Medieval History of Bihar: तुर्क आक्रमण से मुगलों तक, जानिए बिहार के मध्यकालीन इतिहास की सबसे रोमांचक कहानी, BPSC परीक्षा हेतु उपयोगी जानकारी!
Medieval History of Bihar in Hindi: बिहार का मध्यकालीन इतिहास विदेशी आक्रमणों, शक्तिशाली राजवंशों के उदय और पतन से भरा हुआ है। इस काल में शिक्षा, संस्कृति और समृद्धि के प्रमुख केंद्र ध्वस्त हुए और जनता को करों के अत्यधिक बोझ का सामना करना पड़ा।
Medieval History of Bihar in Hindi: बिहार का मध्यकालीन इतिहास विदेशी आक्रमणों, शक्तिशाली राजवंशों के उदय और पतन से भरा हुआ है। इस काल में शिक्षा, संस्कृति और समृद्धि के प्रमुख केंद्र ध्वस्त हुए और जनता को करों के अत्यधिक बोझ का सामना करना पड़ा। इस युग को भारतीय इतिहास का एक अंधकारमय दौर कहा जाता है। इसी समय बिहार पर ग़ुलाम वंश, खिलजी वंश, तुगलक वंश, नूहानी वंश, चेर वंश, सूर वंश और मुगलों का प्रभाव पड़ा।
प्रारंभिक मध्यकाल: पाल और सेन वंश
पाल वंश की शुरुआत सातवीं शताब्दी के मध्य में बंगाल और बिहार में अराजकता के काल के दौरान हुई। गोपाल (750-770 ई.) को बंगाल के लोगों ने लोकतांत्रिक रूप से राजा चुना। इस घटना को भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण जननिर्वाचन माना जाता है।
धर्मपाल और देवपाल का विस्तार
धर्मपाल (770-810 ई.) ने उत्तरी भारत के कई भागों पर विजय प्राप्त की और कन्नौज में भव्य दरबार लगाया। उन्होंने विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना की और नालंदा को 200 गांव दान में दिए। देवपाल (810-850 ई.) ने साम्राज्य को असम और उड़ीसा तक फैलाया और मुंगेर को राजधानी बनाया। हालांकि पाल शासक बौद्ध धर्म के अनुयायी थे, उन्होंने हिंदू मंदिरों, गुरुकुलों और सांस्कृतिक केंद्रों को भी संरक्षण दिया। दक्षिण एशिया और चीन से व्यापारिक संबंध स्थापित किए।
देवपाल के बाद उनके उत्तराधिकारी विग्रहपाल, नारायणपाल, गोपाल, और महिपाल हुए। महिपाल (988 ई.) को पाल वंश का दूसरा संस्थापक कहा जाता है। राजेन्द्र चोल ने 1023 ई. में उन्हें पराजित किया जिससे पाल वंश का अंत हुआ।
सेन वंश का उत्थान
पाल वंश के पतन के बाद सेन वंश उभरा जिसकी स्थापना सुमंतसेन ने की। उनके उत्तराधिकारी विजयसेन और फिर बल्लालसेन बने। बल्लालसेन विद्वान थे और उन्होंने ‘दानसागर’ व ‘अद्भुतसागर’ जैसे ग्रंथ लिखे। उन्होंने कुलीनता (Kulinism) नामक सामाजिक आंदोलन चलाया।
तुर्क आक्रमण और बख्तियार खिलजी
बख्तियार खिलजी, मुहम्मद गोरी का सेनापति था जिसने 12वीं सदी के अंत में बिहार पर आक्रमण किया। उसने नालंदा, विक्रमशिला और औदंतपुरी विश्वविद्यालयों को नष्ट कर दिया और हजारों बौद्ध भिक्षुओं की हत्या की।
इस काल में उत्तर बिहार पर कर्नाट शासकों और दक्षिण बिहार में छोटे राजाओं का नियंत्रण था। बख्तियार खिलजी ने मिथिला पर भी आक्रमण किया और नरसिंह देव को पराजित किया।उसने बख्तियारपुर नामक नगर की स्थापना की और बाद में अली मर्दान द्वारा उसकी हत्या कर दी गई।
1225 ई. में इल्तुतमिश ने बिहार पर विजय प्राप्त की और मालिक अलाउद्दीन जानी को बिहार में दिल्ली का प्रतिनिधि नियुक्त किया। परंतु इवाज खिलजी ने उसकी हत्या कर दी।परन्तु आगे चलकर बलबन की मृत्यु के बाद बिहार स्वतंत्र हो गया।
खिलजी वंश
सन 1296 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली का सुल्तान बना और अगले ही वर्ष 1297 में उसने शेख मुहम्मद इस्माइल को दरभंगा भेजा। इस्माइल का उद्देश्य बिहार के इस भाग पर सैन्य नियंत्रण स्थापित करना था। लेकिन दरभंगा के शक्तिशाली राजा शक्र सिंह ने उसे कड़ा प्रतिरोध दिया और पहली ही मुठभेड़ में शेख इस्माइल को पराजित कर दिया।
हालांकि, हार के बावजूद शेख इस्माइल ने हार नहीं मानी और पुनः दरभंगा पर आक्रमण किया। इस बार वह विजय प्राप्त करने में सफल रहा। राजा शक्र सिंह को पराजित कर बंदी बना लिया गया। शेख इस्माइल ने अलाउद्दीन खिलजी के प्रति अपनी निष्ठा दिखाते हुए वर्ष 1299-1300 ईस्वी में हुए रणथम्भौर अभियान में सक्रिय भागीदारी की, जिससे यह स्पष्ट होता है कि बिहार की राजनीति उस समय दिल्ली सल्तनत की दिशा में झुकने लगी थी।
तुगलक वंश
तुगलक वंश के काल में ही बिहार पर दिल्ली के सुल्तानों का निर्णायक और स्थायी वर्चस्व स्थापित हुआ। 1324 ईस्वी में दिल्ली के सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक ने बंगाल से लौटते समय उत्तर बिहार की दिशा में सैन्य अभियान चलाया। इस दौरान उसने मिथिला क्षेत्र पर शासन कर रहे कर्नाट वंश के प्रमुख शासक हरिसिंह देव को पराजित कर दिया। विजय के बाद तुगलक सेना ने तिरहुत की राजधानी सिमरावगढ़ को अपने नियंत्रण में ले लिया। गयासुद्दीन ने इस विजय के पश्चात अहमद नामक व्यक्ति को इस क्षेत्र का प्रशासक नियुक्त किया और स्वयं दिल्ली की ओर लौट गया।
1325 ईस्वी में गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र उलूख खान दिल्ली की गद्दी पर बैठा। उसने ही आगे चलकर मुहम्मद बिन तुगलक के नाम से शासन किया। मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में बिहार का नियंत्रण और अधिक संगठित ढंग से दिल्ली सल्तनत के अधीन हो गया।
चेरो/चेर वंश
बिहार के मध्यकालीन इतिहास में चेरो राजवंश का विशेष स्थान रहा है, जो अपनी राजनीतिक शक्ति और क्षेत्रीय विस्तार के लिए प्रसिद्ध था। इस वंश के शासन की प्रमुख पहचान चेरो राज रहा, जिसने शाहाबाद, सारण, चम्पारण और मुजफ्फरपुर जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर प्रभावी शासन स्थापित किया।
12वीं शताब्दी में चेरो वंश का विस्तार उत्तर भारत के बड़े भूभाग तक हुआ था। पूर्व में यह राज बनारस के आगे तक पहुंचा, जबकि पश्चिम में पटना तक इसका प्रभाव फैला। दक्षिण दिशा में चेरो राजवंश ने बिहार शरीफ एवं गंगा नदी तक का क्षेत्र नियंत्रित किया और उत्तर में इसका साम्राज्य कैमूर की पहाड़ियों तक विस्तारित हुआ।
नूहानी वंश का उदय
बिहार के मध्यकालीन इतिहास में नूहानी वंश का प्रादुर्भाव एक अत्यंत अहम और विशेष स्थान रखता है। इस वंश के उदय को सीधे तौर पर दिल्ली सल्तनत के सुल्तान सिकंदर लोदी (1489–1517 ई.) के शासनकाल में हुए राजनीतिक परिवर्तनों से जोड़ा जाता है। जैसे ही सिकंदर लोदी दिल्ली की सत्ता पर आसीन हुआ, उसके सामने जौनपुर के गवर्नर और उसका भाई वारवाक शाह विद्रोही के रूप में उभरकर सामने आया, जिसने शरण लेने के लिए बिहार को चुना।
इससे पूर्व जौनपुर के एक और पूर्व शासक हुसैन शाह शर्की भी बिहार में आ चुका था और उसने तिरहुत और सारण के स्थानीय जमींदारों के साथ मिलकर विद्रोह की स्थिति पैदा कर दी थी। इस कारण बिहार एक राजनीतिक संकट और अस्थिरता का केंद्र बन गया था।
बिहार की बिगड़ती स्थिति को देखते हुए सिकंदर लोदी ने निर्णायक कदम उठाया और बिहार एवं बंगाल के लिए सैन्य अभियान छेड़ा। यह अभियान बिहार की राजनीतिक अस्थिरता को समाप्त करने और दिल्ली सल्तनत के अधिकार को पुनः स्थापित करने के उद्देश्य से किया गया था।
सूर वंश और शेरशाह सूरी
फरीद खान (शेरशाह) ने 1534 में सूरजगढ़ युद्ध और 1539-40 में चौसा व कन्नौज युद्ध में हुमायूं को हराकर भारत से बाहर कर दिया और शेर शाह सुल्तान-ए-आदिल कहलाए। उन्होंने पटना को राजधानी बनाया, चांदी के रुपये चलाए, भूमि राजस्व सुधार लागू किए और ग्रैंड ट्रंक रोड को चिटगांव से काबुल तक बढ़ाया। 1545 ई. में कालिंजर किले की घेराबंदी में शेरशाह की मृत्यु हो गई। उनका मकबरा सासाराम में स्थित है।
कार्रानी वंश और मुगलों का आगमन
ताज खान कार्रानी ने बिहार में सत्ता संभाली। 1576 में अकबर ने राजमहल के युद्ध में दाऊद खान को हराकर बिहार को मुगल साम्राज्य में शामिल कर लिया। 1576 में अकबर ने बिहार को अलग सूबा घोषित किया और मुनिम खान को गवर्नर बनाया। राजा मान सिंह को 1587 में सूबेदार नियुक्त किया गया। उन्होंने रोहतासगढ़ को राजधानी बनाया। 1605 में जहांगीर ने लाला बेग को बिहार का गवर्नर बनाया। 1621 में अपने पुत्र परवेज को नियुक्त किया, लेकिन शाहजहाँ ने विद्रोह कर पटना पर कब्जा किया।
औरंगज़ेब और उसके उत्तराधिकारी
औरंगजेब, जो कि सम्राट शाहजहाँ और रानी मुमताज महल के छठवें पुत्र थे, ने 5 जून 1659 ईस्वी को दिल्ली की गद्दी संभाली। औरंगजेब के सम्राट बनने के साथ ही बिहार के प्रांत का प्रशासनिक नियंत्रण भी नए सिरे से संगठित किया गया। इसी क्रम में, वर्ष 1659 ई. में दाऊद खाँ कुरेशी को बिहार का सूबेदार नियुक्त किया गया। दाऊद खाँ ने 1664 ईस्वी तक इस पद पर रहते हुए बिहार में मुगल प्रशासन को मजबूती प्रदान की।
दाऊद खाँ कुरेशी का शासन काल बिहार के लिए राजनीतिक स्थिरता और शांति बनाए रखने का काल रहा। उन्होंने मुगल नीतियों के अनुसार प्रांत का प्रशासनिक संचालन करते हुए राजस्व वसूली और स्थानीय व्यवस्था को दुरुस्त बनाए रखा। उनके कुशल नेतृत्व में बिहार में शासन व्यवस्था तुलनात्मक रूप से संगठित और अनुशासित बनी रही। 1733 में बंगाल के नवाबों ने बिहार पर नियंत्रण किया। अलीवर्दी खान ने 1756 तक शासन किया और अफगान आक्रमणों को रोका। इसके बाद सिराजुद्दौला नवाब बना और व्यापार में वृद्धि हुई। इस तरह बंगाल और बिहार की राजकीय सत्ता समाप्त हुई और अंग्रेजी साम्राज्य का उदय हुआ।