Raipur Police Commissioner: ओड़िसा, यूपी, महाराष्ट्र की तरह नहीं...रायपुर में नाम के लिए रहेगा पुलिस कमिश्नर

Raipur Police Commissioner: रायपुर में एक जनवरी से पुलिस कमिश्नर सिस्टम प्रारंभ हो जाएगा। मगर यह बहुत ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं। पर्दे के पीछे जिस तरह की चीजें चल रही हैं, उससे पुलिस कमिश्नर सिस्टम सिस्टम सिर्फ दिखावे के लिए बन कर रह जाएगा। सवा साल पहले खुद मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने स्वंतत्रता दिवस के मंच से इसका ऐलान किया था, बावजूद इसके इसमें रोड़े अटकाने में कोई कमी नहीं की जा रही। सवाल है, अफसर कुछ साल बाद रिटायर होकर चले जाएंगे मगर रायपुर और छत्तीसगढ़ यही रहेगा।

Update: 2025-12-21 08:27 GMT

Raipur Police Commissioner: रायपुर। पुलिस कमिश्नर सिस्टम कोई शोभा बढ़ाने या गर्वान्वित होने जैसी चीजें नहीं है। यह वक्त की जरूरत है। मुंबई और कोलकाता जैसे शहरों में 100 साल पहले अंग्रेजों ने पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू कर दिया था। आजादी के बाद कई राज्यों ने अपनी जरूरत के हिसाब से इस सिस्टम को प्रभावशील किया।

पड़ोस के नागपुर में कई साल पहले पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू हो चुका है। नागपुर में प्लानवे में काम किया गया, तभी आज की तारीख में वह रायपुर से पांच गुना आगे निकल गया है। रायपुर में भी महानगरों जैसे अपराध बढ़ रहे हैं, उसमें पुलिस कमिश्नर सिस्टम को लागू करना जरूरी हो गया था। इस चीज को मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने समझा और मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद पहले ही 15 अगस्त २०२४ के भाषण में इसका ऐलान कर दिया।

मगर विडंबना यह है कि मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद दूसरा 15 अगस्त निकले चार महीने हो गए मगर अभी तक पुलिस कमिश्नर को कोई अता-पता नहीं है। छत्तीसगढ़ के रजत जयंती समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों पुलिस कमिश्नर सिस्टम प्रारंभ करने की चर्चा सुनाई पड़ी थी मगर ऐन वक्त पर उसे टाल दिया गया। बाद में पता चला कि विधानसभा के शीतकालीन सत्र में विधयेक पारित कर एक्ट बनाया जाएगा। याने ओड़िसा की तरह काफी सशक्त पुलिस कमिश्नर प्रणाली बनाया जाएगा। किंतु उसके बाद विधानसभा का एक दिन का स्पेशल सत्र भी निकल गया और फिर शीतकालीन सत्र भी।

नाम का पुलिस कमिश्नर

पता चला है, एक जनवरी से रायपुर में पुलिस कमिश्नर सिस्टम प्रारंभ हो जाएगा। मगर इसके साथ यह भी जानकारी मिली है कि सोशल मीडिया और मीडिया में जो बातें चल रही हैं, उससे उलट सिर्फ नाम के लिए पुलिस कमिश्नर होगा। उसे प्रतिबंधात्मक धारा याने 151 के अलावा और कोई अधिकार देने के पक्ष में सिस्टम नहीं है।

ओड़िसा सबसे बेस्ट

देश में चूकि ओड़िसा में पुलिस कमिश्नर सिस्टम ताजा लागू हुआ है, इसलिए उसका सिस्टम भी काफी तगड़ा है। ओड़िसा ने एक्ट बनाकर उसे क्रियान्वित किया है। लेकिन, छत्तीसगढ़ में एक वर्ग मध्यप्रदेश से ज्यादा अधिकार पुलिस कमिश्नर को देना नहीं चाहता। जाहिर है, एमपी में आईएएस लॉबी के तगड़े विरोध के चलते दंतविहीन पुलिस कमिश्नर सिस्टम बनाया गया, जिसका प्रदेश को कोई लाभ नहीं मिल रहा। वहां के मुख्यमंत्री मोहन यादव अब ओड़िसा की तत्कालीन नवीन पटनायक सरकार द्वारा बनाए गए सिस्टम को फॉलो करने पर मंत्रणा कर रहे हैं।

अंग्रेजी शासन काल से पुलिस कमिश्नर

पुलिस कमिश्नर सिस्टम अंग्रेजों के समय से चला आ रहा है। आजादी के पहले कोलकाता, चेन्नई और मुंबई जैसे देश के तीन महानगरों में लॉ एंड आर्डर को कंट्रोल करने के लिए अंग्रेजों ने वहां पुलिस कमिश्नर सिस्टम प्रभावशील कर रखा था। आजादी के बाद देश को यह वीरासत में मिली। चूकि बड़े महानगरों में अपराध बड़े स्तर पर होते हैं, इसलिए पुलिस को पावर देना जरूरी समझा गया। लिहाजा, अंग्रेजों की व्यवस्था आजाद भारत में भी बड़े शहरों में लागू रही। बल्कि पुलिस अधिनियम 1861 के तहत लागू पुलिस कमिश्नर सिस्टम को और राज्यों में भी प्रभावशील किया गया।

कमिश्नर को दंडाधिकारी पावर

वर्तमान सिस्टम में राज्य पुलिस के पास कोई अधिकार नहीं होते। उसे छोटी-छोटी कार्रवाइयों के लिए कलेक्टर, एसडीएम और तहसीलदार, नायब तहसीलदारों का मुंह ताकना पड़ता है। दरअसल, भारतीय पुलिस अधिनियम 1861 के धारा 4 में जिले के कलेक्टरों को जिला दंडाधिकारी का अधिकार दिया गया है। इसके जरिये पुलिस उसके नियंत्रण में होती है। बिना डीएम के आदेश के पुलिस कुछ नहीं कर सकती। सिवाए एफआईआर करने के। इसके अलावा पुलिस अधिनियम 1861 में कलेक्टरों को सीआरपीसी के तहत कई अधिकार दिए गए हैं। पुलिस को अगर लाठी चार्ज करना होगा तो बिना मजिस्ट्रेट के आदेश के वह नहीं कर सकती। कोई जुलूस, धरना की इजाजत भी कलेक्टर देते हैं। प्रतिबंधात्मक धाराओं में जमानत देने का अधिकार भी जिला मजिस्ट्रेट में समाहित होता है। कलेक्टर के नीचे एडीएम, एसडीएम या तहसीलदार इन धाराओं में जमानत देते हैं।

तत्काल फैसला लेने का अधिकार

महानगरों या बड़े शहरों में अपराध भी उच्च स्तर का होता है। उसके लिए पुलिस के पास न बड़ी टीम चाहिए बल्कि अपराधियों से निबटने के लिए अधिकार की भी जरूरत पड़ती है। धरना, प्रदर्शन के दौरान कई बार भीड़े उत्तेजित या हिंसक हो जाती है। पुलिस के पास कोई अधिकार होते नहीं, इसलिए उसे कलेक्टर से कार्रवाई से पहले इजाजत मांगनी पड़ती है। पुलिस कमिश्नर लागू हो जाने के बाद एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट के अधिकार पुलिस कमिश्नर को मिल जाएंगे। इससे फायदा यह होगा कि पुलिस विषम परिस्थितियों में तत्काल फैसला ले सकती है। हालांकि, इससे पुलिस की जवाबदेही भी बढ़ जाती है।

शास्त्र और बार लायसेंस

पुलिस कमिश्नर सिस्टम में पुलिस को धरना, प्रदर्शन की अनुमति देने के साथ ही शस्त्र और बार का लायसेंस देने का अधिकार भी मिल जाता है। अभी ये अधिकार कलेक्टर के पास होते हैं। कलेक्टर ही एसपी की रिपोर्ट पर शस्त्र लायसेंस की अनुशंसा करता है। बार का लायसेंस भी कलेक्टर जारी करता है।

मगर छत्तीसगढ़ में नहीं

पुलिस कमिश्नर सिस्टम में उक्त सभी अधिकारी पुलिस को होते हैं मगर छत्तीसगढ़ में जो सिस्टम लागू होने जा रहा, वो सिर्फ रस्मी होगा। याने पुलिस कमिश्नर बनकर भी उसे एसपी से खास ज्यादा कोई अधिकार नहीं होगा। वो न तो बार का लायसेंस देखेगा और न ही शास्त्र लायसेंस। उसके पास जिला बदर के अधिकार भी नहीं होंगे।

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