Bilaspur High Court: सरकारी कर्मचारी पर ठोका 50 हजार का जुर्माना: हाई कोर्ट की सामने आई नाराजगी, प्रक्रिया के दुरुपयोग पर की कड़ी टिप्पणी

Bilaspur High Court: रिव्यू याचिका पर हाईकोर्ट ने सख्त बरतते हुए सरकारी कर्मचारी पर 50 हजार का जुर्माना ठोका है. प्रक्रिया के दुरुपयोग पर की कड़ी टिप्पणी भी की है.

Update: 2025-12-20 05:59 GMT

Bilaspur High Court: बिलासपुर: बिलासपुर हाईकोर्ट ने पुनर्विचार याचिकाओं के बढ़ते चलन और न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग पर सख्त रुख अपनाते हुए एक अहम फैसला दिया है। कोर्ट ने एक सरकारी कर्मचारी द्वारा दायर रिव्यू याचिका को न केवल खारिज कर दिया, बल्कि उस पर 50 हजार रुपये का हर्जाना भी लगाया है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रविंद्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने स्पष्ट कहा कि पुनर्विचार याचिका अपील का विकल्प नहीं है और इसे बार-बार न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए इस्तेमाल करना कानून की भावना के खिलाफ है।

यह मामला सरकारी कर्मचारी संजीव कुमार यादव से संबंधित है। उनके खिलाफ जिला पंचायत, जशपुर और आयुक्त, सरगुजा संभाग द्वारा वर्ष 2017 और 2018 में विभागीय जांच की गई थी। जांच में दोषी पाए जाने पर उनके चार वार्षिक वेतन वृद्धि को संचयी प्रभाव से रोकने का आदेश पारित किया गया था। इस विभागीय कार्रवाई को चुनौती देते हुए संजीव कुमार यादव ने पहले छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की थी।

हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक की कानूनी लड़ाई

याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में यह तर्क दिया था कि विभागीय जांच में उन्हें गवाहों से जिरह का अवसर नहीं दिया गया और जांच प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध की गई। हालांकि, 23 जनवरी 2025 को एकल न्यायाधीश ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी थी कि जांच निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार की गई है और इसमें किसी तरह की अनियमितता नहीं पाई गई। इसके बाद याचिकाकर्ता ने रिट अपील दायर की, जिसमें भी उसे राहत नहीं मिली। मामला यहीं नहीं रुका। याचिकाकर्ता इसके बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और विशेष अनुमति याचिका दायर की, लेकिन 8 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने भी उसकी एसएलपी खारिज कर दी।

सुप्रीम कोर्ट के बाद फिर हाई कोर्ट का रुख

सुप्रीम कोर्ट से निराशा हाथ लगने के बाद याचिकाकर्ता ने दोबारा छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और पुनर्विचार याचिका दायर कर दी। रिव्यू याचिका में यह दलील दी गई कि सुप्रीम कोर्ट ने एसएलपी को प्रारंभिक स्तर पर खारिज किया है, गुण-दोष के आधार पर नहीं, इसलिए हाईकोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की जा सकती है। साथ ही हाईकोर्ट के पूर्व आदेश में तथ्यात्मक त्रुटि होने का भी दावा किया गया।

कोर्ट की कड़ी टिप्पणी

हाईकोर्ट की खंडपीठ ने इन दलीलों को सिरे से खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि पुनर्विचार याचिका का दायरा अत्यंत सीमित होता है और इसका उपयोग केवल तब किया जा सकता है, जब रिकॉर्ड पर कोई स्पष्ट त्रुटि हो। इसे अपील की तरह दोबारा सुनवाई के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि याचिकाकर्ता ने हर स्तर पर अलग-अलग वकील नियुक्त किए। रिट याचिका, रिट अपील और रिव्यू याचिका में वकील बदलने की इस प्रवृत्ति पर कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताई और इसे अनुचित तथा न्याय के हित में नहीं बताया।

न्यायिक समय के दुरुपयोग पर सख्ती

खंडपीठ ने कहा कि बार-बार याचिकाएं दायर कर और पुराने तर्क दोहराकर कोर्ट का कीमती समय बर्बाद किया गया है। कोर्ट ने इसे कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग माना और कहा कि ऐसी याचिकाएं न्यायिक व्यवस्था पर अनावश्यक बोझ डालती हैं। कोर्ट की राय में यह मामला 2 लाख रुपये के हर्जाने के साथ खारिज किए जाने योग्य था।

जुर्माना घटाने का कारण

हालांकि, कोर्ट ने यह भी ध्यान में रखा कि याचिकाकर्ता के वकील ने सुनवाई के दौरान बार-बार बिना शर्त माफी मांगी। इसी को आधार बनाते हुए कोर्ट ने हर्जाने की राशि घटाकर 50 हजार रुपये कर दी। कोर्ट ने आदेश दिया कि यह राशि एक माह के भीतर हाईकोर्ट की रजिस्ट्री में जमा करनी होगी। जमा की गई राशि शासकीय विशिष्ट दत्तक ग्रहण अभिकरण, गरियाबंद को भेजी जाएगी। यदि तय समय में राशि जमा नहीं की गई, तो इसे भू-राजस्व के बकाया के रूप में वसूल किया जाएगा।

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