Diwali Tips: दीपावली पर कैसे होता बही खाता का पूजन, जानिए इस दिन दीपक का वास्तु विज्ञान

Update: 2022-10-20 19:30 GMT

दिवाली का पर्व और मां लक्ष्मी के आगमन का दिन है। लक्ष्मीजी के स्वागत के लिए घर में दीपक जलाने की परंपरा है, इस दिन कुछ खास जगहों पर दीपक जरूर जलाना चाहिए। इसका महत्व शास्त्रों में भी माना गया है जानते हैं दिया और बही खाता का महत्व...

• दिवाली के दिन दीये मिट्टी के जलायें। घर का वास्तु दोष दूर करने के लिए इसमें लाल रंग की बाती रखें। इससे संकट समाप्त हो जाते हैं। दीपावली पर दीये लगाते समय उनकी संख्या 11, 21, 31 आदि होनी चाहिए।

• सबसे पहले एक बड़ा घी का दीपक मां लक्ष्मी की तस्वीर के सामने जलाएं। उसके बाद घर को तेल के दीपक से सजाएं। घर के मुख्य द्वार के दोनों ओर सरसों के तेल का दीपक जलाएं।

• घर के आंगन में घी का दीपक रखना चाहिए। घर के आस-पास वाले चौराहे पर भी दीपक जलाकर रखना चाहिए। ऐसा करने से दरिद्रता दूर होती है। घर के आस-पास यदि कोई मंदिर है तो वहां पर भी दीपक जलाना चाहिए।

• दीपावली की रात्रि पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाने से देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती है। सोई में घी का दीपक गैस के चूल्हे के दोनों ओर जलाएं, ऐसा करने से कभी अन्न की कमी नहीं होती है। घर के द्वार पर रंगोली सजाएं और वहां दीपक जरूर जलाएं। घर की चौखट पर कुमकुम-हल्दी का टीका करके मां लक्ष्मी के लिए तेल का दीपक जलाएं।

• घर में तो दीपक जलाते हैं लेकिन मंदिर जाना भूल जाते हैं। दीपावली की शाम घर के साथ−साथ मंदिर जाकर वहां पर भी दीए अवश्य जलाने चाहिए। ऐसा करने से घर की दरिद्रता दूर होती है और व्यक्ति को ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

• पति−पत्नी के संबंधों में मधुरता बनाए रखने के लिए बेडरूम में एक दीपक जलाया जा सकता है। अगर आप बेडरूम में दीपक प्रजवल्लित कर रहे हैं, तो उसमें कपूर भी अवश्य मिलाएं। यह संबंधों में नकारात्मकता को दूर करने का काम करता है।

• दीपावली के दिन भी तुलसी के पौधे के नजदीक एक दीपक अवश्य प्रजवल्लित करना चाहिए। ऐसा करने से न सिर्फ घर में सुख−समृद्धि व शांति आती है, बल्कि भगवान विष्णु की कृपा भी उस घर पर होती है।

• शनि के प्रकोप को कम करने के लिए पीपल के पेड़ के नीचे दीपावली के दिन दीपक अवश्य जलाना चाहिए। साथ ही घर की सिंक या नाली पर दीपक जलाने के व्यक्ति को अकाल मृत्यु का भय खत्म हो जाता है।

दिवाली पर बही-खाता पूजन

बही खातों का पूजन करने के लिए पूजा मुहुर्त समय अवधि में नवीन बहियों व खाता पुस्तकों पर केसर युक्त चंदन से अथवा लाल कुमकुम से स्वास्तिक का चिन्ह बनाना चाहिए। इसके बाद इनके ऊपर ''श्री गणेशाय नम:'' लिखना चाहिए। इसके साथ ही एक नई थैली लेकर उसमें हल्दी की पांच गांठें, कमलगट्टा, अक्षत, दुर्गा, धनिया व दक्षिणा रखकर, थैली में भी स्वस्तिक का चिन्ह लगाकर सरस्वती मां का स्मरण करना चाहिए। साथ ही नीचे लिखे मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए-

या कुन्देन्दुतुषारहार धवला या शुभ्र वस्त्रावृता, या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।,

या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभि र्देवै: सदा वन्दिता,सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा।।

ऊँ वीणापुस्तकधारिण्यै श्रीसरस्वत्यै नम:

उक्त मंत्र जाप करके मां सरस्वती का ध्यान इस प्रकार करना चाहिए- जो अपने कर कमलों में घंटा, शूल, हल, शंख, मूसल, चक्र, धनुष और बाण धारण करती हैं। चन्द्रमा के समान जिनकी मनोहर क्रांति है। जो शुंभ-निशुंभ आदि दैत्यों का नाश करने वाली हैं। वाणी बीज जिनका स्वरूप है तथा जो सच्चिदानन्दमय विग्रह से संपन्न हैं। उन भगवती महासरस्वती का मैं ध्यान करता हूं।

ध्यान करने के बाद बही खातों का गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करें। जहां पर नवग्रह यंत्र बनाया गया है। वहां पर रुपया, सोना या चांदी का सिक्का, लक्ष्मी जी की मूर्ति या मिट्टी के बने हुए लक्ष्मी-गणेश, सरस्वती और अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां या चित्र सजायें। कोई धातु की मूर्ति हो तो उसे साक्षात रूप मानकर दूध, दही ओर गंगाजल से स्नान कराकर अक्षत, चंदन का श्रृंगार करके फूल आदि से सजाएं। इसके ही दाहिने और एक पंचमुखी दीपक जलायें, जिसमें घी या तिल का तेल प्रयोग किया जाना चाहिए।

कुबेर पूजन विधिकुबेर पूजन करने के लिए प्रदोष काल या सायंकाल उचित होता है। शुभ समय में कुबेर पूजन करना लाभकारी होता है। कुबेर पूजन करने के लिए सबसे पहले तिजोरी अथवा धन रखने के संदूक पर स्वस्तिक चिन्ह बनायें और कुबेर का आह्वान करें। आह्वान के लिए यह मंत्रोच्चारण करें- आवाहयामि देव त्वामिहायाहि कृपां कुरु। कोशं वद्र्धय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्वर।। आह्वान करने के बाद ऊँ कुबेराय नम: इस मंत्र को 108 बार बोलते हुए तिजोरी, संदूक का गंध, पुष्प आदि से पूजन करना चाहिए।

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