पत्नी की मर्जी के बिना रिलेशन: हाईकोर्ट के जजों का फैसला अलग-अलग, एक ने माना वैवाहिक ब्लात्कार, दूसरे का ये मत...

Update: 2022-05-11 14:51 GMT

नई दिल्ली 11 मई 2022। पत्नी से बिना मर्जी सम्बंध बनाने को मैरिटल रेप मानने या न मानने को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में आज सुनवाई हुई। दो जजो की डिवीजन बेंच में हुई सुनवाई में दोनों जजो के मतो में इस मामले में भिन्नता थी। एक जज ने जहाँ इसे कानूनन ब्लात्कार की परिधि से बाहर माना है और कानून में बदलाव की जरूरत भी नही होना बताया है। तो वही दूसरे जज ने इसे संविधान के विभिन्न अनुच्छेदो का उल्लंघन मानते हुए वैवाहिक बलात्कार को कानूनी सुरक्षा देने वाले प्रावधान को रद्द करने की जरूरत बताई।

दिल्ली हाईकोर्ट में 2015 में वैवाहिक ब्लात्कार को अपराध की परिधि में रखने हेतु याचिका दायर हुई थी। आरआईटी फाउंडेशन, आल इंडिया डेमोक्रेटिक वुमेंस एसोसिएशन,खुशबू सैफी ने इस मामले में याचिका दायर की थी। याचिका में आईपीसी की धारा 375 के अपवाद दो को अमान्य घोषित करने की मांग की गई थी। इसके अनुसार यदि कोई व्यक्ति अपनी 15 वर्ष से अधिक की पत्नी के साथ उसके बिना मर्जी के भी शारीरिक सम्बंध स्थापित करता है तो उसे रेप नही माना जायेगा।

मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति राजीव शकधर व न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की डिवीजन बेंच में हुई। जिसमें दोनों के मत अलग अलग थे। जस्टिस शकधर ने कहा कि विवादित प्रावधान धारा 376 ई और धारा 375 का अपवाद दो संविधान के अनुच्छेद 14,15,19(1)(ए) और 21 का उल्लंघन है। इसलिए इन्हें समाप्त किया जाना चाहिये। जस्टिस शकधर के अनुसार मैरिटल रेप को अपवाद की परिधि से बाहर लाकर रेप के अपराध की परिधि में लाया जाना चाहिए। जस्टिस शकधर के मुताबिक यह अपवाद विवाहित महिलाओ के साथ भेदभाव करता है। पतिओ को पत्नियों से वैवाहिक ब्लात्कार करने के लिये सुरक्षा कवच नही मिलनी चाहिए।

तो वही जस्टिस शंकर ने कहा कि धारा 375 का अपवाद दो 14,19(1)(ए) और 21 का उल्लंघन नही करते हैं। वे वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण के पक्ष में सहमत नही थे। वे कानून में इसे बलात्कार के दायरे से बाहर ही रखने के पक्ष में थे। उन्होंने कहा कि इससे विवाह जैसी संस्था खण्डित होगी और कानून के दुरुपयोग की भी संभावना है। जस्टिस सी हरिशंकर ने कहा कि भरतीय दंड संहिता के तहत प्रदत यह अपवाद असंवैधानिक नही है और सम्बन्धित अंतर सरलता से समझ ने आने वाला है।

दोनो जजो के विचार बटने के बाद दोनो जजो ने माना कि इसकी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी चाहिए। डिवीजन बैंच ने पक्षकारो को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने की छूट दी।

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