कौन हैं सिर पर मैला ढोने वाली ऊषा चोमर?….जिसे मिलेगा पद्मश्री अवार्ड…. इस तरह से बदल गयी थी ऊषा की जिंदगी… अब तक दर्जनों बार विदेश भी जा चुकी है

Update: 2020-01-26 09:11 GMT

नई दिल्ली 26 जनवरी 2020। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्मश्री अवार्ड पाने वालों के नाम में ऊषा चोमर का नाम भी शामिल है। ऊषा चोमर राजस्थान के अलवर जिले की रहने वाली हैं और मैला ढोने का काम करती थीं। ऊषा चोमर पद्मश्री अवार्ड मिलने की घोषणा से बेहद खुश हैं। अपनी पुरानी बातें याद करते हुए ऊषा बताती हैं कि उन्हें कैसे समाज में तिरस्कृत नजरों से देखा जाता था। लोगों के व्यवहार की वजह से कई बार वो यह काम छोड़ना चाहती थीं। लेकिन सुलभ शौचालय के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक से जुड़ने के बाद उनकी जिन्दगी बदलने लगी।

एक वक्त में मैला ढोने के काम से ऊब जाने वाली ऊषा बताती हैं कि इसी काम ने उन्हे समाज में नई पहचान दी है. आज लोग उसे इज्जत की नजरों से देखते हैं. वो महिलाओं के लिए उदाहरण बन गई हैं.ऊषा चोमर मुस्कुराते हुए कहती हैं कि इस काम की वजह से वो पांच देशों की यात्रा कर आईं, कई बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की है.

पहले जिस समाज में किसी को छू लेना भी उनके लिए अपराध था, आज वहीं के लोग उन्हें अपने घर पर बुलाते हैं. शादी सामारोह में उनका विशेष स्वागत करते हैं. आज वो मंदिरों में जाकर पूजा-पाठ भी कर पाती हैं.वहीं, निजी जिन्दगी के बारे में भी ऊषा ने बात की. उन्होंने बताया कि जिन्दगी पहले इतनी खुशहाल नहीं थी. मात्र 10 साल की उम्र में ऊषा की शादी हो गई. जब वो अपने ससुराल पहुंची तो वहां भी मैला ढोने के काम में लगा दिया गया. जैसे कि वो अपने मायके में भी करती थीं. हालांकि, मन के अंदर एक झिझक थी लेकिन कर ही क्या सकती थी.

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