Sawan 2024 : 72 वर्षों बाद पड़ रहा विशेष "श्रावण मास", 22 को चतुर्योग मे हो रहा प्रारम्भ... शिव पूजन के साथ करें विशेष उपाय

Sawan 2024 : श्रावण मास मे शिव पूजा करने से समस्त रोगो,विकारो एवँ क्लेशो का नाश होता है | श्रावण मास का यह नाम श्रवण नक्षत्र से इस समाप्ति होने के कारण पडा है जल तत्व से युक्त यह मास चंद्र प्रधान है और चुकि शिव जी अपने मस्तक पर चंद्र को धारण करते है इसलिये यह मास शिव को समर्पित है |

Update: 2024-07-18 07:51 GMT

सोमवार 22 तारीख से श्रावण मास प्रारम्भ हो रहा है चंद्र प्रधान इस मास मे शिव जी की पूजा को महत्वपूर्ण और प्रभावकरी माना जाता है. जल तत्व प्रधान चंद्रमा जहाँ एक ओर वातावरण मे नमी लेकर आता है और खेत लहलहा उठते है वही दूसरी ओर मनुष्य को भी प्रभावित करता है इसीलिये तिरछे चंद्र को अपने मस्तक पर धारण करके उसकी शोभा बढाने वाले भगवान अशुतोष की पूजा अत्यंत महत्वपूर्ण है |

ज्योतिषाचार्य डॉ. दत्तात्रेय होस्केरे के अनुसार शिव सत्य है, समर्पण है, त्याग है, और परिभाषित होने से परे है | शास्त्रो मे कहा गया है कि "आत्मा त्वम गिरिजा मति: सहचरा: प्राणा: शरीरम गृहम" अर्थात जिस तरह सत्य और शक्ति एक दूसरे के बगैर अधुरे है, जिस तरह आत्मा और मन के बगैर शरीर जागृत नही हो सकता, उसी तरह शिव और पार्वती की एक दूसरे के बगैर कल्पना नही की जा सकती| श्रावण मास एक ऐसा अवसर है जब मनुष्य अपने मे अंतर्निहित सत्य स्वरूप शिव और उर्जा के रूप मे विध्यमान शक्ति को एकाकार कर सकता है |

श्रावण मास मे शिव पूजा करने से समस्त रोगो,विकारो एवँ क्लेशो का नाश होता है | श्रावण मास का यह नाम श्रवण नक्षत्र से इस समाप्ति होने के कारण पडा है जल तत्व से युक्त यह मास चंद्र प्रधान है और चुकि शिव जी अपने मस्तक पर चंद्र को धारण करते है इसलिये यह मास शिव को समर्पित है |

कर्क संक्रांति है अत्यंत महत्वपूर्ण

16 जुलाई को सूर्य कर्क राशी मे प्रवेश कर चुका है| श्रावण मास की कर्क संक्रान्ति की महत्ता प्रतिपादित करते हुए शिवपुराण की विद्येश्वर संहिता में लिखा है कि श्रावण मास को कर्क राशी में सूर्य के रहते भगवान शिव के पूजन के साथ अम्बिका का पूजन करें। वे सम्पूर्ण मनोवांछित भोगों और फलों को देने वाली हैं। सम्पन्नता स्वास्थ्य और प्रगति की इच्छा रखने वाले सभी लोगो को उस दिन अवश्य उनकी पूजा करनी चाहिए।

72 वर्षों बाद पड़ रहा विशेष श्रावण मास

यह श्रावण मास सोमवार को चन्द्र प्रधान श्रवण नक्षत्र से प्रारम्भ हो रहा है और सोमवार को चन्द्र प्रधान श्रवण नक्षत्र मे ही समाप्त हो रहा है| यह श्रावण मास प्रितियोग,सिद्धि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और आयुष्मान योग जैसे चतुर्योग मे प्रारम्भ हो रहा है| इस वर्ष श्रावण मास मे प्रीति योग,आयुष्मान योग और सर्वार्थ सिद्धि योग पड़ रहे हैं| मनुष्य को भाग्यशाली बनाने वाले शुक्रादित्य, बुधादित्य, नवं पंचम, गज केसरी, कुबेर और शश जैसे राजयोग बन रहे है| यह योग 72 वर्षों बाद पड़ रहा है |श्रावण मास में जितने भी सोमवार पड़ते हैं, उन सबमें शिवजी का व्रत किया जाता है।इस वर्ष 5 श्रावण सोमवार पड़ रहे हैं| इन पाँचों सोमवार यदि प्रत्यक्ष विधान के अनुसार पूजा की जाये तो रोगो और पारिवारिक क्लेश का नाश होता है|



काल सर्प दोष से मिलेगी मुक्ति

उपाय यदि आप की कुंडली में काल सर्प दोष के लक्षण हैं तो इस छोटी सी क्रिया को श्रावण मास मे सोमवार के दिन प्रात:,मध्यान्ह और सायंकाल करें, और इस क्रिया को प्रत्येक सोमवार को करें। भगवान शंकर की पांच मंत्रों से पंचोपचार विधि पूर्वक सफेद चंदन, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य चढाते हुए पूजा करता है, वह काल सर्प दोष से मुक्त हो जाता है हो जाता है। ये मंत्र हैं:

ॐसद्योजाताय नम:।ॐवामदेवाय नम: ।ॐअघोराय नम: ।ॐईशानाय नम: ।ॐतत्पुरुषाय नम:।

शिव पूजन से शनिदेव भी होते हैं प्रसन्न



संस्कृत शब्द शनि का अर्थ जीवन या जल और अशनि का अर्थ आसमानी बिजली या आग है। शनि की पूजा के वैदिक मन्त्र में वास्तव में गैस, द्रव और ठोस रूप में जल की तीनों अवस्थाओं की अनुकूलता की ही प्रार्थना है। खुद मूल रूप में जल होने से शनि का मानवीकरण पुराणों में शिवपुत्र या शिवदास के रूप में किया गया है। इसीलिए कहा जाता है कि शिव और शनि दोनों ही प्रसन्न हों तो जीवन एकदम सुखमय हो जाता है। शनि की प्रसन्नता के लिए यह उपाय करें: दूध मे काली तिल मिला कर शिव जी का अभिषेक श्रावण मास मे सोमवार और शनिवार को करें|


श्रावण मास में करें वास्तु शान्ति

शिवपुराण में लिखा है कि देवाधिदेव महादेव की जिन अष्ट मूर्तियों से यह अखिल ब्रह्माण्ड व्याप्त है, उन्हीं से सम्पूर्ण विश्व की सत्ता संचालित हो रही है। भगवान शिव की इन अष्ट मूर्तियों को इन आठ मन्त्रों से पुष्पांजलि दें। आपके घर के समस्त वास्तु दोषों का शमन होगा। अपने घर के पूर्व क्षेत्र से प्रारम्भ कर सभी आठ दिशाओं में मंत्र का उच्चारण करते हुए पुष्प और जल अप्रित करें:

1.ऊँ शर्वाय क्षिति मू‌र्त्तये नम:। 2. ऊँ भवाय जलमू‌र्त्तये नम:। 3. ऊँ रुद्राय अग्नि मू‌र्त्तये नम:। 4. ऊँ उग्राय वायु मू‌र्त्तये नम:। 5. ऊँ भीमाय आकाश मू‌र्त्तये नम:। 6. ऊँ पशुपतये

यजमान मू‌र्त्तये नम:। 7. ऊँ महादेवाय सोममू‌र्त्तये नम:। 8. ऊँ ईशानाय सूर्य मू‌र्त्तये नम:।


Tags:    

Similar News