Bilaspur High Court: झूठे मुकदमे के बढ़ते चलन को लेकर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने जताई चिंता
Bilaspur High Court: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के जस्टिस गौतम भादुड़ी ने अग्रिम जमानत को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण फैसला दिया है। कोर्ट ने झूठे मुकदमे के बढ़ते चलन पर चिंता जताई है। कोर्ट ने कहा कि अग्रिम जमानत देने की ज़रूरत मुख्य रूप से इसलिए पड़ती है क्योंकि कभी-कभी प्रभावशाली व्यक्ति अपने प्रतिद्वंद्वियों को बदनाम करने या अन्य उद्देश्यों के लिए उन्हें कुछ दिनों के लिए जेल में बंद करवाकर झूठे मामले में फंसाने की कोशिश करते हैं। हाल के दिनों में, राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता बढ़ने के साथ, इस प्रवृत्ति में लगातार वृद्धि के संकेत मिल रहे हैं। पढ़िए हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला।
Bilaspur High Court: बिलासपुर। अग्रिम जमानत को लेकर दायर एक मामले की सुनवाई करते हुए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने मौजूदा परिवेश में झूठे मुकदमेबाजी के बढ़ते चलन को लेकर चिंता जताई है। हाल के दिनों में, राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता बढ़ने के साथ, इस प्रवृत्ति में लगातार वृद्धि के संकेत मिल रहे हैं। कोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ याचिकाकर्ता महिला की अग्रिम जमानत आवेदन को स्वीकार करते हुए सशर्त जमानत दे दी है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को जरुरी शर्तों के साथ अग्रिम जमानत दे दी है।
मामले की सुनवाई जस्टिस गौतम भादुड़ी के सिंगल बेंच में हुई। मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने झूठे मामले में फंसाने और पुलिस में झूठी रिपोर्ट लिखाने की बढ़ती प्रवृति पर चिंता के साथ ही नाराजगी भी जताई है। कोर्ट ने यह भी कहा कि यही कारण है कि नए कानून में अग्रिम जमानत देने के मामले में जरुरी प्रावधान के साथ ही न्यायालय को और अधिक अधिकार सम्पन्न बनाया है। कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि
अग्रिम जमानत देने की ज़रूरत मुख्य रूप से इसलिए पड़ती है क्योंकि कभी-कभी प्रभावशाली व्यक्ति अपने प्रतिद्वंद्वियों को बदनाम करने या अन्य उद्देश्यों के लिए उन्हें कुछ दिनों के लिए जेल में बंद करवाकर झूठे मामले में फंसाने की कोशिश करते हैं।झूठे मामलों के अलावा, जहां यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि किसी अपराध के आरोपी व्यक्ति के फरार होने या जमानत पर रहते हुए अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग करने की संभावना नहीं है, वहां उसे पहले हिरासत में लेने, कुछ दिनों के लिए जेल में रहने और फिर जमानत के लिए आवेदन करने की आवश्यकता नहीं है।
क्या है मामला
राजनादगांव निवासी अभिषेक त्रिवेदी, आवेदिका परीशा त्रिवेदी का पति है, दुबई (यूएई) में रहता है। आशीष स्वरूप शुक्ला जो इस मामले में आवेदक क्रमांक दो है, परीशा त्रिवेदी का चाचा है। 04.07.2016 को, परीशा त्रिवेदी अपने चाचा आशीष स्वरूप शुक्ला के साथ, अपने पति के पैतृक घर राजनांदगांव गई थी। जहां उसके पति के भाई दुर्गेश त्रिवेदी के साथ कुछ तीखी बातचीत हुई थी। उस समय दुर्गेश त्रिवेदी कुछ सामान लेकर बाहर आया, जो परीशा त्रिवेदी का था और यह कहा गया कि उसने गलती से एक मोबाइल उठा लिया जो शिकायतकर्ता दुर्गेश त्रिवेदी का था। परीशा ने बताया कि तुरंत ही ई-मेल भेजकर बताया कि उन्होंने गलती से एक मोबाइल फोन उठा लिया है, जो दिखने में एक जैसा है, और वे उसे वापस करना चाहते हैं, लेकिन उक्त मुद्दे को अनावश्यक रूप से विवाद का स्रोत बना दिया गया है।
यह भी बताया गया कि रिपोर्ट दर्ज होने के बाद, 14.12.2017 को पुलिस द्वारा क्लोजर रिपोर्ट दायर की गई थी। परीशा और उनके चाचा के वकील ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता परीशा त्रिवेदी अपने पति अभिषेक त्रिवेदी के घर गई थी और घर की बहू होने के नाते उसे अपने पति के घर जाने का अधिकार है। याचिकाकर्ता के तर्कों का विराेध करते हुए शिकायतकर्ता और राज्य शासन के अधिवक्ता ने जमानत देने का विरोध करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने आज तक मोबाइल वापस नहीं किया गया है। हैंडसेट में सिम बदलकर साक्ष्यों से छेड़छाड़ की जा रही है। लिहाजा याचिकाकर्ता अग्रिम जमानत की हकदार नहीं हैं।
BNS में यह है प्रमुख प्रावधान
0 कोर्ट ने कहा कि बीएनएसएस ने उन शर्तों को शामिल किया है जो विशेष मामले के तथ्यों के आलोक में अग्रिम जमानत देते समय लगाई जा सकती हैं। जिसमें यह शर्त भी शामिल है कि व्यक्ति आवश्यकता पड़ने पर पुलिस अधिकारी द्वारा पूछताछ के लिए स्वयं को उपलब्ध कराएगा।
0 व्यक्ति मामले के तथ्यों से परिचित किसी व्यक्ति को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोई प्रलोभन, धमकी या वादा नहीं करेगा जिससे कि वह ऐसे तथ्यों को न्यायालय या किसी पुलिस अधिकारी के समक्ष प्रकट करने से विमुख हो जाए।
0 व्यक्ति न्यायालय की पूर्व अनुमति के बिना भारत नहीं छोड़ेगा। ऐसी अन्य शर्त जो धारा 480 की उपधारा (3) के अंतर्गत लगाई जा सकती है।
नई धाराओं में जमानत देने के व्यापक आधार व अधिकार
कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि उक्त संशोधन से पता चलता है कि अग्रिम जमानत के दायरे को बढ़ाने के लिए प्रावधानों में संशोधन किया गया है। जब यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि किसी अपराध के आरोपी व्यक्ति के फरार होने या जमानत पर रहते हुए अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग करने की संभावना नहीं है, तो उसे पहले हिरासत में लेने, कुछ दिनों तक जेल में रहने और फिर जमानत के लिए आवेदन करने की आवश्यकता नहीं है। इस संबंध में यह ध्यान रखना बहुत महत्वपूर्ण है। भारत के विधि आयोग ने 24-9-1969 की अपनी 41वीं रिपोर्ट में दंड प्रक्रिया संहिता में एक प्रावधान शुरू करने की आवश्यकता बताई थी, जिससे उच्च न्यायालय और सत्र न्यायालय को "अग्रिम जमानत" देने में सक्षम बनाया जा सके।
याचिकाकर्ता को इन शर्तों का करना होगा पालन
0 आवेदक जब भी आवश्यक हो, जांच अधिकारी के समक्ष पूछताछ के लिए स्वयं को उपलब्ध कराएंगे।
0 मामले के तथ्यों से परिचित किसी भी व्यक्ति को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोई प्रलोभन, धमकी या वादा नहीं करेंगे जिससे कि वह ऐसे तथ्यों को न्यायालय या किसी पुलिस अधिकारी के समक्ष प्रकट करने से विमुख हो जाए।
0 आवेदक किसी भी तरीके से ऐसा कार्य नहीं करेंगे, जो निष्पक्ष और शीघ्र सुनवाई के लिए प्रतिकूल हो।
0 आवेदक, मुकदमे के निपटारे तक, उक्त न्यायालय द्वारा उन्हें दी गई प्रत्येक तारीख को, विचारण न्यायालय के समक्ष उपस्थित होंगे।