Rohtas District History in Hindi: रोहतास जिला का ऐतिहासिक महत्व, जानिए 1784 में कैसे बना रोहतास? जहां से होता था बिहार और बंगाल का शासन
Rohtas District History in Hindi: बिहार के रोहतास जिले का इतिहास अत्यंत गौरवशाली रहा है। यह क्षेत्र न केवल ऐतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण रहा है, बल्कि यह किसी समय शासन का प्रमुख केंद्र भी रहा।
Rohtas District History in Hindi: बिहार के रोहतास जिले का इतिहास अत्यंत गौरवशाली रहा है। यह क्षेत्र न केवल ऐतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण रहा है, बल्कि यह किसी समय शासन का प्रमुख केंद्र भी रहा। अनेक प्रसिद्ध इतिहासकारों ने रोहतास की गौरवगाथा को अपनी पुस्तकों में स्थान दिया है। बहुत कम लोगों को जानकारी है कि रोहतास कभी बिहार और बंगाल की संयुक्त राजधानी के रूप में कार्य करता था। उस समय राजा मान सिंह यहां से बिहार और बंगाल पर शासन करते थे।
मान सिंह की राजधानी
इतिहासकार डॉ. श्याम सुंदर तिवारी बताते हैं कि 1582 में मुगल सम्राट अकबर ने राजा मान सिंह को बिहार और बंगाल का सूबेदार नियुक्त कर रोहतास भेजा था। राजा मान सिंह ने रोहतासगढ़ पहुंचकर इसे बिहार और बंगाल की संयुक्त प्रांतीय राजधानी घोषित कर दिया था। अकबर के शासनकाल में रोहतासगढ़ में कुल सात परगने शामिल थे। उस समय बंगाल के साथ त्रिपुरा भी राजा मान सिंह के अधिकार क्षेत्र में आता था, जिससे यह स्थान राजनीतिक और सैन्य दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया था।
जिला गठन का वर्ष
1784 में तीन परगनों को मिलाकर रोहतास को एक अलग जिला घोषित किया गया। 22 मार्च को बंगाल प्रेसीडेंसी से पृथक होकर बिहार एक स्वतंत्र राज्य के रूप में स्थापित हुआ। उस समय उड़ीसा और झारखंड भी बिहार के अंतर्गत आते थे तथा राजधानी पटना को बनाया गया था। इसके बाद 1935 में एक बार फिर बिहार का विभाजन हुआ और उड़ीसा एक अलग राज्य बना। फिर 2000 में एक बार और विभाजन हुआ और झारखंड राज्य की स्थापना हुई। इसके बाद 10 नवंबर 1972 को शाहाबाद से अलग होकर रोहतास पुनः जिला बना और उसका मुख्यालय सासाराम को बनाया गया।
पुरातात्विक महत्व का किला
रोहतासगढ़ किले की प्राचीनता, भव्यता और सामरिक स्थिति को देखकर अंग्रेजों ने इसे पुरातात्विक महत्व का स्थल माना। अंग्रेजी शासनकाल के दौरान किले का सर्वेक्षण फ्रांसीसी इतिहासकार और इंजीनियर बुकानन को सौंपा गया था। बुकानन 30 नवंबर 1812 को रोहतास आया और उसने अनेक पुरातात्विक जानकारियाँ एकत्रित कीं। 1881-82 में एचबीडब्ल्यू गैरिक ने इस क्षेत्र का पुनः पुरातात्विक सर्वेक्षण किया और उसे रोहतासगढ़ से राजा शशांक की मुहर का सांचा प्राप्त हुआ, जो इसके ऐतिहासिक गौरव को प्रमाणित करता है।
रोहिताश्व के नाम पर पड़ा नाम
इतिहासकारों की मान्यता है कि अयोध्या के सूर्यवंशी राजा त्रिशंकु के पौत्र और राजा हरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश्व ने कैमूर की पहाड़ियों पर इस किले का निर्माण कराया था। उन्हीं के नाम पर इस क्षेत्र का नाम ‘रोहतास’ पड़ा। किले की बनावट, ऊंचाई और संरचना इसे युद्धकालीन रणनीतियों के लिए उपयुक्त बनाती थी।
सात प्रमुख परगने
शाहाबाद गजेटियर और इतिहासकारों के अनुसार, रोहतास सरकार में कुल सात परगने – रोहतास, सासाराम, चैनपुर, जपला, बेलौंजा, सिरिस और कुटुंबा – शामिल थे। 1632-33 के दौरान इखलास खां को रोहतास का किलेदार नियुक्त किया गया था। उन्हें मकराइन परगना, चांद, सीरिस, कुटुंबा से लेकर बनारस तक की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इसका प्रमाण अकबरपुर की पहाड़ियों के नीचे स्थित एक शिलालेख में मिलता है। यह स्पष्ट करता है कि उस समय रोहतास राजनीतिक और सैन्य गतिविधियों का केंद्र था।
रोहतास के किलेदार
25 फरवरी 1702 को वज़ीर खां के पुत्र अब्दुल कादिर को रोहतास का किलेदार नियुक्त किया गया था। बाद में 1764 में बक्सर के युद्ध में अंग्रेजों ने मीर कासिम को पराजित किया और इसके बाद रोहतास किला अंग्रेजों के अधीन आ गया। 1774 में अंग्रेज कप्तान थॉमस गोडार्ड ने इस किले को अपने नियंत्रण में ले लिया। इस घटनाक्रम ने रोहतास के राजनीतिक महत्व को और भी बढ़ा दिया।
दुर्लभ विशेषताएं
बिहार राज्य का यह पहला ऐसा जिला है, जहां राजस्व और पुलिस मुख्यालय दो अलग-अलग शहरों में स्थित हैं। 1972 में जिले के पुनः गठन के बाद सासाराम को राजस्व मुख्यालय और डेहरी को जिला पुलिस मुख्यालय बनाया गया। यह व्यवस्था अब तक कायम है, जो प्रशासनिक दृष्टिकोण से एक अनूठा उदाहरण है। डेहरी में ही शाहाबाद क्षेत्र का डीआईजी कार्यालय भी स्थित है।