CG IAS News: छत्‍तीसगढ़ के IAS की गजब कहानी: न वित्‍त की मंजूरी, न तकनीकी स्‍वीकृति.. ड्राईंग-डिजाईन भी खुद ही कर दिया मंजूर, हो गया करोड़ों का खेल

CG IAS News: छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी में भ्रष्‍टाचार के कई मामले ऐसे हैं जिनमें आरोपी अफसरों के खिलाफ जांच हुआ और वे दोषी भी पाए गए, लेकिन कभी कार्रवाई नहीं हुई। भ्रष्‍टाचार करने वाले कई अफसर सेवानिवृत्‍त हो चुके हैं और मजे कर रहे हैं। ऐसे ही एक अफसर की कहानी आज बता रहे हैं। इस अफसर पर अंतरराष्‍ट्रीय क्रिकेट स्‍टेडियम में निर्माण में न केवल गड़बड़ी करने का आरोप लगा बल्कि जांच में आरोप सही भी पाए गए, लेकिन अफसर पर आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।

Update: 2025-01-08 08:08 GMT

CG IAS News: रायपुर। नवा रायपुर में बना अंतरराष्‍ट्रीय क्रिकेट स्‍टेडियम के निर्माण में बड़ा खेल हुआ था। तत्‍कानील खेल सचिव एमएस मूर्ति पर नियम और अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर काम करने का आरोप लगा। करोड़ों रुपये के भ्रष्‍टाचार की शिकायत के बाद सरकार ने जांच का निर्देश जारी कर दिया। जांच की जिम्‍मेदारी आईएएस रेणु पिल्‍ले को सौंपा गया। पिल्‍ले तब सामान्‍य प्रशासन विभाग की सचिव थीं। पिल्‍ले की रिपोर्ट में मूर्ति के खिलाफ लगे आरोप सही पाए गए। इस जांच रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई नहीं हुई और रिपोर्ट मंत्रालय की फाइलों में दबकर रह गया। इसबीच मूर्ति सेवा निवृत्‍त हो गए। मूर्ति के खिलाफ हुई विभागीय जांच की पढ़‍िये पूरी रिपोर्ट

खुद ही जारी कर दी तकनीकी स्‍वीकृति

खेल एवं युवक कल्याण विभाग के सचिव की हैसियत से मूर्ति ने 14.02.2003 को अंतरराष्‍ट्रीय किकेट स्टेडियम के निर्माण के लिए 65.94 करोड रूपये की प्रशासकीय स्वीकृति का आदेश जारी किया। चूंकि यह एक नया मद था ऐसे में प्रशासकीय स्‍वीकृति जारी करने से पहले वित्त विभाग से अनुमोदन प्राप्त करना चाहिए था, लेकिन मूर्ति ने ऐसा नहीं किया। मूर्ति ने संचालक, खेल एवं युवक कल्याण विभाग निर्देश दिया कि इस कार्य की तकनीकी स्वीकृति सक्षम अधिकारी से प्राप्त करने के बाद ही निविदा आमंत्रित की जाए। इसके साथ ही मूर्ति ने तकनीकी स्वीकृति अपने स्तर से ही जारी कर दी जिसके लिए वे सक्षम नहीं थे । यह काम लोक निर्माण विभाग का था।

आईएएस मूर्ति ने संचालक, खेल को 14.02.2003 को जारी पत्र के साथ संलग्न प्राक्कलन में केवल आयटम का नाम और उसके सामने लागत लिखी। प्राक्कलन के साथ निर्धारित प्रपत्र में विस्तृत गणना एवं दरें संलग्न नहीं है। नियमानुसार इसमें छत्तीसगढ शासन, लोक निर्माण विभाग द्वारा प्रचलित एसओआर (दर अनुसूची) का उपयोग किया जाना था परन्तु ऐसा नहीं किया गया है। प्राक्कलन तैयार करते समय सक्षम तकनीकी अधिकारी द्वारा स्वीकृत ड्राईंग के अंनुसार आयटम / सामग्रियों की गणना की जानी थी लेकिन मूर्ति, द्वारा स्वीकृत प्राक्कलन में कोई ड्राईंग / डिजाईन संलग्न नहीं है।

मूर्ति ने आर्किटेक्ट से 14.02.2003 को अनुबंध किया। अनुबंध की शर्त के अनुसार तैयारी, प्रस्तुतीकरण तथा अंतिम आर्किटेक्चरल ड्राईंग का अनुमोदन 30.03.2003 तक हो जाना था। अनुबंध के अनुसार सट्रक्चरल ड्राईंग शासकीय इंजीनियरिंग महाविद्यालय, रायपुर द्वारा अनुमोदित कराया जाना था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। ड्राईंग अनुमोदित नहीं होने के कारण निर्धारित अवधि में कार्य प्रारम्भ नहीं हो सका। बाद में 17.11. 2003 को मूर्ति ने आई०आई०टी०, दिल्ली को प्रूफ चेकिंग कराकर ड्राईंग प्रोजेक्ट मैनेजमेंट कन्सलटेंट को प्रदाय करने हेतु लिखा था। इससे स्पष्ट है कि आर्किटेक्ट (लुंबा) से किये गये अनुबंध के 09 महीने के बाद एवं ठेकेदार (नागार्जुन कम्पनी) के साथ किये गये अनुबंध के 08 माह पश्चात भी ड्राईंग का अनुमोदन नहीं हो पाया। मूर्ति, द्वारा अनुबंध के पूर्व बिल ऑफ कवान्टिटी का आंकलन सही ढंग से नहीं कराया गया एवं निविदाये आमंत्रित कर ली गई। उन्‍होंने 21.02.2005 को समन्वयक, प्रोजेक्ट मैनेजमेंट को निर्देशित किया कि एग्रीमेंट के समय प्रस्तुत बिल ऑफ क्वान्टिटी एवं पुनरीक्षित (रिवाइस्ड) बी.ओ. क्यू. की कवान्टिीज में बहुत अधिक अंतर आ रहा है ऐसे में परियोजना की लागत को सीमित रखने के लिए अनुबंधित बी.ओ.क्यू. पर ही कार्य किया जाये।।

ठेकेदार से किये गये अनुबंध 17.03.2003 के अनुसार कार्य पूर्ण करने का समय कार्यादेश के दिनांक से 24 माह (मानसून सहित) निर्धारित था। परन्तु ठेकेदार को कार्यादेश, अनुबंध के लगभग 18 माह पश्चात् आदेश 23.09.2004 को दिया गया। कार्य आदेश देर से दिये जाने के कारण ठेकेदार ने 16 करोड 23 लाख 50 हजार का दावा प्रस्तुत कर दिया। कार्य आदेश अत्याधिक देर से दिये जाने के कारण ठेकेदार को अनावश्यक रूप से एस्केलेशन का भुगतान करना पड़ सकता है।

मूर्ति द्वारा नागार्जुन कन्सट्रक्शन कम्पनी से 17.03.2003 को अनुबंध किया गया। अनुबंध के साथ वाल्यूम 1, 2 एवं 3 है परन्तु अनुबंध में किसी प्रकार की ड्राइंग का समावेश नहीं है इस प्रकार वाल्यूम 1 के पृष्ठ क0 1 के बिन्दु कमांक-1 में एस्टीमेंटेड वेल्यू आफ वर्कर्स पूट टू टेंडर (Estimated value of works put to tender) के सामने निरंक है एवं बिन्दु कमांक 4, 5 के सामने भी निर्धारित दिनांक एवं समय नहीं दिया गया है। इससे स्पष्ट है कि निविदा आमंत्रित करते समय कार्य की लागत का निर्धारण नहीं किया गया था एवं किसी प्रकार की ड्राइंग भी उपलब्ध नहीं थी। इतना ही नहीं ठेकेदार के चयन के समय आमंत्रित की गई निविदा जिसमें 6 ठेकेदारों ने भाग लिया था के दस्तावेज एवं टेंडर के विश्लेषण हेतु तकनीकी समिति की रिपोर्ट भी मूर्ति द्वारा तैयार नहीं कराई गई ।

मंत्री के आदेश की भी आवहेलना

विभागीय मंत्री द्वारा एम.एस. मूर्ति को निर्देश दिये गये थे कि नोबेलाइजेशन राशि स्वीकृत करने के पूर्व वित्त विभाग की सहमति प्राप्त की जावें। किन्तु उनके द्वारा इसकी अनदेखी की गई। उक्त विसंगति को नियमित करने के लिए विभागीय मंत्री द्वारा निरंतर निर्देश दिये जाने के बावजूद मूर्ति, द्वारा प्रकरण मूल रूप से वित्त विभाग के संज्ञान में नहीं लाया गया। विभागीय मंत्री द्वारा एक टीप मुख्य सचिव को भेजी गई थी जिसे मुख्य सचिव द्वारा परीक्षण हेतु वित्त विभाग को अंकित किया गया। वित्त विभाग द्वारा इसका परीक्षण करने के उपरांत यह राय दी थी कि इस प्रकरण में अनेक गंभीर अनियमितताएं हुई है।

प्रोजेक्ट मैनेजमेंट कंसलटेंट को प्रेषित पत्र 17.11.2003 के अनुसार उन्हें अनुबंध राशि का एक प्रतिशत ही फीस के रूप में भुगतान किया जाना था। यह भुगतान ठेकेदार के चल देयक में वर्णित राशि के अनुसार होना था। ठेकेदार द्वारा मूर्ति के कार्यकाल में प्रथम चल देयक रू. 2.27 करोड का प्रस्तुत किया गया था, जिसका भुगतान उनके द्वारा किया गया। इस राशि का सिर्फ 01 प्रतिशत ही भुगतान प्रोजेक्ट मैनेजमेंट कंसलटेंट को किया जाना था, किन्तु मूर्ति, द्वारा रूपये 30 लाख का भुगतान किया गया है. जिससे स्पष्ट है कि उनके द्वारा प्रोजेक्ट मैनेजमेंट कंसलटेंट को अनुबंध से अधिक का भुगतान किया गया है।

बैंक खाता में भी गड़बड़ी

जांच रिपोर्ट के अनुसार मूर्ति, द्वारा स्टेडियम निर्माण समिति का पंजीयन 5.06.2002 को रजिस्ट्रार फर्म्स एवं सोसायटी से कराया गया था। समिति के नियमों के अनुसार धन का आहरण अध्यक्ष तथा सचिव, सह कोषाध्यक्ष के संयुक्त खाते से होगा किन्तु मूर्ति, द्वारा विजया बैंक, रायपुर में 27.12.2002 को चालू खाता खुलवाया गया। यह खाता एकल संचालन था जिसका संचालन उनके द्वारा किया जाता था। इसके बाद 16.02.2005 को यह खाता बंद करके 22.02.2005 को संयुक्त बचत खाता खोलकर सम्पूर्ण राशि को स्थानांतरित किया गया। इस प्रकार मूर्ति, द्वारा चालू खाता नियमावली के प्रावधान के विपरीत खोला गया। आहरण भी नियमानुसार नहीं किया गया। चालू खाते में समिति की राशि जमा करने के कारण बैंक द्वारा ब्याज नहीं दिया गया अतः समिति को ब्याज की राशि का नुकसान सहना पड़ा।

राज्‍य स्‍तरीय खेल परिसर निर्माण में भी गड़बड़ी

इसी तरह राज्य स्तरीय खेल परिसर का निर्माण कार्य विज्ञान महाविद्यालय के खेल मैदान में प्रस्तावित था। इस कार्य हेतु भारत सरकार द्वारा अनुमानित लागत ये 886.59 लाख के विरुद्ध रु. 400.00 लाख के अनुदान की स्वीकृति दी गई। यह कार्य लोक निर्माण विभाग के बजट वर्ष 2004-05 रायपुर संभाग क-1 अतंर्गत सवीकृत किया गया था। बजट में रूपये 175.00 लाख का प्रावधान था। खेल विभाग के मद में उक्त परिसर हेतु बजट नहीं होने के बावजूद मूर्ति, द्वारा निविदाएं आमंत्रित कर 25.02.05 को अनुबंध किया गया। अनुबंध करने के बाद उन्होनें अंतरराष्‍ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम के लिए स्वीकृत राशि मद से इस कार्य हेतु ठेकेदार आई०व्ही०आर०सी०एल० (इन्फास्ट्रक्चर एण्ड प्रोजेक्ट) हैदराबाद को 28.02.2005 को 72 लाख 37 हजार 500 की राशि प्रदान की गई। राज्य स्तरीय खेल परिसर के लिए न सक्षम अधिकारी की तकनीकी स्वीकृति प्राप्त की गई और न ही प्रशासकीय स्वीकृति के आदेश जारी किए गए। इतना ही नहीं मूर्ति ने लाखों रुपये कैश का भुगतान बिना भाऊचर के ही कर दिया गया।

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