Bihar Chunav Explainer: मुस्लिम बहुल सीटों पर कौन भारी? 51 सीटों पर NDA का स्ट्राइक रेट हाई, आंकड़ों और ग्राउंड रिपोर्ट से समझें पूरा खेल
Bihar Chunav Explainer: बिहार की 51 मुस्लिम बहुल सीटों पर NDA का स्ट्राइक रेट 70% तक रहा। AIMIM की एंट्री से बदले समीकरण, महागठबंधन के वोट बैंक में दरार। पढ़ें पूरा विश्लेषण।
Bihar Chunav Explainer: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का सबसे दिलचस्प मोर्चा सीमांचल और मिथिलांचल का इलाका बन गया है। यहाँ मुस्लिम आबादी का रोल निर्णायक है, यही वजह है कि इन सीटों पर हर चुनाव में सत्ता के समीकरण बदलते हैं। बिहार की कुल 243 सीटों में से 86 ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं जबकि 51 सीटें पूर्ण रूप से मुस्लिम बहुल मानी जाती हैं। लंबे समय से माना जाता रहा है कि इन इलाकों में महागठबंधन (MGB) का पलड़ा भारी रहता है, लेकिन आंकड़े और ग्राउंड रिपोर्ट कुछ और कहानी बयां कर रहे हैं।
1. आंकड़ों की हकीकत: NDA का 70% स्ट्राइक रेट
बिहार के मुस्लिम बहुल इलाकों की 51 विधानसभा सीटों में से भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगियों ने 2020 के चुनाव में 35 सीटें जीती थीं। यानी NDA का स्ट्राइक रेट करीब 70% रहा। 2010 में भी NDA को सबसे ज्यादा सीटें मिली थीं। हालांकि 2015 में जब JDU और BJP अलग लड़े तो यह आंकड़ा नीचे चला गया था । यह पैटर्न बताता है कि मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति अब पहले जैसी एकतरफा नहीं रही।
चुनाव वर्ष | मुस्लिम बहुल सीटें | NDA की सीटें | MGB की सीटें | AIMIM/अन्य |
2010 | 51 | 31 | 18 | 2 |
2015 | 51 | 22 | 26 | 3 |
2020 | 51 | 35 | 11 | 5 |
2. सीमांचल की कहानी: AIMIM की एंट्री से बदले समीकरण
सीमांचल के चार जिले किशनगंज, कटिहार, अररिया और पूर्णिया मुस्लिम राजनीति के केंद्र हैं। 2020 में इन 24 सीटों में से 9 BJP, 5 कांग्रेस, 5 AIMIM और 1 RJD को मिली थी। AIMIM की एंट्री ने मुस्लिम वोट को तीन हिस्सों में बांट दिया था। पहले जहां RJD-कांग्रेस को एकतरफा वोट मिलते थे अब AIMIM ने ‘पहचान की राजनीति’ के जरिए इस इलाक़े में पकड़ बना ली है। इससे BJP और JDU को टैक्टिकल वोटिंग का फायदा हुआ।
3. NDA की रणनीति: विकास बनाम पहचान
NDA ने सीमांचल को विकास का चेहरा बनाने की योजना पर काम किया है।
पूर्णिया एयरपोर्ट सेवा शुरू हुई।
किशनगंज और अररिया में सड़कों और पुलों का काम तेज हुआ।
मोदी-नीतीश की रैलियों में इन जिलों को ‘समावेशी विकास क्षेत्र’ के रूप में दिखाया गया।
NDA का फोकस यह दिखाने पर है कि विकास और सुरक्षा के मुद्दों से मुस्लिम वोट भी जीते जा सकते हैं।
4. महागठबंधन की चुनौती: वोटबैंक में दरार
महागठबंधन (RJD, कांग्रेस, वाम दल) का पारंपरिक यादव-मुस्लिम समीकरण अब उतना ठोस नहीं दिख रहा। AIMIM और छोटे दलों की वजह से वोटों का बिखराव बढ़ा है। किशनगंज, अमौर, जोकीहाट, पूर्णिया जैसी सीटों पर MGB को कड़ी टक्कर मिल रही है। अगर मुस्लिम वोट का 70% भी MGB के साथ रहा तो NDA की 20 सीटें खतरे में पड़ सकती हैं लेकिन अगर AIMIM 10 सीटों पर भी मजबूत प्रदर्शन करती है तो फायदा NDA को मिलेगा।
5. AIMIM का रोल: प्रतिनिधित्व की राजनीति
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने सीमांचल में खुद को “मुस्लिम आवाज़” के रूप में प्रोजेक्ट किया है। 2020 में जीती 5 सीटों के बाद अब उनकी पार्टी कटिहार, जोकीहाट और बहादुरगंज जैसी नई सीटों में विस्तार की कोशिश कर रही है। पार्टी का संदेश स्पष्ट है हम किसी के वोट बैंक नहीं, अपनी आवाज़ हैं। यही AIMIM की सबसे बड़ी राजनीतिक पोज़िशनिंग है।
6. ग्राउंड मूड: अब सिर्फ पहचान नहीं, प्रदर्शन भी मायने रखता है
किशनगंज, अररिया और पूर्णिया के कॉलेजों में किए गए सर्वे बताते हैं कि 52% मुस्लिम युवा अब पार्टी नहीं, प्रदर्शन को प्राथमिकता दे रहे हैं। इसका मतलब है कि वे धार्मिक पहचान के साथ-साथ शिक्षा, रोजगार और सम्मान जैसे मुद्दों पर भी ध्यान दे रहे हैं। यह ट्रेंड RJD और NDA दोनों के लिए नई चुनौती बन चुका है।
7. 2025 का प्रोजेक्शन: सीमांचल बनेगा किंगमेकर
• AIMIM का वोट शेयर 2020 के 6% से बढ़कर 2025 में 8–9% तक जा सकता है।
• NDA को 4–6 सीटों का ज्यादा फायदा मिल सकता है।
• महागठबंधन के लिए मुस्लिम वोट को एकजुट रखना कठिन होगा।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि मुस्लिम वोट अब निर्णायक तो है लेकिन स्थायी नहीं। 2025 में सीमांचल का नतीजा ही यह तय करेगा कि बिहार की सत्ता की चाबी पटना में किसके हाथ में जाएगी।