Chhattisgarh Tarkash: विधायक जी का एमएमएस

Chhattisgarh Tarkash: छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और राजनीति पर केंद्रित वरिष्ठ पत्रकार संजय के. दीक्षित का पिछले 14 वर्षो से निरंतर प्रकाशित लोकप्रिय साप्ताहिक स्तंभ तरकश

Update: 2023-10-22 10:15 GMT

तरकश, 22 अक्टूबर 2023

संजय के. दीक्षित

विधायक जी का एमएमएस

एक बड़ी पार्टी से विधानसभा चुनाव लड़ रहे युवा विधायकजी के प्रायवेट एमएमएस की चर्चा इन दिनों बड़ी तेज है। हालांकि, विधायकजी मैनेज करने की कोशिशें तो खूब कर रहे हैं मगर दिक्कत यह है कि एमएमएस इतने सारे लोगों के पास पहुंच गया है कि बेचारे कितनों को साध पाएंगे। एमएमएस में विधायकजी मुंबई के मरीन ड्राईव में एक महिला मित्र का हाथ पकड़े समुद्र की लहरों को निहारते...रोमांटिक अंदाज में बात करते नजर आ रहे हैं, तो दूसरा वाला कुछ ज्यादा है, उसे यहां कोट नहीं किया जा सकता। बताते हैं, विरोधी पार्टी विधायकजी के नामंकन की प्रतीक्षा कर रही है। उसके बाद किसी रोज उसे वायरल किया जाएगा। एमएमएस अगर पब्लिक डोमेन में आ गया तो निश्चित तौर पर विधायक की मुश्किलें बढ़ जाएगी। क्योंकि, मौसम चुनावी है। और, ऐसे चटपटे आडियो, एमएमएस को पंख लगते देर नहीं लगते।

दोनों हाथ में लड्डू

कांग्रेस ने पहली सूची में 30 प्रत्याशियों की घोषणा की, उनमें सबसे अधिक गिरीश देवांगन का नाम चौंकाया। उन्हें राजनांदगांव में एक्स सीएम डॉ0 रमन सिंह के खिलाफ मैदान में उतारा गया है। लोग आज भी इसका राज जानने उत्सुक हैं। हालांकि, कांग्रेसी खेमे की तरफ से कहा गया कि रमन सिंह को गिरीश के अलावा कोई टक्कर नहीं दे सकता था। मगर यह भी सही है कि बड़े चेहरों के मुकाबले चुनाव लड़ने के भी अपने फायदे हैं। इसमें दोनों हाथ में लड्डू होते हैं। एक तो आदमी पहचान का मोहताज नहीं रहता। माइनिंग कारपोरेशन के चेयरमैन के तौर पर कुछ परसेंट लोग उन्हें जानते होंगे। अब गिरीश सुखिर्यो में रहेंगे। फिर बड़े व्यक्ति से हारने के बाद सहानुभूति वेटेज भी मिलता है। कई बार राज्यसभा की टिकिट मिल जाती है। अगर गिरीश जीत जाएंगे, तो सोचिए क्या होगा। वे बड़े नेता के तौर पर स्थापित हो जाएंगे, जो 15 साल के सीएम को परास्त कर दिया। देश भर के मीडिया में वे चर्चाओं में रहेंगे।

19-1 का स्कोर

छत्तीसगढ़ के फर्स्ट फेज में जिन 20 सीटों पर इलेक्शन होने जा रहे हैं, उनमें भाजपा के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है। उसे सिर्फ पाना ही है। जाहिर है, इन 20 में से सिर्फ एक सीट बीजेपी के पास है। एक्स सीएम डॉ. रमन सिंह की। यद्यपि, 2018 के विस चुनाव में दंतेवाड़ा से भीमा मंडावी भी जीते थे। मगर नक्सली घटना में उनकी मौत के बाद उपचुनाव में बस्तर की इकलौती सीट भी बीजेपी के हाथ से फिसल गई। इन 20 सीटों में बस्तर की 12 और राजनांदगांव, मोहला मानपुर, खैरागढ़ और कवर्धा जिले की आठ सीटें शामिल हैं। सियासी पंडितों की मानें तो इन 20 में से अभी के हालात में आठ सीटें बीजेपी को मिलती दिख रही हैं। आगे चलकर यह फिगर अप हो जाए या डाउन कहा नहीं जा सकता।

धान वाली 50 सीटें

बस्तर और ओल्ड राजनांदगांव जिले में पिछले चुनाव की तुलना में कांग्रेस की सीटें कम हो रही हैं, उधर सरगुजा की स्थिति भी जुदा नहीं है। सरगुजा की 14 में से अभी की स्थिति में बीजेपी को पांच से छह सीटें आती दिखाई पड़ रही हैं। सरगुजा में बीजेपी अभी जीरो पर है। बहरहाल, ऐसे सिचुएशन में कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियां धान उत्पादन करने वाली 50 मैदानी सीटों पर पूरा जोर लगाने की कोशिश करेंगी। इन्हीं सीटों पर कांग्रेस का धान, किसान और लोगों को टच करने वाला छत्तीसगढ़ी अस्मिता है तो बीजेपी का एंटी इंकांबेंसी के साथ हिन्दुत्व और भ्रष्टाचार का मुद्दा। इन्हीं इलाकों में बसपा का हाथी भी है। बिलासपुर और जांजगीर जिले की कई सीटों पर बीएसपी जीत हार में अहम फैक्टर बनती है। अभी भी पामगढ़ और जैजैपुर बसपा के पास है। 2018 के विधानसभा चुनाव में इन्हीं 50 में बीजेपी की 12, जोगी कांग्रेस की पांच और बसपा की दो सीटें आईं थीं। वहीं कांग्रेस को एकतरफा 31 सीटें मिली थीं। कुल मिलाकर इन्हीं 50 सीटों पर रोचक फाइट देखने का मिलेगी।

गुटीय आधार पर टिकिट

बिलासपुर छत्तीसगढ़ का पहला जिला होगा, जहां सत्ताधारी पार्टी ने योग्यता और जीतने वाले कंडिडेट की बजाए गुटीय आधार पर सीटें बांटी हैं। केंद्रीय चुनाव समिति ने इस बार किसी भी नेता को निराश नहीं किया...बल्कि सभी गुटों को बराबरी से संतुष्ट किया। ये मेरा, ये आपका, ये तुम्हारा...जब टिकिट वितरण का आधार बनेगा तो फिर क्वालिटी की उम्मीद करनी भी नहीं चाहिए। बिलासपुर की छह में से इस समय कांग्रेस के पास दो सीटें हैं और इस चुनाव में भी इसी के आसपास फिगर रहना है। वो भी इसलिए क्योंकि एक टिकिट काम के आधार पर दिया गया है। कांग्रेस के लोगों का भी मानना है कि इस बार बिलासपुर में कांग्रेस पार्टी को सीटें बढ़ाने का मौका था। इसी तरह जांजगीर में भी कांग्रेस को और अच्छा पारफार्मेंस करने का अवसर था। गुटीय सियासत में वहां भी सीटें प्रभावित होती दिख रही हैं। कोरबा में अवश्य कांग्रेस फिर पुरानी स्थिति दोहराने के करीब लग रही है। कोरबा में इस समय तीन कांग्रेस और एक बीजेपी है।

बीजेपी की स्ट्रेटजी

बीजेपी ने जिन 86 सीटों पर टिकिटों का ऐलान किया है उनमें कुछ प्रत्याशियों को देखकर प्रतीत होता है कि जीतने वाला कंडिडेट के साथ ही उसने इस फार्मूले पर टिकिट बांटा है कि हम नहीं तो कांग्रेस भी नहीं। जिन सीटों पर भाजपा को लगा कि उसकी वहां दाल नहीं गल सकती तो उसने ऐसा प्रत्याशी उतार दिया कि गैर कांग्रेस को वहां फायदा मिल जाए। वैसे भी कांग्रेस के लोग बसपा और जोगी कांग्रेस को भाजपा की बी टीम होने का आरोप लगाते ही हैं। जाहिर है, भाजपा ने एक सीट पर ऐसे प्रत्याशी को उतार दिया है, जहां बसपा की सीट सुरक्षित हो गई है।

एडिशनल बोझ

टिकिट के लिए आवेदन करने का फार्मूला लगा कर कांग्रेस नेताओं को रिचार्ज करने में सफल रही मगर उसका खामियाजा अब प्रत्याशियों को उठाना पड़ रहा है। टिकिट डिक्लेयर होने के बाद प्रत्याशियों ने सबसे पहले उनकी लिस्ट निकाली, जिन्होंने टिकिट के लिए अप्लाई किया। चूकि कांग्रेस को भीतरघात का सबसे बड़ा खतरा है इसलिए जो जिस लेवल का है, उस लेवल से उसे संतुष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है। ऐेसे में प्रत्याशियों की जेब पर यह एडिशनल बोझ पड़ जा रहा है।

30 फीसदी नए चेहरे

कांग्रेस पार्टी ने अपनी दो लिस्ट में 83 उम्मीदवारों का ऐलान किया है, इनमें 17 नए चेहरे हैं। याने इन 17 सीटिंग विधायकों की टिकिट कट गई है। पता चला है, आजकल में घोषित होने वाली तीसरी लिस्ट में सभी सात नए प्रत्याशी होंगे। इनमें धमतरी में पहले से भाजपा की रंजना साहू विधायक हैं। बची छह। इन सभी छह सीटों पर पार्टी नए चेहरों को उतारेगी। इस तरह 72 में से 24 विधायकों की टिकिट कांग्रेस ने काट डाली। ये 30 फीसदी होते हैं। इसकी तुलना में भाजपा ने 13 में से सिर्फ एक विधायक को बदला है। डमरुधर पुजारी को। वहीं बसपा ने अपने दोनों विधायकों पर फिर से दांव लगाया है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. चुनावी सियासत में बीजेपी के प्लान बी की बड़ी चर्चा है...क्या है ये प्लान बी?

2. फूड मिनिस्टर अमरजीत भगत के सीतापुर में घिर जाने की असली वजह क्या है?

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