे पर पद पर वही रहते हैं और रहते हुए उन्होंने खाने कमाने का ऐसा गठजोड़ विकसित कर लिया है कि उनके सामने मंत्री और राज्य के अधिकारी भी कुछ नहीं लगते , उन्हें हवा भी नहीं लगता और लाखों करोड़ों का खेल हो जाता है। निर्माण से लेकर योजनाओं तक में उनका कमीशन फिक्स है और सरल सहज इतने अधिक हैं की जिन्हें काम करना है वह भी सोचता है कि कहां अधिकारियों के हाथ पैर जोड़ें, जब इन्ही से कम हो जा रहा है। पिछली बार विधानसभा में प्रतिनियुक्ति को लेकर सवाल भी लगे थे किंतु हमेशा की तरह गोल-मोल जवाब आया क्योंकि जवाब उन्होंने हीं बनाया जिनका गला फंस रहा था।
कुल मिलाकर जब तक स्कूल शिक्षा मंत्री प्रतिनियुक्ति के नाम पर दशकों से बैठे दिग्गजों को स्कूल के लिए रवाना नहीं करेंगे और उनकी जगह नए लोगों को मौका नहीं मिलेगा तब तक विभाग में सुधार होने की गुंजाइश न के बराबर है। खास तौर पर समग्र शिक्षा के राज्य और जिला कार्यालय के ही आंकड़े जुटा लिए जाए तो हैरान करने वाली रिपोर्ट सामने आएगी। मंत्री जी के पदभार ग्रहण करते ही अभी दो ऐसे संविदा कर्मचारियों की छुट्टी भी हुई जिन्होंने अपना वेतन तक शासकीय कर्मचारियों के समान भत्तों के साथ दुगने से अधिक वसूल लिया था और जब मामला सामने आया तो पता चला कि वह ऐसा बरसों से करते आ रहे थे।
अब जिन शिक्षकों को प्राचार्य बनकर स्कूल भेजा गया है अगर फिर उन्हें ही वापस उनके कार्यालय में अधिकारी बनाकर भेज दिया जाता है तो फिर स्कूल शिक्षा विभाग को बर्बाद होने से कोई नहीं रोक सकेगा। अगर इतने ही काबिल वह अधिकारी हैं तो कम से कम कुछ साल उन्हें स्कूलों को सुधारने का मौका देना चाहिए।