Patna (Bihar) Ka Itihas: 2500 वर्षों पुराने पटना जिले का गौरवशाली इतिहास, सांस्कृतिक समृद्धि, धार्मिक विरासत, राजनीतिक स्थिति, प्रमुख दर्शनीय स्थल पर आधारित विस्तृत जानकारी

Patna ka itihas: पटना भारत के बिहार राज्य की राजधानी है और इसका इतिहास लगभग ढाई हजार साल पुराना माना जाता है। यह शहर प्राचीन समय से ही धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है।

Update: 2025-07-28 17:49 GMT

Patna ka itihas: पटना भारत के बिहार राज्य की राजधानी है और इसका इतिहास लगभग ढाई हजार साल पुराना माना जाता है। यह शहर प्राचीन समय से ही धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। गंगा और सोन जैसी प्रमुख नदियों के किनारे स्थित यह जिला कृषि प्रधान भी रहा है, जिसकी जमीन उपजाऊ और बहुफसली है। समय के साथ पटना ने कई ऐतिहासिक पड़ाव देखे।

Patliputra to Patna: नामों का ऐतिहासिक सफर

पटना को विभिन्न युगों में अनेक नामों से जाना गया है। पहले इसे पाटलिग्राम कहा जाता था, जहां पाटली फूल की खेती होती थी। पाटलिपुत्र नाम इसी पाटली से जुड़ा हुआ है। मौर्यकाल में यूनानी यात्री मेगस्थनीज ने इसे पालिबोथरा कहा, जबकि चीनी यात्री फाहियान ने इसे पालिनफू नाम से उल्लेखित किया। मुस्लिम काल में मुगल सम्राट औरंगजेब ने अपने पोते अज़ीम के नाम पर इसका नाम अजीमाबाद रखा था। शेरशाह सूरी ने इसे पैठना नाम दिया, जिसे बाद में विक्रमादित्य ने पटना में परिवर्तित कर दिया। इन सभी नामों से जुड़ी लोककथाएं और ऐतिहासिक प्रमाण इस शहर की समृद्ध विरासत को दर्शाते हैं।

सर्वधर्म समभाव की मिसाल

पटना हमेशा से ही धार्मिक सहिष्णुता और विविधता का केंद्र रहा है। बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए यह क्षेत्र अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि पास ही वैशाली, राजगीर, नालंदा, बोधगया और पावापुरी जैसे तीर्थ हैं। सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह का जन्म यहीं हुआ था, जिससे यह शहर सिख धर्म के अनुयायियों के लिए भी पूजनीय है। तख्त श्री हरमंदिर साहिब, जिसे पटना साहिब भी कहते हैं, हर साल लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। जैन, इस्लाम और हिंदू धर्मों के भी महत्वपूर्ण स्थल यहां स्थित हैं, जिससे यह जिला एक सर्वधर्म समभाव की मिसाल बन चुका है।

2500 वर्षों की यात्रा

पटना का ऐतिहासिक विकास कई शासकों और साम्राज्यों के अधीन हुआ। चंद्रगुप्त मौर्य, बिंदुसार और सम्राट अशोक जैसे महान शासकों की राजधानी पाटलिपुत्र इसी जिले में थी। बाद में मुस्लिम शासकों और ब्रिटिश शासनकाल में भी इस क्षेत्र का राजनीतिक महत्व बना रहा। सन 1912 में यह बंगाल विभाजन के पश्चात बिहार और उड़ीसा की राजधानी बना। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान चंपारण आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन में भी पटना की सक्रिय भागीदारी रही।

पटना गंगा नदी के दक्षिणी और पुनपुन नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित है। इसके इर्द-गिर्द गंगा, सोन, पुनपुन और गंडक जैसी प्रमुख नदियाँ बहती हैं। गंडक नदी हाजीपुर के पास गंगा में मिलती है। पटना की भौगोलिक स्थिति इसे कृषि और व्यापार के लिए अनुकूल बनाती है। यह शहर अब पश्चिम की ओर दानापुर तक फैल चुका है।

कृषि, उद्योग और व्यापार का संगम

इतिहास में पटना हमेशा एक व्यापारिक और औद्योगिक केंद्र रहा है। यहां से गन्ना, चावल, तीसी और अन्य फसलों का निर्यात होता था। गन्ने की अच्छी उपज के चलते चीनी मिलें भी स्थापित की गईं। 2009 में विश्व बैंक ने पटना को उद्योग आरंभ करने के लिए भारत की दूसरी सर्वश्रेष्ठ जगह माना। जिले में धान, मक्का, दालें, तिलहन और सब्जियों की खेती की जाती है। औद्योगिक रूप से यहां चमड़ा, एग्रो-प्रोसेसिंग और हस्तशिल्प आधारित उद्योग हैं, हालांकि पलायन की समस्या यहां की बड़ी सामाजिक चुनौती बनी हुई है।

जनसंख्या और भाषाई विविधता

2011 की जनगणना के अनुसार पटना जिले की जनसंख्या लगभग 58.39 लाख थी। लिंगानुपात चिंता का विषय है—यहां प्रति 1000 पुरुषों पर केवल 889 महिलाएं हैं। साक्षरता दर 72.47% है। भाषाई दृष्टि से यह जिला विविध है—46.35% लोग मगही, 43.77% हिंदी, 5.19% उर्दू, 2.67% भोजपुरी और 1.24% मैथिली बोलते हैं। धार्मिक आधार पर 91.74% आबादी हिंदू और 7.54% मुस्लिम है।

दशहरा समारोह और संगीत परंपरा

पटना दशहरे के समय विशेष सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बन जाता है। इसकी शुरुआत 1944 में गोविंद मित्रा रोड से हुई थी। 1950 से 1980 के दशक तक यह समारोह देश के नामी कलाकारों का तीर्थ बन गया। भीमसेन जोशी, डीवी पलुस्कर, पंडित जसराज, बिस्मिल्ला ख़ान, बिरजू महाराज, शिवकुमार शर्मा जैसे दिग्गज इस समारोह में प्रस्तुति दे चुके हैं। यह परंपरा अब भी शहर की सांस्कृतिक आत्मा में जीवित है।

14 विधानसभा क्षेत्र

पटना जिले के अंतर्गत 14 विधानसभा क्षेत्र आते हैं—मोकामा, बाढ़, बख्तियारपुर, दीघा, बांकीपुर, कुम्हरार, पटना साहिब, फतुहा, दानापुर, मनेर, फुलवारी (अनुसूचित जाति), मसौढ़ी (अनुसूचित जाति), पालीगंज और बिक्रम।

दर्शनीय स्थल और धरोहरें

  • सभ्यता द्वार: गांधी मैदान के उत्तर दिशा में स्थित यह स्मारक बलुआ पत्थर से बना है और मौर्यकालीन वास्तुकला को दर्शाता है।
  • तारामंडल: इंदिरा गांधी विज्ञान परिसर में स्थित तारामंडल वैज्ञानिक शिक्षा का केंद्र है।
  • अगम कुआं: सम्राट अशोक के काल का यह कुआं ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
  • कुम्हरार: मौर्यकालीन पाटलिपुत्र के भग्नावशेष यहां देखने को मिलते हैं।
  • किला हाउस: शेरशाह सूरी के किले के अवशेषों पर बना यह संग्रहालय जालान परिवार की निजी धरोहरों से भरा है।
  • तख्त श्रीहरमंदिर साहब: सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह की जन्मस्थली है।
  • गांधी मैदान: राजनीतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र।
  • गोलघर: 1786 में अनाज भंडारण के लिए बनी यह इमारत आज शहर का प्रतीक है।
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