Chhattisgarh Suchna Vibhag: 40 हजार आवेदन पेंडिंग, सिंगल कमिश्नर से सूचना आयोग का सिस्टम चरमराया, CIC का पद ढाई साल से वैकेंट, जन सूचना अधिकारियों की मौज...

Chhattisgarh Suchna Vibhag: छत्तीसगढ़ में सूचना का अधिकार दम तोड़ने की स्थिति में पहुंच गया है। एक मुख्य सूचना आयुक्त और तीन सूचना आयुक्त के सेटअप वाले आयोग की बदहाली का आलम ये है कि इस समय सब कुछ सिंगल कमिश्नर के भरोसे चल रहा है। जाहिर है, ऐसे में पेंडेंसी हजारों में पहुंचेगी ही। मुख्य सूचना आयुक्त और दो सूचना आयुक्तों की नियुक्ति पर हाई कोर्ट का स्टे है। सूचना आयोग के पंगु बन जाने से सूबे के जन सूचना अधिकारियों की लाटरी निकल गई है। सूचना के आवेदनों की वे कोई परवाह नहीं कर रहे।

Update: 2025-07-22 07:01 GMT

Chhattisgarh Suchna Vibhag: रायपुर। सूचना आयुक्तों की कमी की वजह से छत्तीसगढ़ सूचना आयोग बेपटरी हो गया है। आयोग बिना माई-बाप के चल रहा है। आलम यह है कि आयोग में मुख्य सूचना जैसे मुखिया का पद पिछले ढाई साल से खाली पड़ा हुआ है। नवंबर 2022 में एमके राउत मुख्य सूचना आयुक्त पद से रिटायर हुए थे। उसके बाद इस पद पर भर्ती नहीं हुई।

दिसंबर 2024 में बीजेपी की सरकार बनी तो दो सूचना आयुक्तों की नियुक्ति की। रिटायर आईएएस एनके शुक्ला और नगर निगम के अधिकारी आलोक चंद्रवंशी को सूचना आयुक्त बनाया गया। मगर शुक्ला के साथ एज का प्राब्लम था। इसलिए कम समय में वे रिटायर हो गए। इसके साथ कांग्रेस सरकार में नियुक्त दो सूचना आयुक्तों का कार्यकाल भी खतम हो गया।

वनमैन आर्मी

सूचना आयोग में इस समय एकमात्र सूचना आयुक्त आलोक चंद्रवंशी हैं। जबकि, सेटअप तीन सूचना आयुक्तों का है। आयोग में चार कोर्ट बने हैं। एक मुख्य सूचना आयुक्त याने सीआईसी का और तीन कमिश्नरों का। इस समय एक ही कोर्ट चल रहा। आलोक चंद्रवंशी अगर छुट्टी पर गए या स्वास्थ्यगत कोई परेशानी आई तो फिर जयराम जी की...कोई सुनवाई नहीं होती।

40 हजार पेंडेंसी

एमके राउत जब तक सीआईसी रहे, सूचना आयोग को उन्होंने टाईट करके रखा। उन्होंने केसों के त्वरित निबटारे के लिए ऑनलाइन सुनवाई शुरू करा दी थी। राउत के बाद मनोज त्रिवेदी प्रभारी सीआईसी रहे। इसके साथ उनके पास आठ जिलों का प्रभार और भी था। त्रिवेदी तक फिर भी सब ठीकठाक चला। उसके बाद आयोग का ढांचा लड़खड़ाने लगा। आयोग में इस समय आवेदनों की पेंडेंसी 40 हजार पार कर चुकी है। यूपी, बिहार, मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में भी इतन पेंडेंसी नहीं होती। इन केंसों को 10 सूचना आयुक्त मिलकर भी साल भर में नहीं निबटा सकते।

बिना सीआईसी का आयोग

ये अपने आप में आश्चर्यजनक है कि ढाई साल से आयोग बिना सीआईसी के चल रहा है। याने आयोग का कोई देखने वाला नहीं। समझा जा सकता है कि एकाध सूचना आयुक्त न रहे तो काम चल सकता है। मगर सीआईसी ही गोल तो आयोग का काम कैसे वल रहा होगा, बताने की जरूरत नहीं। कोई भी बोर्ड या आयोग बनता है तो पहले उसका मुखिया नियुक्त किया जाता है। 2005 में जब सूचना आयोग भी पहली बार बना था, तब चीफ सिकरेट्री अशोक विजयवर्गीय को वीआरएस दिलाकर मुख्य सूचना आयुक्त बनाया गया था।

हाई कोर्ट में मामला लंबित

मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त के लिए इंटरव्यू होकर पेनल बन चुका है। मगर 25 साल के अनुभव को लेकर कुछ लोगों ने बिलासपुर हाई कोर्ट में याचिका लगा दी है। हाई कोर्ट में दो महीने से सामान्य प्रशासन विभाग को डेट नहीं मिल पा रहा। सुनवाई के बाद हाई कोर्ट से स्टे हटेगा तो फिर सरकार सीआईसी के साथ दो सूचना आयुक्तों की नियुक्ति कर पाएगी। हाई कोर्ट से क्लियर होने के बाद भी कब नियुक्ति हो पाएगी, कुछ कहा नहीं जा सकता। क्योंकि, ये पॉलीटिकल पोस्टिंग होती हैं।

जनसूचना अधिकारियों की मौज

सूचना आयोग का मामला ढप्प पड़ने की वजह से विभागों के जन सूचना अधिकारियों, अपीलीय अधिकारियों में और निरंकुशता आते जा रही है। चूकि आयोग में कोई काम हो नहीं रहा, और न ही कोई देखने वाला है। आयोग में पूरा सेटअप होता है तो जन सूचना अधिकारियों को जुर्माने का खौफ होता है। मगर इस समय पूरे रामराज है।

सूचना आयोग उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया

सिस्टम में पारदर्शिता रहे और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगे, इस दृष्टि से सूचना आयोग का गठन किया गया था। मगर लोगों की उम्मीदों पर यह खरा नहीं उतर पाया। छत्तीसगढ़ में पीएससी 2003 के स्कैंडल के अलावा शायद ही कोई बड़ा मामला सूचना के अधिकार के तहत सामने आया हो। यहां तक जनसूचना अधिकारियों को सूचना छिपाने पर गाहे-बगाहे ही जुर्माना किया जाता है। वरना, आयोग और जनसूचना अधिकारियों के बीच मिली-जुली कुश्ती चलती रहती है। सूचना आयोग के लोग उसी में खुश रहते हैं कि विभागों से उन्हें दो-चार नौकर, माली, रसोईया मिल जाता है।

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