Bilaspur Airport: सेना के रुख पर हाई कोर्ट की दोटूक -एक बार सहमति देने के बाद अपनी बात से मुकर नहीं सकते

Bilaspur Airport: बिलासपुर एयरपोर्ट विस्तार को लेकर दायर पीआईएल पर सुनवाई करते हुए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने सेना और रक्षा मंत्रालय के लिए कड़ा रुख अख्तियार किया। कोर्ट ने कहा कि पब्लिक से जुड़ा बड़ा प्रोजेक्ट है। जब एक बार दो सरकारों के बीच सहमति बन गई है तो फिर उससे कैसे मुकरा जा सकता है। पढ़िए हाई कोर्ट ने सेना और रक्षा मंत्रालय के अलावा राज्य सरकार से क्या कहा।

Update: 2024-09-27 13:13 GMT

Bilaspur Airport: बिलासपुर। जस्टिस गौतम भादुड़ी व जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने बिलासपुर एयरपोर्ट के विकास में आड़े रहे जमीन आवंटन की अनिश्चितता को दूर कर दिया है। डिवीजन बेंच ने साफ कहा है कि रक्षा मंत्रालय ने जब सेना के कब्जे वाली जमीन पर एयरपोर्ट विस्तार की सहमति पहले ही दे दी है तो अब उसे रद नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने दोटूक कहा कि जमीन आवंटन को लेकर और कोई आपसी मामला है तो दोनों सरकारें मिलकर सुलझाएं। जनहित के इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के अपग्रेडेशन को नहीं रोका जा सकता।

जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से पैरवी करते हुए अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने अब तक इस मामले में हाई कोर्ट द्वारा पारित आदेशों के उन अंशों को पढ़कर सुनाया जिसके आधार पर यह स्पष्ट हो जाता है कि रक्षा मंत्रालय और सेना के द्वारा एयरपोर्ट विस्तार के लिए अपने कब्जे वाली जमीन पर कार्य करने की अनुमति पहले ही दे दी थी। जमीन के बदले राज्य शासन को कितनी राशि सेना को देनी थी इस पर भी विस्तार से चर्चा हो चुकी है। जमीन का सीमांकन भी हो चुका है। अब इस पर एयरपोर्ट विस्तार का काम होना शेष है।

रक्षा मंत्रालय और राज्य सरकार के बीच पहले ही बन चुकी है सहमति

हाई कोर्ट ने अपने पुराने आदेशों के अवलोकन से पाया कि एक से अधिक बार रक्षा मंत्रालय और राज्य सरकार सेना के कब्जे वाली जमीन को एयरपोर्ट विस्तार के लिए देने की सहमति दे चुकी हैं। सेना का ट्रेनिंग सेंटर वाला प्रोजेक्ट पहले ही ड्राप हो चुका है। सेना के कब्जे वाली पूरी 1012 एकड़ जमीन बीते 12 साल से खाली पड़ी है । इसमें से 287 एकड़ जमीन एयरपोर्ट विस्तार के लिए चाहिए। रनवे की लंबाई 1500 मीटर से बढ़कर अधिकतम 2885 मीटर की जा सके जिसमें बड़े बोइंग और एयरबस जैसे विमान उतर सके। ऐसा होने पर ही बिलासपुर एयरपोर्ट को फोर सी आइएफआर का दर्जा मिल सकेगा।

एयरपोर्ट विस्तार कार्य जारी रखने, शासन को निर्देश

जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच ने राज्य सरकार को बिलासपुर एयरपोर्ट के विस्तार के काम को जारी रखने का निर्देश दिया। कोर्ट ने फोर सी एयरपोर्ट बनाने के लिए अब तक क्या कदम उठाए गए है,इसकी जानकारी अगली सुनवाई के पहले देने का निर्देश दिया है। वर्तमान में बिलासपुर एयरपोर्ट के रनवे की लंबाई केवल 1500 मीटर है। इसके चलते 80 सीटर से बड़े विमानों की यहां लैंडिंग नहीं हो सकती। एयरपोर्ट में रनवे की लंबाई कम से कम 2200 मीटर होने के बाद ही बोइंग और एयरबस जैसे विमानों की लैंडिंग होगी। लिहाजा रनवे का विस्तार 2885 मीटर तक किया जाना है। यह होते ही बिलासपुर एयरपोर्ट अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के लिए भी सक्षम हो जाएगा।

नाइट लैंडिग कार्य- कोर्ट ने एएआई से मांगा स्टेटस रिपोर्ट

डिवीजन बेंच ने एयरपोर्ट अथारिटी आफ इंडिया को नाइट लैंडिंग के लिए आवश्यक डीवीओआर मशीन आयात किए जाने के संबंध में,स्टेटस के बारे में पूछा और पूरी जानकारी मांगी। बता दें कि एयरपोर्ट अथारिटी आफ इंडिया ने इस कार्य के लिए कोर्ट से दो साल का समय मांगा था। याचिकाकर्ताओं के साथ ही राज्य शासन के अधिवक्ताओं ने इस पर आपत्ति दर्ज कराते हुए डिवीजन बेंच से कम समय में काम पूरा करने का अनुरोध किया था। अधिवक्ताओं ने हाई कोर्ट को यह भी बताया कि केंद्र सरकार को पूर्व में प्रस्तुत की गई बिलासपुर एयरपोर्ट विस्तार योजना में डीवीओआर स्थापना और नाइट लैंडिंग का कार्य 2024-25 वर्ष में ही होने की बात कही गई है।

शुक्रवार को जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से डिप्टी सालिसिटर जनरल रमाकांत मिश्रा, राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता रणवीर सिंह मरहस,याचिकाकर्ता अधिवक्ता संदीप दुबे की ओर से अमन पांडे ने पैरवी की।

कमल दुबे की ओर से पुत्र माधव दुबे बनेंगे याचिकाकर्ता

जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान एयरपोर्ट विकास को लेकर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में पहली बार याचिका दायर करने वाले पत्रकार कमल दुबे की मृत्यु पश्चात उनके पुत्र माधव प्रसाद दुबे ने अपने पिता की जगह याचिकाकर्ता बनने का आवेदन दिया था। इसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है। बता दें कि इस जनहित याचिका के अलावा एक जनहित याचिका हाई कोर्ट प्रैक्टिसिंग एडवोकेट बार एसोसिएशन के तत्कालीन अध्यक्ष संदीप दुबे की ओर से याचिका दायर की गई थी। दोनों जनहित याचिका पर एकसाथ सुनवाई हो रही है। मामले की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने अगली सुनवाई के लिए दो सप्ताह बाद की तिथि तय कर दी है।


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