Chhattisgarh Tarkash 2025: जांच का असर, 32 करोड़ की बचत

Chhattisgarh Tarkash 2025: छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और राजनीति पर केंद्रित पत्रकार संजय के. दीक्षित का निरंतर 16 बरसों से प्रकाशित लोकप्रिय साप्ताहिक स्तंभ तरकश

Update: 2025-04-27 00:15 GMT
Chhattisgarh Tarkash 2025: जांच का असर, 32 करोड़ की बचत
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तरकश, 27 अप्रैल 2025

संजय के. दीक्षित

जांच का असर, 32 करोड़ की बचत

पाठ्य पुस्तक निगम के चर्चित घपले की जांच का ऐसा असर हुआ कि पेपर का रेट इस बार गिरकर 77 रुपए प्रति किलो पर आ गया। जबकि पिछले साल 109 रुपए किलो से टेंडर हुआ था। सरकारी स्कूलों के बच्चों के लिए करीब 50 लाख पुस्तकें छापने के लिए पापुनि हर साल करीब 10 हजार टन पेपर की खरीदी करता है। 77 रुपए के हिसाब से इस बार 77 करोड़ ही खर्च हुआ। याने खजाने का 32 करोड़ बच गया। पापुनि से जुड़े लोगों की मानें तो 30 परसेंट रेट गिरने के बाद भी 77 करोड़ में से आठ-से-दस करोड़ बंट जाएगा। तो फिर इसे यूं समझा जाए कि पिछले साल करीब 40 करोड़ का खेला हुआ। बता दें, विधानसभा चुनाव 2023 से महीने भर पहले नवंबर 2023 में ही रेट फायनल कर पेपर सप्लाई का आर्डर दे दिया गया था। पापुनि की किताबें कबाड़ में पाए जाने के बाद बवाल मचा तो पता चला बीजेपी वाले खाए पीए कुछ नहीं, गिलास फोड़े बारह आना वाला हाल हो गया। याने आवश्यकता से अधिक पुस्तकें छपवाने के खेल की पृष्ठभूमि विधानसभा चुनाव से पहले बनी और विकास उपाध्याय ने ठीकरा फोड़ दिया सरकार के माथे। अलबत्ता, पापुनि ने जांच के नाम पर खटराल अधिकारियों की कमेटी बनाकर खानापूर्ति करने का प्रयास किया। मगर सीएम विष्णुदेव साय बिगड़ पड़े...बोले, सबसे बढ़ियां जांच कौन करेगा, बताया गया रेणु पिल्ले। पिल्ले कमेटी की जांच का ऐसा असर हुआ कि इस बार पेपर का रेट धराशायी हो गया। राज्य बनने के बाद यह पहला मौका होगा, जब इतना कम रेट गया होगा। बता दें, डेढ़ दशक पहले एक मंत्री ने अपना रेट 25 प्रतिशत फिक्स कर दिया था, उसके बाद पापुनि में घोटाला चरम पर पहुंच गया था। शुक्र है, पापुनि की व्यवस्था पटरी पर आ गई, खजाने का 32 करोड़ बचा सो अलग।

ऐतिहासिक राहत और 'डंडी'

विष्णुदेव साय सरकार ने जमीन-जायदाद के नामंतरण के मामले में ऐतिहासिक फैसला लेते हुए सिस्टम को ऑटोमेटिक कर दिया। याने रजिस्ट्री होते ही अब अपने आप रिकार्ड में आपका नाम चढ़ जाएगा। सरकार के इस फैसले से लोगों का न केवल सिरदर्द कम होगा बल्कि साल में हजार करोड़ का भ्रष्टाचार पर लगाम कसेगा। मगर इसके साथ ही सरकार के लिए संज्ञान लेने लायक प्वाइंट यह है कि राजस्व विभाग ने तीन ऐसी शर्ते जोड़ दी है, उससे सरकार का मूल उद्देश्य के पूरा होने पर संशय है। पहला, कोई विवाद नहीं होनी चाहिए, दूसरा जिओ रेफ्रेंस और तीसरा बटांकन। छत्तीसगढ़ के अधिकांश जिलों में बटांकन का काम पूरा नहीं हुआ है। सूबे में सिर्फ रायगढ़ और राजनांदगांव जिले में 70 परसेंट बटांकन हुआ है। यही हाल, जिओ रेफें्रस का है। पिछले दसेक साल से कई कंपनियां इस पर काम कर रही मगर आज तक यह कंप्लीट नहीं हुआ। और शिकायत तो कोई शरारत करते हुए एक अर्जी दे देगा रजिस्ट्री विभाग में, तो उसका आटोमेटिक नामंतरण नहीं होगा। याने मामला फिर तहसीलदार के पास जाएगा। राजस्व विभाग के अधिकारियों ने पिछली सरकार में भी यही खेला किया था। तत्कालीन सीएम भूपेश बघेल ने गणतंत्र दिवस के भाषण में नामंतरण के सरलीकरण की घोषणा की थी। उसके बाद आईएएस निरंजन दास की अध्यक्षता में तीन आईएएस अधिकारियों की कमेटी बनी। निरंजन दास कमेटी ने भी पटवारी, तहसीलदारों के पक्ष में रिपोर्ट देते हुए कहा कि 14 दिन में अगर नामंतरण नहीं हुआ तो तहसीलदार की कोर्ट में प्रकरण दर्ज हो जाएगा। याने कमेटी ने पेचीदगियां और बढ़ा दी। बहरहाल, वर्तमान सरकार ने बड़ा फैसला किया है...उसकी नीयत नेक है...इसे लागू होने में अभी हफ्ते भर का टाईम है। 3 मई को इसका उद्घाटन किया जाएगा। तीनों शर्तों को अगर शिथिल कर दिया जाए, तो आम आदमी के लिए सचमुच...अकल्पनीय राहत होगी।

2005 बैच, 5 कलेक्टर

पीएससी के चर्चित 2005 बैच के इस समय पांच कलेक्टर हो गए। तीन पहले से थे, दो अभी बने हैं। छत्तीसगढ़ में ऐसा संयोग पहली बार हुआ है कि एक बैच के पांच-पांच अफसरों को जिला मिल गया हो। हालांकि, इसमें कोई गलत नहीं है। हर आईएएस का सपना होता है कलेक्टर बनना। पहले के समय में बेचारे सुरेंद्र बेहार जैसे कई अफसर बिना जिला किए ही रिटायर हो गए। मगर बात 2005 बैच के संदर्भ में तो, सरकार को 360 डिग्री वाला मानिटरिंग सिस्टम स्ट्रांग करना होगा। वरना, 2005 बैच के अधिकारियों का जैसे-जैसे रिटायरमेंट का वक्त आ रहा...इन बेचारों का लीगल खर्चा बढ़ता जा रहा है। जाहिर है, सुप्रीम कोर्ट के सिर्फ एक स्टे पर इनकी नौकरी अटकी हुई हैं। वरना, बिलासपुर हाई कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक गुप्ता ने तो इनकी नियुक्ति निरस्त कर सड़क पर ला दिया था। वो तो भला हो देश के सबसे बड़े और महंगे वकील हरीश साल्वे का, जिनके चलते सुप्रीम कोर्ट से स्टे मिल गया। नौ साल से यह स्टे कंटिन्यू कर रहा है। राहत की बात यह कि राज्य सरकारों ने भी स्टे हटवाने कोई प्रयास नहीं किया। उपर से नजरे इनायत ऐसी कि पिछली सरकार में उन्हें आईएएस भी अवार्ड हो गया।

समरथ को नहीं दोष गोसाई

यह आठवां आश्चर्य होगा कि सीजीएमएससी के इतने कारनामों के बाद भी एमडी का बाल बांका नहीं हुआ। चार कॉलेजों के टेंडर में 500 करोड़ का स्कैम के बाद भी सीजीएमएससी में सब कुछ अनवरत चल रहा है, मानो कुछ हुआ ही नहीं। दरअसल, पीएससी का 2005 बैच धनबल से इतना ताकतवर है कि बेचारी वर्षा डोंगरे दो दशक से संघर्ष करते-करते थक गई। पिछली सरकार ने उल्टे वर्षा को सस्पेंड कर दिया था। एक दूसरे आरटीआई कार्यकर्ता को लग्जरी रिसोर्ट बनवाकर उनका मुंह बंद करा दिया गया। 2005 बैच के अफसर दबी जुबां से मानते हैं कि पोस्टिंग के हिसाब से हमें योगदान देना पड़ता है। जैसे कलेक्टर या मलाईदार बोर्ड या निगम में हैं तो फिर महीने का हेवी हिस्सेदारी उन्हें निभानी पड़ती है। ऐसे में वर्षा डोंगरे क्या कर लेगी, जब पूरा सिस्टम समरथ के साथ है...सुप्रीम कोर्ट से जब तक स्टे हटेगा, तब तक सभी रिटायर हो चुके होंगे। भगवान सिंह उईके तो अगले साल दिसंबर में ही रिटायरमेंट है। हमारे कहने का यह आशय कतई नहीं कि 2005 बैच वाले सारे-के-सारे बैकडोर वाले हैं....मगर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक गुप्ता ने नियुक्ति निरस्त की थी, तो कुछ तो उन्होंने देखा ही होगा। वैसे, पीएससी ने भी कोर्ट में गलती मान ली थी, मगर एक्शन कुछ लिया नहीं। पुणे की पूजा खेड़कर का मामला नेशनल लेवल पर उछल गया इसलिए यूपीएससी ने पूजा का आईएएस निरस्त कर दिया। और छत्तीसगढ़ में....छत्तीसगढ़िया सबले बढ़ियां...यहां जेल जा चुकी बारहवीं की फर्जी टॉपर पोरा बाई सरकारी नौकरी कर रही है...और भर्ती निरस्त हो चुकी अफसर कलेक्टरी।

सूचना आयोग का औचित्य?

पीएससी 2005 की बात चली तो सूचना आयोग की अहमियत पर भी चर्चा लाजिमी है। 2005 में ही सूचना आयोग की स्थापना हुई थी। 20 साल में एकमात्र बड़ी सूचना पीएसससी की ही निकली थी। आरटीआई से ही खुलासा हुआ था कि पीएससी 2005 परीक्षा में किस तरह पैसे और पहुंच के बल पर मेरिट लिस्ट पलट दी गई। इसके बाद फिर सूचना आयोग ने फिर कोई ऐसी जानकारी नहीं दी। एक तरह से कहें तो अब ये सफेद हाथी की तरह हो गया है। हालांकि, दिक्कत सूचना आयुक्तों की नहीं, उन्हें नियुक्त करने वालों की है। मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त ऐसे अधिकारियों को बनाया जाता है, जो पूरी सरकारी नौकरी के दौरान मामलों पर पर्दा डालने का काम करते हैं। रिटायरमेंट के बाद अगर उन्हें सूचना आयुक्त बना दिया जाएगा तो उनसे जानकारी का खुलासा करने की उम्मीद भला कैसे की जा सकती है।

तहसीलदारों का बोझ हल्का

नामंतरण का अधिकार रजिस्ट्री अधिकारी को देकर राज्य सरकार ने तहसीलदारों का न केवल जेब हल्का किया बल्कि उनके कंधों का बोझ भी हल्का कर दिया है। नामंतरण के लिए 14 दिन टाईम लिमिट था मगर बात नहीं बनी तो महीनों फाइल लटकी रहती थी। कभी वीआईपी ड्यूटी का बहाना तो कभी वुनाव का। सरकार ने एक झटके में तहसीलदारों का दोनों बोझ हल्का कर दिया है।

रिटायरमेंट से पहले मान

आईएएस टोपेश्वर वर्मा से काम राजस्व बोर्ड चेयरमैन का लिया जा रहा था और पोस्ट मेंबर का था। मेंबर की हैसियत से वे प्रभारी चेयरमैन के तौर पर काम कर रहे थे। राज्य सरकार ने आईएएस के फेरबदल में इस विडंबना को दूर करते हुए टोपेश्वर को चेयरमैन की पोस्टिंग दे दी है। टोपेश्वर का इसी साल अक्टूबर में रिटायरमेंट है। रेवेन्यू बोर्ड का चेयरमैन मुख्य सचिव के समकक्ष पद है। उपर से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के भांजी दामाद होने के बाद भी सरकार ने टोपेश्वर का कद बढ़ाने में दिल छोटा नहीं किया। पूर्व सीएम के एक भांजी दामाद गृह मंत्री विजय शर्मा के गृह जिले कवर्धा के कलेक्टर हैं। अब आप ये मत समझिएगा कि पूर्व मुख्यमंत्री का इस सरकार में चल रही है। कवर्धा वाला मामला विशुद्ध तौर से गृह मंत्रीजी के दोस्ती का है, और टोपेश्वर का सरकार की उदारता का।

कांग्रेस मंत्री का मॉल और बीजेपी प्रेम

रायगढ़ के रहने वाले केके गुप्ता छत्तीसगढ़ बनने से पहले दिग्विजय सिंह सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे। कारोबारी परिवार से ताल्लुकात रखने वाले गुप्ता का रायगढ में होटल खुला तो बीजेपी के पूर्व मुख्यमंत्री ने फीता काटा था। बिलासपुर के मॉल के समय भी ऐसा ही हुआ। राजधानी रायपुर के एक पुराने मॉल का भी बीजेपी के मुख्यमंत्री ने उद्घाटन किया। कल रायपुर के जोरा मॉल के उद्घाटन में मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष, उपमुख्यमंत्री से लेकर बीजेपी के सारे बड़े नेता फोटो में नजर आए, कांग्रेस के एक भी नहीं। पूर्व मंत्री का कारोबार जिस ढंग से बढ़ रहा है, कहीं ऐसा तो नहीं कि वे बीजेपी ज्वाईन कर लें।

दिल्ली स्टाईल में ट्रांसफर

आईएएस के ट्रांसफर इस बार भारत सरकार के स्टाईल में हुए। अभी तक एक अधिकारी के पास कई-कई एचओडी और मंत्री होते थे। इसमें दिक्कत यह होती थी कि कई बार सेम टाईम में दो-दो मंत्रियों की बैठक हो जाती थी। विधानसभा सत्र के दौरान ब्रीफिंग में भी ये कठिनाई आती थी। सरकार ने अब एकजाई करके एक एचओडी, एक मिनिस्टर कर दिया है। याने अफसरों को अब इधर-उधर भागना नहीं पड़ेगा। उनका एक एचओडी होगा और एक मंत्री। राजस्व पर भी सरकार ने पहली बार ध्यान दिया है। राजस्व बोर्ड वन मैन आर्मी की तरह काम कर रहा था, सरकार ने एक मेम्बर और बिठाया है। रायपुर, दुर्ग संभागों में सर्वाधिक केसों को देखते दोनों संभागों में एक-एक अपर आयुक्त की पोस्टिंग की गई है। अबकी पोस्टिंग में इस सरकार, उस सरकार वाला लेबल हटा दिया गया है। याने पिछले सरकार वाले अफसरों को भी उनके काम के हिसाब से पोस्टिंग दी गई है।

अंत में दो सवाल आपसे?

1. आपकी नजर में रिटायर डीजीपी अशोक जुनेजा के मुख्य सूचना आयुक्त बनने की संभावना कितना प्रतिशत है?

2. मीनल चौबे के महापौर बनने के बाद अगर राजेश मूणत मंत्री बन गए तो फिर बृजमोहन अग्रवाल खेमे का क्या होगा?

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