छत्तीसगढ़ का वो राजा जिसने अपनी रियासत को 1अगस्त 47 को आज़ाद घोषित कर विलीनीकरण के ख़िलाफ़ आंदोलन चलवाया.. सात को राज्य से निकाला क्योंकि तिरंगा लहराया था..

Update: 2020-08-06 12:25 GMT

याज्ञवल्क्य मिश्र @NPG news

रायपुर,6 अगस्त 2020। इस बार क़िस्सा एक राजा का, वो राजा जिसकी प्रजा के बीच मौजुदगी सतत रही, वो राजा जिसने पहली बार स्कुलों में मध्यान्ह भोजन की व्यवस्था दी, जिसने खदानों में काम करने वाले मज़दूरों के लिए न्यूनतम मज़दूरी का नियम तय किया।लेकिन वही राजा जिसने 1 अगस्त 47 को रियासत को आज़ाद ख़ुदमुख़्तार घोषित कर दिया। वो राजा जिसने विलीनीकरण के ख़िलाफ़ आंदोलन चलवा दिया,वही राजा,जिसने तिरंगा लहराने पर सात को राज्य से निकाले जाने का आदेश दिया था, हालाँकि कुछ का दावा है कि इनमें से कुछ के लिए फाँसी पर भी विचार हुआ था। अपने राज्य में शिक्षा स्वास्थ्य समेत कई जनकल्याण कारी विषयों पर बेहद समर्पित रहा यह राजा जिसने विलीनीकरण के ख़िलाफ़ इस्टर्न स्टेट्स युनियन बनाई और उसमें उड़ीसा और मध्य प्रांत छत्तीसगढ़ की 37 रियासतें शामिल थी, का नेतृत्व किया और अपने तई हर मुमकिन कोशिश कर गुजरे कि, रियासतें स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रख सकें, लेकिन लौहपुरुष सरदार पटेल की अडिगता के आगे कुछ भी मुमकिन नहीं हुआ। और आखिरकार रियासतों का विलय हो गया। यह राजा अपने परिजनों के साथ अपना घर गाँव छोड़ गया, और फिर खुद कभी नहीं लौटा।
यह जिस राजा की बात हम कर रहे हैं वो राजा रामानुज प्रताप सिंह। राजा रामानुज प्रताप सिंह कोरिया स्टेट के राजा थे। राजा रामानुज प्रताप सिंह को जानने वालों ने जो किताबें लिखी हैं उसमें उनके जनता के प्रति किए कामों को विस्तार से ज़िक्र किया है और यह किताबें बताती हैं कि, अपनी रियासत में राजा रामानुज प्रताप सिंह ने शिक्षा स्वास्थ्य सिंचाई और श्रमिकों के लिए आसमान की बुलंदी छूने जैसा काम किया। आज सरकारें स्कूलों में मिड डे मिल चला रही हैं, लेकिन आज़ादी से बहुत पहले रियासत काल में राजा रामानुज प्रताप सिंह ने स्कूलों में मध्यान्ह भोजन शुरु कराया था। राजा रामानुज प्रताप सिंह ने कोरिया ज़िले की खदानों में श्रमिकों को न्यूनतम वेतन देने का नियम बनाया था जिसे ‘कोरिया एवार्ड’ के नाम से जाना गया। इन अभूतपूर्व कामों के बावजूद आज़ाद रहने और भारत संघ में शामिल ना होने की कोशिशों ने भी राजा रामानुज प्रताप सिंह को इतिहास में जगह दी है।


दिलचस्प यह भी है कि विलीनीकरण के दौर या कि अगस्त 47 के ठीक पहले से लेकर विलीनीकरण के बहुतेरे मसले या तो अभिलेखों में मौजुद नहीं है और यदि हैं तो बेहद संक्षिप्त रुप में हैं। हालाँकि सासंद रहे रतनलाल मालवीय की किताब में जरुर ब्यौरा मिलता है। रतनलाल मालवीय उड़ीसा समेत मध्यप्रांत विशेषकर छत्तीसगढ़ रियासतों के विलीनीकरण के साक्षी थे। ज़ाहिर है उनके पास बहुतेरी जानकारी थी, जिसका अंशों में उल्लेख उन्होने किया है।
विलीनीकरण को लेकर कोरिया राजा रामानुज प्रताप सिंह की गहरी असहमति थी और उन्होंने इसके लिए देसी रियासतों का एक संगठन बना लिया था, और वे खुद इसके अध्यक्ष थे।
रियासत की संप्रुभता को लेकर कोरिया राजा रामानुज प्रताप सिंह की दृढ़ता की बानगी उस घटना से मिलती है जबकि पंद्रह अगस्त सन् सैंतालिस को देश की आज़ादी हुई और पूरे देश में ख़ुशियाँ मनाई जा रही थीं।खुशी के अवसर पर छूट्टियों का ऐलान था। लेकिन कोरिया ज़िले की खदानों विशेषकर झगराखांड कॉलरी के चीफ आर अर्न ने खदानों में अवकाश नहीं दिया नतीजतन मज़दूर हड़ताल कर उत्सव में शामिल हो गए। खदान के चीफ़ आर अर्न ने सात कर्मचारियों राजबलि सिंह, रामनरेश सिंह,सुदर्शन, केसी मुखर्जी,राधिका प्रसाद, बालेश्वर सिंह और कल्लू सिंह को बर्खास्त कर दिया। इस मसले पर राजा रामानुज प्रताप सिंह ने कोई हस्तक्षेप नहीं किया बल्कि इसे राजद्रोह माना और राज्य से निकाले जाने की सजा दी।
इन सातों को नौकरी में बहाली तब ही मिली जबकि 15 सितंबर 1947 को रियासत का विलीनीकरण हो गया।
यह विलीनीकरण भी इतनी सहजता से नहीं हुआ था। रियासतों की आज़ादी को लेकर बेहद संकल्पित राजा रामानुज प्रताप सिंह की सक्रियता लौहपुरुष सरदार पटेल से छुपनी संभव नहीं थी। 13 दिसंबर 47 को सरदार पटेल ने उड़ीसा के राजाओं को कहा –

“यदि आप लोग अपनी रियासतों का विलीनीकरण नहीं करेंगे तो जब प्रजा आंदोलन कर के रियासत छिन लेगी और निकाल देगी तो फ़ौज और पुलिस मदद नहीं करेगी”
सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इस्टर्न स्टेट्स युनियन के अध्यक्ष राजा रामानुज प्रताप सिंह से कहा “हम आपको समय दे रहे हैं वर्ना आपकी सारी संपत्ति जप्त कर लेंगे”

 

सरदार वल्लभ भाई पटेल ने यदि यह कहा कि प्रजा विद्रोह करेगी और सत्ता सम्हालेगी तो इसके पीछे रियासतों में मौजुद वे कांग्रेस कमेटियाँ थी जिनकी एकमात्र निष्ठा संघीय भारत में थी और कांग्रेस देश की उस वक्त ऐसी इकलौती राजनैतिक शक्ति थी जो गाँव की अंतिम पंक्ति से लेकर देश की राजधानी तक शक्तिशाली और संगठित थी। ज़ाहिर है यह बात रियासतों के मालिक भी समझते थे।
रतनलाल मालवीय के संस्मरणों को दर्ज करती किताब में लिखा है –

“अपना भविष्य अंधकारमय देखकर स्टेटों के राजा लोगों ने विलीनीकरण की संधि पर अपने हस्ताक्षर कर दिए।हस्ताक्षर करने के बाद जिस तरह से राजा लोग बिलख बिलख कर रो रहे थे उसे देख सबका हृदय द्रवित हो गया”

बहरहाल 1 अगस्त 47 को कोरिया स्टेट को आज़ाद घोषित करने की यह क़वायद 15 दिसम्बर 47 को विलीनीकरण पर हस्ताक्षर करने के साथ समाप्त हो गई। विलीनीकरण के समय कोरिया स्टेट ने तब एक करोड़ की राशि सौंपी थी।
इसके ठीक बाद राजा रामानुज प्रताप सिंह बैंगलुरु के जया महल एक्सटेंशन स्थित रामदूर्ग पैलेस चले गए और फिर कभी नहीं लौटे। 6 अगस्त 1954 को इस राजा का देहावसान हो गया, याने विलीनीकरण के ठीक 6 साल 7 महिने और 22 दिन बाद।
रियासतों के विलीनीकरण को लेकर बहुत कुछ सच दर्ज नहीं किया गया, शायद सही किया गया या शायद सही नहीं किया गया। पर फिर भी बहुत कुछ मौजुद हैं जो विलीनीकरण के दौर को बहुत हद तक समझाता है, भले संकेतों में।
राजा रामानुज प्रताप सिंह विलक्षण राजा थे, बतौर राजा उन्होंने अपनी रियासत के लिए जो किया वो अद्भुत था। रियासत को आजाद रखने की उनकी क़वायदें जरुर उनकी चमकती छवि को धूसर करती हैं।
आज ही के दिन यह राजा 66 बरस पहले कई कहानियों को जो शायद नजीर बनतीं उन्हें सीने में दफ़्न लिए दुनिया से चला गया।

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