ACI के डाक्टरों का करिश्मा…ब्लॉक हुई धमनी का सफल इलाज शॉकवेव पद्धति से कर दिखाया, दिल्ली एम्स के बाद शॉकवेव से इलाज करने वाला रायपुर का एसीआई देश का दूसरा सरकारी अस्पताल बना, हेल्थ मिनिस्टर ने ट्वीट कर दी बधाई
0 एसीआई के विभागाध्यक्ष डॉ. स्मित श्रीवास्तव के नेतृत्व में इंट्रावैस्कुलर लिथोट्रिप्सी पद्धति से मरीज को मिला उपचार
0 डॉ. खूबचंद बघेल स्वास्थ्य सहायता योजनातंर्गत मरीज का हुआ निः शुल्क उपचार
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रायपुर, 5 मार्च 2020। एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट के डाक्टरों ने आज एक ऐसा करिश्मा कर दिखाया, जिसके बारे में सरकारी अस्पतालों में सोचा नहीं जा सकता। एडवांस इंस्ट्यिट के एडवांस डाक्टरों ने एडवांस तकनीक का प्रयोग करते हुए आज दिल के नसों में कैल्शियम जमा होने से ब्लॉक हो चुकी धमनी का सफल इलाज इंट्रा वैस्कुलर शॉकवेव लिथोट्रिप्सी पद्धति से कर दिखाया। सूबे के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने ट्वीट कर इस कामयाबी के लिए एसीआई के HOD डॉ0 स्मित श्रीवास्तव को बधाई दी है।
Many congratulations to Dr Smit Shrivastava and his team for performing the first case of Intra Coronary Shockwave Lithotripsy in Central India, second only to AIIMS Delhi.
Chhattisgarh is scaling new heights everyday in the field of healthcare. ? pic.twitter.com/mc8OGfhxPD
— TS Singh Deo (@TS_SinghDeo) March 5, 2020
डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय स्थित एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट में हुये इस प्रोसीजर में एक 62 वर्षीय बुजुर्ग महिला के दिल की नसों में जमे कैल्शियम को उच्च ध्वनि तरंगों (शॉकवेव) के जरिये तोड़ते हुए स्टेंटिंग कर सफलता पूर्वक इलाज किया गया।
हृदय रोग विशेषज्ञ एवं विभागाध्यक्ष एसीआई डॉ. स्मित श्रीवास्तव ने बताया कि मेडिकल कॉलेज के एसीआई में यह प्रोसीजर सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। अभी तक देश के शासकीय अस्पताल का यह दूसरा प्रोसीजर है। इसका पहला प्रोसीजर एम्स नई दिल्ली में हुआ है। यह विदर्भ और छत्तीसगढ़ क्षेत्र का सबसे पहला इंट्रावैस्कुलर शॉकवेव थेरेपी या इंट्रावैस्कुलर लिथोट्रिप्सी का केस है। इस विधि में वैसे पेशेंट जिनकी हार्ट की नस में बहुत ज्यादा कैल्शियम जमा हुआ होता है उनके लिये यह वरदान के रूप में आई पद्धति है। पहले नसों में जमे हुए कैल्शियम को हटाने के लिये बायपास सर्जरी की जरूरत पड़ती थी। यह पद्धति अभी तक मेट्रो शहरों तक ही सीमित थी और काफी महंगा होने के कारण आम लोगों की पहुंच से बाहर थी। मरीज का इलाज राज्य में डॉ. खूबचंद बघेल स्वास्थ्य सहायता योजनांतर्गत हुआ है। इलाज की इस पद्धति को मेडिकल कॉलेज रायपुर के लिये रिजर्व रखा गया है। इस मरीज को 62 की उम्र में बायपास की जरूरत पड़ती लेकिन हमारी टीम ने इस पद्धति से उसकी नस में जमे कैल्शियम को घोलकर एक बलून के द्वारा शॉक देकर निकालते हुए नई जिंदगी दी।
इस प्रकार किया जाता है प्रोसीजर
डॉ. स्मित श्रीवास्तव बताते हैं कि इस पद्धति में सबसे पहले एक बलून डाला जाता है और वह बलून हार्ट की नस जहां पर कैल्शियम होता है वहां पर स्थित करने के बाद उसके माध्यम से 40 से 80 शॉक वेव दी जाती है। जो कि उस कैल्शियम को चूर-चूर करके उसको हटा देते हैं जिसके बाद एंजियोप्लास्टी और स्टेंटिंग करना आसान हो जाता है। लिथोट्रिप्सी पद्धति से सबसे पहले कैल्शियम को हटाकर एंजियोप्लास्टी की जाती है इसलिए इसे लिथोप्लास्टी भी कहा जाता है। कैल्शियम के टुकड़ों को हटाने के लिए बेहद कम दबाव का प्रयोग किया जाता है जिससे रक्त वाहिका को किसी प्रकार की चोट की आशंका नहीं रहती। कैल्शियम आसानी से टूट जाता है। मरीज को अधिक दर्द नहीं होता और नॉर्मल टिश्यू और धमनी को नुकसान नहीं होता।
टीम में ये रहे शामिल
विभागाध्यक्ष डॉ. स्मित श्रीवास्तव के साथ डॉ. जोगेश विश्वदासानी, कैथलैब टेक्नीशियन आई. पी. वर्मा, राम खिलावन, खेम सिंह, आनंद बाबू, गोमती (नर्सिंग स्टॉफ), खोंगेद्र साहू और डेविड।