CG News: छत्तीसगढ़ सिविल सोसायटी ने की मतांतरित लोगों को जनरल कैटेगरी में डी-लिस्टिंग की मांग
CG News: रायपुर। छत्तीसगढ़ सिविल सोसायटी ने प्रदेश में लगातार बढ़ रहे जबरन एवं प्रलोभन देकर मतांतरण की घटनाओं के विरुद्ध गहरी चिंता व्यक्त है। छत्तीसगढ़ सिविल सोसायटी का कहना है कि बड़ी संख्या में लोग अपने पारंपरिक धर्म को त्यागकर मतांतरित कराए जा रहे हैं, किंतु इसके बावजूद वे अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग के तहत मिलने वाले आरक्षण और सरकारी योजनाओं का लाभ भी आजीवन उठाते रहते हैं।
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CG News: रायपुर। छत्तीसगढ़ सिविल सोसायटी ने प्रदेश में लगातार बढ़ रहे जबरन एवं प्रलोभन देकर मतांतरण की घटनाओं के विरुद्ध गहरी चिंता व्यक्त है। छत्तीसगढ़ सिविल सोसायटी का कहना है कि बड़ी संख्या में लोग अपने पारंपरिक धर्म को त्यागकर मतांतरित कराए जा रहे हैं, किंतु इसके बावजूद वे अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग के तहत मिलने वाले आरक्षण और सरकारी योजनाओं का लाभ भी आजीवन उठाते रहते हैं।
संयोजक डॉ. कुलदीप सोलंकी ने स्पष्ट किया कि ऐसे मतांतरित व्यक्तियों द्वारा अपनी पहचान में कोई भी बदलाव शासन को सूचित नहीं किया जाता, जिससे वे दोहरी सुविधा का लाभ उठा रहे हैं। छत्तीसगढ़ सिविल सोसाइटी ने संविधान के अनुच्छेद 342 में संशोधन की मांग करते हुए कहा कि जो व्यक्ति जनजातीय समाज की परंपराओं, रीति-रिवाजों और सांस्कृतिक जीवनशैली को त्याग चुके हैं, उन्हें अनुसूचित जनजाति की सूची से बाहर किया जाना चाहिए और अनारक्षित General कैटिगरी में डालना चाहिए।
सोसायटी का यह भी मत है कि अनुसूचित जनजाति को आरक्षण उनकी विशिष्ट संस्कृति, परंपराओं और जीवनशैली की रक्षा हेतु प्रदान किया गया था। किंतु जिन व्यक्तियों ने इन मूलभूत विशेषताओं को अस्वीकार कर दिया है, वे अब इस संवैधानिक सुविधा के वास्तविक लाभार्थियों से अधिक लाभ प्राप्त कर रहे हैं। डॉ. कुलदीप सोलंकी ने यह भी कहा कि यह न केवल संवैधानिक मर्यादा का उल्लंघन है, बल्कि मूल जनजातीय समाज के साथ घोर सामाजिक अन्याय भी है।
अतः समय की मांग है कि डी-लिस्टिंग की प्रक्रिया को विधिक रूप से सुनिश्चित किया जाए और जनजातीय समाज को ही उनके हक का पूर्ण लाभ प्रदान किया जाए।
डी-लिस्टिंग क्या है-
भारत में अनुसूचित जातियों और जनजातियों को संविधान के अनुच्छेद 341 (एससी) और अनुच्छेद 342 (एसटी) के तहत विशेष संरक्षण, आरक्षण और कल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिया जाता है। ये लाभ उनकी ऐतिहासिक सामाजिक-पारंपरिक स्थिति और पिछड़ेपन को ध्यान में रखते हुए प्रदान किए जाते हैं।
परंतु जब कोई व्यक्ति या समूह अपनी पारंपरिक धार्मिक, सामाजिक पहचान बदल देता है, जैसे कि कोई अनुसूचित जनजाति का व्यक्ति मतांतरण कर किसी अन्य धर्म (जैसे ईसाई या इस्लाम) को अपना लेता है, और फिर भी अनुसूचित जनजाति का दर्जा और उससे जुड़ी सरकारी सुविधाएँ प्राप्त करता रहता है, तो ऐसी स्थिति में डी-लिस्टिंग यानी उन्हें एसटी-एससी की सूची से बाहर कर अनारक्षित सूची में डाला जाना चाहिए।