Arpa-Bhainsajhad Land Scam: NPG की खबर पर CM का बड़ा एक्शन, 1131 करोड़ की इस योजना की जांच अब ईओडब्लू के हवाले, कलेक्टर की जांच में 11 दोषी

1131 करोड़ की अरपा-भैंसाझार नहर परियोजना में 48 गुना रेट से मुआवजा देने का मामला छत्तीसगढ़ के सबसे तेज और भरोसेमंद न्यूज वेबसाइट एनपीजी न्यूज ने लगातार उठाया। पिछले महीने भर में एनपीजी ने विभिन्न एंगल से सात खबरें प्रकाशित की। इसका असर हुआ। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने इसकी ईओडब्लू से जांच कराने का आदेश दिया है। सिंचाई विभाग की समीक्षा बैठक में उन्होंने इसके निर्देश दिए। कलेक्टर की जांच में इस केस में दो एसडीएम समेत राजस्व विभाग के छह कर्मचारी और सिंचाई विभाग के पांच इंजीनियर दोषी पाए गए हैं। जाहिर है,़ नहर निर्माण में एसडीएम और सिंचाई अधिकारियों ने ऐसा गड़बड़झाला किया कि जिन किसानों की जमीनें नहर में गई, वे भटक रहे हैं और उनका मुआवजा फर्जी तौर पर व्यापारी तथा बिल्डर को खड़ा कर दे दिया गया।

Update: 2025-05-24 08:49 GMT



Arpa-Bhainsajhad Land Scam: रायपुर। अरपा-भैंसाझार नहर परियोजना में करीब 400 करोड़ का खेला राजस्व और सिंचाई विभाग के अधिकारियों ने मिलकर कर दिया। मुआवजा वितरण में अपने लोगों को फायदा पहुंचाने कागजों में नहर का डिजाइन बदल दिया दिया गया कि उनकी जमीन नहर में आ रही और करोड़ों रुपए के मुआवजे की बंदरबांट कर दी गई। एनपीजी न्यूज के लगातार कवरेज करने पर सरकार ने इसे संज्ञान लिया। मुख्यमंत्री ने ईओडब्लू से इसकी जांच कराने का आदेश दिया है।

बता दें, सीएम की अध्यक्षता में सिंचाई विभाग की समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री ने अरपा-भैंसाझाड़ परियोजना के मुआवजा कांड के बारे में पूछताछ की। इसके बाद उन्होंने ईओडब्लू से जांच कराने का निर्देश दिया। जल संसाधन विभाग के अवर सचिव ने सीई जल संसाधन विभाग का पत्र लिखकर सीएम की समीक्षा बैठक में लिए गए निर्णय का परिपालन व क्रियान्वयन करने कहा है। समझा जाता है कि जल्द ही अरपा-भैंसाझाड़ मुआवजा घोटाले की सारी फाइलें ईओडब्लू को सौंप दी जाएगी।

कोविड महामारी के समय लोगों के बदहवासी का फायदा उठाते हुए बिलासपुर के कोटा एसडीएम और पटवारी ने सिंचाई विभाग के अधिकारियों के साथ मिलकर किसानों का हकों पर डाका डाल दिया। अफसरों ने किसानों की जगह एक व्यापारी को कागजों में भूस्वामी बनाकर 48 गुना अधिक रेट से 3.42 करोड़ रुपए मुआवजा दे दिया। जिन किसानों की जमीन पर नहर बनी, वे मुआवजा के लिए भटक रहे हैं।

बिलासपुर जिला प्रशासन के अधिकारियों का कहना है, अरपा-भैंसाझाड़ नहर के मुआवजे में 30 करोड़ से उपर का इसी तरह का खेल हुआ। भंडा तब फूटा जब एक भूस्वामी की जमीन पर खुदाई के लिए जेसीबी पहुंच गई। वो भागते हुए कलेक्ट्रेट पहुंचा कि मुझे न मुआवजा मिला और न ही मुझे जमीन अधिग्रहण के बारे में कुछ बताया गया। इस पर कोहराम मचा। चूकि मामला कागजों में अपराधिक कृत्य का था, इसलिए बचाना संभव नहीं था। लिहाजा, जिला स्तर पर इसकी जांच कराई गई। जांच में कोटा के एसडीएम आनंदस्वरूप तिवारी समेत राजस्व विभाग के छह और सिंचाई विभाग के पांच अधिकारी दोषी पाए गए।

एसडीएम, पटवारी का कमाल

अरपा भैंसाझार नहर निर्माण में गजब का घोटाला हुआ है। घोटाला करने वाले तत्कालीन कोटा एसडीएम, तहसीलदार और पटवारी ने कागज में नहर बना दिया और किसानों की जमीन हड़प ली। किसान आज भी दर-दर की ठोकरे खा रहे हैं। जमीन भी गई और मुआवजा भी नहीं मिला। किसानों की जमीन को पटवारी मुकेश साहू ने अपनी कलम की करामात से व्यवसायी मनोज अग्रवाल पिता पवन अग्रवाल के नाम चढ़ा दी और 3 करोड़ 42 लाख रुपए का वारा-न्यारा कर दिया।

कलेक्टर और कमिश्नर ने लिखा पत्र

इसमें और क्या सबूत चाहिए कि बिलासपुर कलेक्टर ने बिलासपुर कमिश्नर को सभी 11 अधिकारियों, कर्मचारियों के नामजद दोषी लिखकर अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए पत्र लिखा। कलेक्टर के पत्र को कमिश्नर ने अपनी अनुशंसा के साथ राजस्व विभाग को कार्रवाई के लिए भेज दिया। मगर राजस्व विभाग ने पटवारी पर कार्रवाई कर मामले का दबा दिया। सिंचाई विभाग भी इसे नोटिस में नहीं लिया। आज तक किसी मुलाजिम के खिलाफ विभागीय जांच तक शुरू नहीं हुई।

एसडीएम को मिल गई आरटीओ की कुर्सी

वैसे कलेक्टर और कमिश्नर की जांच रिपोर्ट में कोटा के दो एसडीएम के नाम हैं। मगर बताते हैं आनंदस्वरूप तिवारी के बाद दूसरे एसडीएम कीर्तिमान सिंह राठौर की भूमिका इस केस में सीमित थी। मगर दोनों को सरकार ने आरटीओ बना दिया। कीर्तिमान रायपुर के आरटीओ बने और आनंदस्वरूप बिलासपुर के। हालांकि, रायपुर आरटीओ कीर्तिमान को सरकार ने हटाकर अब रायपुर का अपर कलेक्टर बना दिया है। मगर मुआवजा स्कैम में आनंदस्वरूप तिवारी की सबसे अहम भूमिका रही, कलेक्टर, कमिश्नर ने अपनी रिपोर्ट में सबसे उपर उनका नाम रखा है, उन्हें कार्रवाई की बजाए बिलासपुर के आरटीओ बना दिया गया। अभी वे बिलासपुर आरटीओ की कुर्सी पर जमे हुए हैं।

गजब का खेल

अरपा-भैंसाझार नहर निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहण और मुआवजा वितरण में पटवारी मुकेश साहू, कोटा के तत्कालीन एसडीएम आनंदरूप तिवारी के अलावा राजस्व अमला और जल संसाधन विभाग के अफसरों ने गजब का खेल किया है। एनपीजी के पास उपलब्ध दस्तावेजों में एक ऐसा मामला सामने आया है जिसे पढ़कर आप भी हैरान रह जाएंगे। पटवारी मुकेश साहू ने नहर के एलाइमेंट को ही कागजों में बदल दिया। नहर को 200 मीटर आगे खिसका दिया और व्यवसायी मनोज अग्रवाल पिता पवन अग्रवाल की बंजर जमीन से नहर निकलना बताते हुए 3 करोड़ 42 लाख रुपए का खेला कर दिया है।

मनोज अग्रवाल पिता पवन अग्रवाल की जिस जमीन पर नहर निर्माण होना बताया जा रहा है वह नहर से तकरीबन 200 मीटर दूर है। नहर का एलाइमेंट बदलकर 200 मीटर पहले बने नहर को कागजों में 200 मीटर दूर बता दिया और मनोज अग्रवाल के स्वामित्व वाली जमीन खसरा नंबर 1/4, 1/6 की कुल 29 डिसमिल जमीन का पहले अधिग्रहण किया और फिर मुआवजा प्रकरण बनाकर 3 करोड़ 42 लख रुपए का भुगतान कर दिया। जमीन की कीमत बढ़ाने के लिए बंजर जमीन को पटवारी ने दोफसली बता दिया। झोपड़ी को कागज में मकान बना दिया।

किसान भटक रहे, व्यापारी को जबरिया मुआवजा मिल गया

राजस्व अधिकारी और सिंचाई अधिकारियों ने एक व्यापारी से मिलकर और खेल किया। जिन किसानों की जमीन नहर निर्माण की जद में आई और वर्तमान में नहर बन गया है उन किसानों को आजतलक मुआवजा नहीं मिल पाया है। ये किसान आज भी मुआवजा के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। अशोक कुमार संतोष कुमार की खसरा नंबर 4/1, 4/2 की 12 डिसमिल जमीन और तुलसीराम व अन्य किसानों की 17 डिसमिल जमीन का भुगतान नहीं किया गया।

बगैर प्रकाशन कर दिया भुगतान

मनोज अग्रवाल पिता पवन अग्रवाल की जिस 29 डिसमील जमीन का मुआवजा देने के लिए नहर का एलाइमेंट बदला गया है, उस जमीन का अधिग्रहण के लिए शासन स्तर पर राजपत्र में प्रकाशन भी नहीं हुआ है। राजस्व अमले और अफसरों ने एक मनोज अग्रवाल नाम के व्यापारी को फायदा पहुंचाने के लिए कागजों में पूरा खेल कर दिया और सरकारी खजाने को चूना लगा दिया।

0 हर बार दी अलग-अलग जानकारी, एक डिसमिल को बना दिया तीन और 15 को बना दिया 26 डिसमिल

पटवारी ने बाद के प्रतिवेदन में खसरा नंबर 1/4 में अर्जित रकबा को 0.03 एकड़ एवं खसरा नंबर 1/6 को डायवर्टेट भूमि रकबा 0.26 एकड़ बताया है। तत्कालीन अनुविभागीय अधिकारी (रा.) कोटा एवं अवार्ड पत्रक में हस्ताक्षर करने वाले सदस्यों द्वारा रिपोर्ट / तथ्यों का परीक्षण किये बगैर एवं बगैर विधिवत सूचना या प्रकाशन के अरपा-भैंसाझार परियोजना के अंतर्गत चकरभाठा वितरक नहर का अवार्ड पत्रक भू-अर्जन पत्रक-22 (मुआवजा देयक पत्रक) में खसरा नंबर 1/4 अर्जित रकबा 0.03 एकड़ (सिंचित दोफसली/अन्य पहुंच मार्ग के साथ मकान निर्मित बताया जाकर) के विरुद्ध मुआवजा राशि रूपये 37,37,871/- एवं खसरा नंबर 1/6 अर्जित रकबा 0.26 एकड़ भूमि के विरूद्ध मुआवजा राशि रूपये 3,04,80,049/- मनोज अग्रवाल, पिता पवन अग्रवाल को भुगतान किया गया है। अभिलेख अवैधानिक रूप से सुधार किये जाने के कारण शासन को आर्थिक हानि हुई है और अनावश्यक रूप में मुआवजा के रूप में राशि रूपये 3,42,17,920/- का भुगतान किया गया है।

0 दोगुना हुआ बजट, नहर लाइनिंग भी अधूरी

अरपा भैंसाझार परियोजना के लिए शुरुआत में 606 करोड़ का बजट रखा गया था। विलंब और अन्य कारणों के चलते निर्माण लागत बढ़ते ही गया। वर्तमान में छत्तीसगढ़ सरकार ने बजट में बढ़ोतरी करते हुए इसे 1141.90 करोड़ कर दिया है। परियोजना के तहत 370.55 किलोमीटर नहर निर्माण होना है। वर्तमान में229.46 किलोमीटर नहर बन पाया है।

कलेक्टर की जांच में ये दोषी

जांच में दो तत्कालीन एसडीएम समेत पांच राजस्व कर्मी दोषी पाए गए।

1. तत्कालीन एसडीएम कोटा आनंदरुप तिवारी।

2. तत्कालीन एसडीएम कोटा कीर्तिमान सिंह राठौर।

3. नायब तहसीलदार मोहरसाय सिदार।

4. आरआई हुल सिंह।

5. पटवारी दिलशाद अहमद।

6. पटवारी मुकेश साहू सकरी।

सिंचाई विभाग के पांच अधिकारियों की इस केस में भूमिका रही। इन्हें भी जांच में दोषी पाया गया।

1. तत्कालीन ईई कोटा आरएस नायडू।

2. ईई कोटा एके तिवारी।

3. तत्कालीन एसडीओ कोटा राजेंद्र प्रसाद मिश्रा।

4. तत्कालीन एसडीओ तखतपुर आरपी द्विवेदी।

5. सब इंजीनियर तखतपुर आरके राजपूत।

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