IPS Transfer: जानिये कैसे होता है IPS अफसर का ट्रांसफर, क्या है क्रायटेरिया, कौन करता है तबादला

IPS Transfer: भारतीय पुलिस सेवा भारत की दूसरी सबसे प्रतिष्ठित सेवा मानी जाती है। इसके लिए देश की सबसे बड़ी परीक्षा एजेंसी संघ लोक सेवा आयोग याने यूपीएससी एग्जाम कंडक्ट करती है। दो दौर की कठिन परीक्षा के बाद फिर इंटरव्यू के जरिये आईपीएस में सलेक्शन होता है। सिविल सर्विस एग्जाम से वैसे तो दर्जन भर से अधिक सेवाओं के लिए अफसरों का चयन किया जाता है मगर इसमें आईएएस सबसे उपर होता है। उसके बाद दूसरे नंबर पर आईपीएस होता है। चूकि भारतीय पुलिस सेवा से सुरक्षा और लॉ एंड आर्डर से जुड़ा होता है इसलिए इस सर्विस का भी अपना अलग आकर्षण होता है।

Update: 2024-12-06 08:19 GMT

IPS Transfer: रायपुर। भारतीय प्रशासनिक सेवा की तरह ही भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों का यूपीएससी द्वारा सलेक्शन होने के बाद लाल बहादुर शास्त्री प्रशासन अकादमी मसूरी में प्रारंभिक ट्रेनिंग होती है। इसके बाद आईपीएस अधिकारियों को नेशनल पुलिस एकेडमी हैदराबाद में फिर कड़ी ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता है। इसके उपरांत भारत सरकार जो कैडर याने स्टेट अलॉट करती है, आईएएस अधिकारियों को उस राज्य में जाकर ज्वाईन करना पड़ता है। फिर भारतीय पुलिस सेवा के अफसरों की पोस्टिंग राज्य सरकारें तय करती हैं।

सबसे पहले प्रोबेशन

मसूरी और हैदराबाद में ट्रेनिंग लेने के बाद आईएएस अधिकारी जब अपने कैडर स्टेट में पहुंचते हैं तो उन्हें प्रोबेशन से गुजरना पड़ता है। राज्य सरकार से सबसे पहले उन्हें असिस्टेंट एसपी पोस्ट करती है। असिस्टेंट एसपी के तौर पर आईपीएस अधिकारी संबंधित जिले के एसपी के अधीन कार्य करते हैं। एसपी ही अपने हिसाब से उन्हें कुछ दिनों तक थानेदार बनाकर थाने में बिठाते हैं। ताकि, वे पुलिस मैन्यूल और वर्किंग की उन्हें जानकारी हो जाए।

असिस्टेंट कलेक्टर के बाद डीएसपी

असिस्टेंट असिस्टेंट के रूप में प्रोबेशन कंप्लीट हो जाने के बाद राज्य सरकार उन्हें जिलों में पोस्ट करती है। जिले में किस एरिया का सीएसपी बनाना है, यह एसपी पर निर्भर करता है। एडिशनल एसपी रैंक में पहुंचने के बाद राज्य सरकार सीधे उन्हें अपाइंटमेंट देती है।

मुख्यमंत्री को पावर

देश की दूसरे नंबर की सबसे बड़ी सर्विस होने की वजह से आईपीएस के नियोक्ता मुख्यमंत्री होते हैं। आईएएस का मदर डिपार्टमेंट गृह विभाग होता है। अनेक राज्यों में यह विभाग मुख्यमंत्री के पास होता है। आईपीएस अधिकारियों का पुलिस महानिदेशक याने डीजीपी सबसे बड़े बॉस होते हैं। गृह सचिव और डीजीपी मिलकर आईपीएस अफसरां के मामलों का निबटारा तय करते हैं।

जानिये कैसे होता है आईपीएस का तबादला

आईएएस अधिकारी के तबादले के लिए नियम यह है कि गृह विभाग से नोटशीट चलती है। होम सिकरेट्री चीफ सिकरेट्री को नोटशीट भेजते हैं। चीफ सिकरेट्री के रिकमंडेशन से नोटशीट मुख्यमंत्री तक पहुंचती है। मुख्यमंत्री के अनुमोदन के बाद ही आईपीएस की तबादला सूची फाइनल होती है। मुख्यमंत्री के अनुमोदन के बाद नोटशीट फिर चीफ सिकरेट्री से होते हुए गृह विभाग में पहुंचती है और फिर तबादला आदेश जारी होता है।

डीजीपी की भूमिका

वैसे तो पुलिस महकमे के सबसे बड़े बॉस होने की वजह से आईपीएस अधिकारियों के तबादले में डीजीपी की भूमिका होती है। पहले डीजीजी से ही नोटशीट मंगाई जाती थी। डीजीपी की नोटशीट के बाद फिर गृह विभाग उसे आगे बढ़ाता था। मगर कुछ साल से राज्यों में यह व्यवस्था बदल गई है। डीजीपी की बजाए आजकल उपर से ही आईपीएस अधिकारियों के तबादले हो जा रहे हैं।

सीएम ही सर्वेसर्वा

आजकल आईपीएस के तबादले में मुख्यमंत्री सचिवालय की भूमिका बढ़ गई है। आईपीएस के तबादले से पहले मुख्यमंत्री से मौखिक सहमति ले ली जाती है। फिर उनके सिकरेट्री लिस्ट तैयार करते हैं कि किसे कहां पोस्टिंग देनी है, किसको किस जिले में तबादला करना है। इसके बाद मुख्यमंत्री को लिस्ट दिखाई जाती है। मुख्यमंत्री को लगता है कि लिस्ट ठीक है तो ओके कर देते हैं या फिर कोई नाम हटाना है या जोड़ना तो वे अपने कलम से वे करेक्टशन कर देते हैं। मुख्यमंत्री अगर ओके कर दिए तो फिर उसे फायनल मान लिया जाता है। कई बार इमरजेंसी में तबादले होते हैं, उनमें नोटशीट की औपचारिकता बाद में की जाती है। सीएम की सहमति से आदेश जारी हो जाता है।

आदेश पर किसके हस्ताक्षर

मुख्यमंत्री के अनुमोदन के बाद नोटशीट गृह विभाग पहुंचती है। फिर होम सिकरेट्री तबादला आदेश जारी करते हैं। आदेश पर गृह विभाग के अंडर सिकरेट्री का हस्ताक्षर होता है।

दो साल का कार्यकाल

आईपीएस अधिकारियों का तबादला आमतौर पर दो साल में किया जाता है। मगर परिस्थितियों के अनुसार राज्य इसमें वृद्धि या कम भी कर सकती है। परफार्मेंस ठीक न होने या फिर राज्य सरकार के संतुष्ट न रहने पर कई बार छह महीने, साल भर में भी एसपी, आईजी स्तर के अधिकारियों के तबादले कर दिए जाते हैं। कई बार राज्य सरकार किसी बात से नाराज हो जाती है या फिर कार्य में लापरवाही बरतने पर छुट्टी हो जाती है। वैसे आदर्श टाईम दो साल रखा गया है। वह इसलिए कि पहले छह महीने में आईपीएस अधिकारी प्लानिंग करेंगे और फिर डेढ़ साल में उसका क्रियान्वयन। करीब एक दशक पहले तक विषम परिस्थितियों में ही दो साल से पहले आईपीएस अधिकारियों का तबादला होता था।

डीजीपी का दो साल

डीजीपी जैसे पुलिस के शीर्ष पद पर कम समय में तबादले को सुप्रीम कोर्ट ने भी गंभीरता से लिया। देश की शीर्ष अदालत ने डीजीपी पोस्टिंग का आदेश राज्यों से लेकर यूपीएससी को दे दिया है। अब किसी भी डीजीपी को दो साल के लिए पोस्ट किया जाता है। भले ही उसके रिटायरमेंट में छह महीना बचा हो मगर उसकी पोस्टिंग दो साल के लिए होगी। इसके पहले उसे नहीं हटाया जा सकता। डीजीपी के सलेक्शन के लिए राज्यों को यूपीएससी को नामों का पेनल भेजना होता है। उसकी स्कूटनी कर फिर तीन नामों का पेनल राज्य सरकार को भेजा जाता है। इन्हीं में से किसी एक को डीजीपी राज्य सरकार अपाइंट करती है।

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