CG High Court News: गवाहों से सवाल पूछना अधिकार, हाई कोर्ट ने जांच अधिकारी की भूमिका को बताया वैध, कांस्टेबल की याचिका खारिज
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने कांस्टेबल की याचिका पर सुनवाई करते हुए सिंगल बेंच के फैसले को सही ठहराते हुए रिट याचिका को खारिज कर दिया है। डिवीजन बेंच ने कहा कि जांच अधिकारी को शिकायत की पुष्टि और निष्पक्ष जांच पड़ताल के लिए गवाहों से सवाल पूछने का पूरा अधिकार है। इससे जांच प्रभावित होने जैसे कोई बात नहीं है।
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बिलासपुर। बिलासपुर हाई कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि किसी प्रकरण की जांच पड़ताल के दौरान जांच अधिकारी गवाहों से जिरह करने के साथ ही स्पष्टीकरण भी मांग सकता है। यह जांच की जरुरी प्रक्रिया है। इससे जांच कार्यवाही शून्य नहीं हो जाती। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने जरुरी टिप्पणी के साथ कांस्टेबल की याचिका खारिज कर दी है।
याचिकाकर्ता कांस्टेबल के खिलाफ दो आरोपों के लिए विभागीय जांच शुरू की गई थी। 06 फरवरी 2009 को वह अनधिकृत रूप से ग्राम खोराटोला गया और शिकायतकर्ता को एक कमरे में बंद कर दिया।शिकायतकर्ता से गाली गलौच करते हुए जेल भेजने की धमकी दी। धमकाने के साथ ही 5 हजार रुपये की रिश्वत मांगी। थाने से बिना बताए ड्यूटी से गायब रहने की गंभीर आरोप भी लगा था। दोनों आरोपों के चलते आला अधिकारी ने 12 मई 2009 को आरोप-पत्र जारी किया। आरोप पत्र जारी करने के साथ ही कांस्टेबल के खिलाफ जांच शुरू की गई। जांच अधिकारी ने 30 दिसंबर .2009 को आला अधिकारी को रिपोर्ट सौंपते हुए दोनों आरोपों की पुष्टि की। जांच रिपोर्ट के आधार पर आला अधिकारी ने 30 जनवरी 2010 को आदेश जारी कर कांस्टेबल को सेवा से हटाते हुए बर्खास्तगी आदेश जारी कर दिया। कांस्टेबल ने आदेश के खिलाफ पहले डीआईजी और फिर आईजी के समक्ष दया यचिका दायर की। दोनों अफसरों ने दया याचिका को खारिज कर दिया।
हाई कोर्ट में दायर की याचिका-
आला अधिकारियों के आदेश को चुनौती देते हुए कांस्टेबल ने हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर की। मामले की सुनवाई के बाद सिंगल बेंच ने याचिका को खारिज कर दिया। सिंगल बेंच के आदेश को कांस्टेबल ने चुनौती देते हुए डिवीजन बेंच में याचिका दायर की। याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में जांच अधिकारी की भूमिका को लेकर सवाल उठाया है। याचिका के अनुसार जांच अधिकारी ने उससे और गवाहों से जिरह कर अभियोजक की तरह काम किया है। इस तरह की भूमिका उनका नहीं है। लिहाजा जांच अधिकारी की जाच अनुचित और पक्षपातपूर्ण है। याचिकाकर्ता ने कहा कि उसे बचाव सहायक की सहायता प्राप्त करने के उसके अधिकार के बारे में भी जानकारी नहीं दी गई। छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम, 1966 के नियम 14(8) का हवाला देते हुए कहा कि इसके तहत उसे जानकारी दी जानी थी, पर जांच अधिकारी ने इसकी जानकारी ही नहीं दी और ना ही सुविधा उपलब्ध कराया। याचिकाकर्ता ने कहा कि जांच रिपोर्ट नियम, 1966 के नियम 14(23)(सी) और (डी) का अनुपालन नहीं करती है, क्योंकि आरोपों को साबित करने के लिए सबूतों या तर्क का उचित मूल्यांकन नहीं किया गया था।
राज्य सरकार ने रखा अपना पक्ष-
राज्य शासन की ओर से पैरवी करते हुए महाधिवक्ता कार्यालय के विधि अधिकारी ने कहा कि विभागीय जांच छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (सीसीए) नियम, 1966 के प्रावधानों के अनुसार की गई थी। विधि अधिकारी ने नियमों का हवाला देते हुए बताया कि जांच अधिकारी को स्पष्टीकरण के उद्देश्य से जांच कार्यवाही के दौरान गवाहों से सवाल पूछने की अनुमति है। ऐसा आचरण पक्षपातपूर्ण या अभियोजक के रूप में कार्य करने के बराबर नहीं है।
डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में ये कहा-
डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि जांच कार्यवाही छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम, 1966 के अनुपालन में की गई थी। याचिकाकर्ता को बचाव सहायक प्राप्त करने के अधिकार के बारे में जानकारी नहीं थी, लेकिन एक प्रशिक्षित पुलिस कर्मी होने के नाते उसने प्रभावी ढंग से गवाहों से जिरह की और अपने बचाव में दस्तावेज पेश किया। जिससे पता चलता है कि उसे अपने कानूनी अधिकारों के बारे में पूरी जानकारी थी। डिवीजन बेंच ने कहा कि जांच अधिकारी को स्पष्टीकरण के लिए गवाहों से सवाल पूछने का पूरा अधिकार है। यह किसी भी तरह पक्षपातपूर्ण नहीं है। जांच अधिकारी द्वारा भरोसा किए गए साक्ष्य, जिसमें शिकायतकर्ता और सहायक गवाहों की गवाही शामिल है, को डिवीजन बेंच ने विश्वसनीय पाया। जांच अधिकारियों के साथ ही सिंगल बेंच के फैसले को सही ठहराते हुए डिवीजन बेंच ने कांस्टेबल की रिट याचिका को खारिज कर दिया है।