CG Jain Muni Acharya Vidyasagar: छत्‍तीसगढ़ में आज राजकीय शोक: जैन मुनि विद्यासागर महाराज के देहावसान के कारण घोषित हुआ शोक, देखें आदेश

CG Jain Muni Acharya Vidyasagar:

Update: 2024-02-18 06:32 GMT

CG Jain Muni Acharya Vidyasagar: रायपुर। जैन मुनि विद्यासागर महाराज का देहावसान हो गया है। इसकी वजह से छत्‍तीसगढ़ में आज आधे दिन के शोक की घोषणा की गई है। इस दौरान प्रदेश के सभी शासकीय भवनों में जहां राष्‍ट्रीय ध्‍वज नियमित रुप से फहराया जाता है, वहां ध्‍वज आधे झूके रहेंगे। सरकार के स्‍तर पर कोई भी सांस्‍कृतिक या मनोरंजन वाले कार्यक्रमों का आयोजन नहीं होगा।

बता दें कि जैन मुनि विद्यासागर महाराज ने छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ स्थित चंद्रगिरि पर्वत में अपना शरीर त्याग दिया है। आचार्य विद्यासागर ने पूर्ण जाग्रतावस्था में उन्होंने आचार्य पद का त्याग करते हुए तीन दिनों का उपवास लिया था। अखंड मौन धारण करते हुए शनिवार की रात 2:35 मिनट पर महाराज ने अपना शरीर त्याग दिया। उनके शरीर त्यागने की खबर मिलने के बाद जैन समाज के लोग उनके दर्शन के लिए बड़ी संख्या में चंद्रगिरि पर्वत पर जुट रहे हैं। आज (रविवार) दोपहर 1 बजे अंतिम संस्कार किया जाएगा।

जानिए जैन मुनि आचार्य विद्यासागर महाराज के बारे में

जैन मुनि आचार्य विद्यासागर महाराज का जन्म 10 अक्‍टूबर 1946 शरद पूर्णिमा के दिन कर्नाटक के बेलगाम जिले के सदलगा गांव में एक जैन परिवार में हुआ था। जन्म में बालक विद्याधर जी का बचपन से ही धर्म में गहरी रुचि थी। जिस घर में उनका जन्‍म हुआ था, अब वहां एक मंदिर और संग्रहालय है। 4 बेटों में दूसरे नंबर के बेटे विद्याधर ने कम उम्र में ही घर का त्‍याग कर दिया था। 1968 में 22 साल की उम्र में अजमेर में आचार्य शांतिसागर से जैन मुनि के रूप में दीक्षा ले ली।

इसके बाद 1972 में महज 26 साल की उम्र में उन्‍हें आचार्य पद सौंपा गया था। आचार्य विद्यासागर महाराज की माता का नाम श्रीमति और पिता का नाम मल्लपा था। उनके माता-पिता ने भी उनसे ही दिक्षा लेकर समाधि मरण की प्राप्ति की थी। पूरे बुंदेलखंड में आचार्य विद्यासागर महाराज 'छोटे बाबा' के नाम से जाने जाते हैं क्योंकि उन्होंने मप्र के दमोह जिले में स्थित कुंडलपुर में बड़े बाबा आदिनाथ भगवान की मूर्ति को मंदिर में रखवाया था और कुंडलपुर में अक्षरधाम की तर्ज पर भव्य मंदिर का निर्माण भी करवाया था।

कई भाषाओं का ज्ञान

आचार्य जी को हिन्दी, मराठी और कन्नड़ भाषा का ज्ञान था। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत के विशाल मात्रा में रचनाएं भी की हैं। सौ से अधिक शोधार्थियों ने उनके कार्य का मास्टर्स और डॉक्ट्रेट के लिए अध्ययन किया है। उनके कार्य में निरंजना शतक, भावना शतक, परीषह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक शामिल हैं। उन्होंने काव्य मूक माटी की भी रचना की है। विभिन्न संस्थानों में यह स्नातकोत्तर के हिन्दी पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है।



 


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