Parivartini Ekadashi Ka Mahatava: क्या कहती है परिवर्तिनी एकादशी की कथा, कब करें, जानिए इसका महत्व और शुभ समय

Parivartini Ekadashi Ka Mahatava : भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करना लाभकारी माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन पूजा पाठ और व्रत करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।

Update: 2023-09-22 12:12 GMT

Parivartini Ekadashi Ka Mahatava:  भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को परिवर्तनी एकादशी के नाम से जाना जाता है साथ ही इसे जलझूलनी एकादशी भी कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करना लाभकारी माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन पूजा पाठ और व्रत करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। इस साल परिवर्तनी एकादशी का व्रत 25 सितंबर को किया जाएगा। तो आज हम आपको एकादशी व्रत पूजन का शुभ मुहूर्त बता रहे हैं।

परिवर्तिनी एकादशी का महत्व और मुहूर्त

परिवर्तिनी एकादशी व्रत गणेश उत्सव की अवधि में रखा जाता है। ऐसे में इस दौरान व्यक्ति को भगवान विष्णु और भगवान गणेश की उपासना का सौभाग्य प्राप्त होता है। मान्यता है कि परिवर्तिनी एकादशी के दिन उपवास रखने से स्वर्ण दान और वाजपेय यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है। इस विशेष दिन को जलझूलनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। साथ ही इस दिन वामन देव की पूजा भी की जाती है, जिससे साधक को भय, रोग, दोष इत्यादि से मुक्ति मिल जाती है।

 भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 25 सितंबर की सुबह 4.36 मिनट से आरंभ हो रही है और 26 सितंबर की सुबह 5. 12 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। ऐसे में परिवर्तनी एकादशी का व्रत पूजन 25 सितंबर को करना श्रेष्ठ रहेगा।

भगवान विष्णु पूरे चार माह के लिए योगनिद्रा में लीन हैं और भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन श्री हरि क्षीर सागर में करवट लेते हैं जिसे परिवर्तनी एकादशी के नाम से जाना जाता है इस दिन भगवान के वामन अवतार की पूजा अर्चना करने से सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है और कष्टों में कमी आती है।

परिवर्तिनी एकादशी की कथा

युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! भाद्रपद शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? इसकी विधि तथा इसका माहात्म्य कृपा करके कहिए। तब भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि इस पुण्य, स्वर्ग और मोक्ष को देने वाली तथा सब पापों का नाश करने वाली, उत्तम वामन एकादशी का माहात्म्य मैं तुमसे कहता हूं तुम ध्यानपूर्वक सुनो।

यह पद्मा/परिवर्तिनी एकादशी जयंती एकादशी भी कहलाती है। इसका यज्ञ करने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। पापियों के पाप नाश करने के लिए इससे बढ़कर कोई उपाय नहीं। जो मनुष्य इस एकादशी के दिन मेरी (वामन रूप की) पूजा करता है, उससे तीनों लोक पूज्य होते हैं। अत: मोक्ष की इच्छा करने वाले मनुष्य इस व्रत को अवश्य करें।

जो कमलनयन भगवान का कमल से पूजन करते हैं, वे अवश्य भगवान के समीप जाते हैं। जिसने भाद्रपद शुक्ल एकादशी को व्रत और पूजन किया, उसने ब्रह्मा, विष्णु सहित तीनों लोकों का पूजन किया। अत: हरिवासर अर्थात एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। इस दिन भगवान करवट लेते हैं, इसलिए इसको परिवर्तिनी एकादशी भी कहते हैं।

भगवान के वचन सुनकर युधिष्ठिर बोले कि भगवान! मुझे अतिसंदेह हो रहा है कि आप किस प्रकार सोते और करवट लेते हैं तथा किस तरह राजा बलि को बांधा और वामन रूप रखकर क्या-क्या लीलाएं कीं? चातुर्मास के व्रत की क्या ‍विधि है तथा आपके शयन करने पर मनुष्य का क्या कर्तव्य है। 

श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजन! अब आप सब पापों को नष्ट करने वाली कथा का श्रवण करें। त्रेतायुग में बलि नामक एक दैत्य था। वह मेरा परम भक्त था। विविध प्रकार के वेद सूक्तों से मेरा पूजन किया करता था और नित्य ही ब्राह्मणों का पूजन तथा यज्ञ के आयोजन करता था, लेकिन इंद्र से द्वेष के कारण उसने इंद्रलोक तथा सभी देवताओं को जीत लिया।

इस कारण सभी देवता एकत्र होकर सोच-विचारकर भगवान के पास गए। बृहस्पति सहित इंद्रादिक देवता प्रभु के निकट जाकर और नतमस्तक होकर वेद मंत्रों द्वारा भगवान का पूजन और स्तुति करने लगे। अत: मैंने वामन रूप धारण करके पांचवां अवतार लिया और फिर अत्यंत तेजस्वी रूप से राजा बलि को जीत लिया।

इतनी वार्ता सुनकर राजा युधिष्ठिर बोले कि हे जनार्दन! आपने वामन रूप धारण करके उस महाबली दैत्य को किस प्रकार जीता?

श्रीकृष्ण कहने लगे- मैंने (वामन रूपधारी ब्रह्मचारी) बलि से तीन पग भूमि की याचना करते हुए कहा- ये मुझको तीन लोक के समान है और हे राजन यह तुमको अवश्य ही देनी होगी।

राजा बलि ने इसे तुच्छ याचना समझकर तीन पग भूमि का संकल्प मुझको दे दिया और मैंने अपने त्रिविक्रम रूप को बढ़ाकर यहां तक कि भूलोक में पद, भुवर्लोक में जंघा, स्वर्गलोक में कमर, मह:लोक में पेट, जनलोक में हृदय, यमलोक में कंठ की स्थापना कर सत्यलोक में मुख, उसके ऊपर मस्तक स्थापित किया।

सूर्य, चंद्रमा आदि सब ग्रह गण, योग, नक्षत्र, इंद्रादिक देवता और शेष आदि सब नागगणों ने विविध प्रकार से वेद सूक्तों से प्रार्थना की। तब मैंने राजा बलि का हाथ पकड़कर कहा कि हे राजन! एक पद से पृथ्वी, दूसरे से स्वर्गलोक पूर्ण हो गए। अब तीसरा पग कहां रखूं?

तब बलि ने अपना सिर झुका लिया और मैंने अपना पैर उसके मस्तक पर रख दिया जिससे मेरा वह भक्त पाताल को चला गया। फिर उसकी विनती और नम्रता को देखकर मैंने कहा कि हे बलि! मैं सदैव तुम्हारे निकट ही रहूंगा। विरोचन पुत्र बलि से कहने पर भाद्रपद शुक्ल एकादशी के दिन बलि के आश्रम पर मेरी मूर्ति स्थापित हुई।

इसी प्रकार दूसरी क्षीरसागर में शेषनाग के पष्ठ पर हुई! हे राजन! इस एकादशी को भगवान शयन करते हुए करवट लेते हैं, इसलिए तीनों लोकों के स्वामी भगवान विष्णु का उस दिन पूजन करना चाहिए। इस दिन तांबा, चांदी, चावल और दही का दान करना उचित है। रात्रि को जागरण अवश्य करना चाहिए।

जो विधिपूर्वक इस एकादशी का व्रत करते हैं, वे सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाकर चंद्रमा के समान प्रकाशित होते हैं और यश पाते हैं। जो पापनाशक इस कथा को पढ़ते या सुनते हैं, उनको हजार अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। 

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