Narayan Kavach: क्या है नारायण कवच? जानिए सौभाग्य, सुरक्षा और सफलता का मंत्र
Narayan Kavach: सनातन धर्म में तिथि, मंत्रों, स्तोत्रों और कवचों का अत्यधिक महत्व है. हर तिथि और समय का पालन करते हुए अगर इनका सही तरीके से पाठ किया जाए तो व्यक्ति को विशेष फल प्राप्त होते हैं. ऐसा ही एक प्रभावशाली कवच है नारायण कवच(Narayan Kavach) , यह विशेष रूप से भगवान विष्णु का कवच है, जो भक्तों को सुरक्षा, सौभाग्य और समृद्धि प्रदान करने के लिए माना जाता है.

Narayan Kavach: सनातन धर्म में तिथि, मंत्रों, स्तोत्रों और कवचों का अत्यधिक महत्व है. हर तिथि और समय का पालन करते हुए अगर इनका सही तरीके से पाठ किया जाए तो व्यक्ति को विशेष फल प्राप्त होते हैं. ऐसा ही एक प्रभावशाली कवच है नारायण कवच(Narayan Kavach) , यह विशेष रूप से भगवान विष्णु का कवच है, जो भक्तों को सुरक्षा, सौभाग्य और समृद्धि प्रदान करने के लिए माना जाता है, नारायण कवच(Narayan Kavach) को ब्रह्मास्त्र के बराबर माना जाता है और इसका पाठ करने से जीवन में आ रही कई परेशानियों का समाधान हो सकता है.
नारायण कवच का महत्व
नारायण कवच(Narayan Kavach) एक दिव्य संरक्षात्मक कवच है, जो भगवान विष्णु की कृपा से प्रकट हुआ है. यह कवच मानसिक और शारीरिक दोनों तरह की परेशानियों से बचाता है और जीवन में समृद्धि, सुख और समृद्धि को बढ़ाता है. इस कवच का पाठ करने से व्यक्ति को न केवल दुनिया के कष्टों से छुटकारा मिलता है, बल्कि उसे अपने जीवन के हर पहलू में सफलता भी मिलती है। इसके अलावा, यह कवच व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति में भी सहायक होता है. नारायण कवच(Narayan Kavach) के नियमित पाठ से न केवल जीवन में शांति और सुख की वृद्धि होती है, बल्कि व्यक्ति को सभी भय, संकट और समस्याओं से भी मुक्ति मिलती है.
नारायण कवच का पाठ: सही समय और दिन
ज्योतिष शास्त्र और पुराणों के अनुसार, नारायण कवच(Narayan Kavach) का पाठ यदि सही समय पर किया जाए तो इसका प्रभाव अधिक शक्तिशाली और प्रभावशाली होता है. विशेषकर गुरुवार का दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है, और यह दिन नारायण कवच के पाठ के लिए अत्यधिक शुभ माना जाता है.
नारायण कवच और गुरुवार का दिन
गुरुवार को भगवान विष्णु और लक्ष्मी माता की पूजा का महत्व है. यह दिन विशेष रूप से धार्मिक अनुष्ठानों और यज्ञों के लिए श्रेष्ठ माना जाता है. अगर आप नारायण कवच(Narayan Kavach) का पाठ करते हैं, तो गुरुवार का दिन सर्वोत्तम माना जाता है. इस दिन नारायण कवच(Narayan Kavach) का पाठ करने से जीवन की कठिनाइयाँ दूर होती हैं और मानसिक शांति प्राप्त होती है. साथ ही, इस दिन के पाठ से व्यक्ति को व्यावसायिक, पारिवारिक और व्यक्तिगत जीवन में सफलता और समृद्धि मिलती है.
नारायण कवच के लाभ(Narayan Kavach ke labh)
1. सुरक्षा और संरक्षण: नारायण कवच एक सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करता है, जो व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक संकटों से बचाता है. यह कवच व्यक्ति को शत्रुओं, बीमारियों और सभी प्रकार के दुखों से सुरक्षित रखता है.
2. सौभाग्य और समृद्धि: यह कवच व्यक्ति के जीवन में सौभाग्य और समृद्धि लाने में सहायक होता है. नियमित रूप से इसका पाठ करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है और आर्थिक स्थिति मजबूत होती है.
3. मनोवांछित फल: नारायण कवच का पाठ करने से व्यक्ति को अपने सभी प्रयासों में सफलता मिलती है. चाहे वह व्यवसाय हो, शिक्षा हो या कोई अन्य कार्य, हर क्षेत्र में सफलता मिलती है.
4. व्यक्तिगत समस्याओं का समाधान: अगर आपको लगता है कि आपकी जिंदगी में कोई भी दरवाजा खुल नहीं रहा है या सभी रास्ते बंद हो गए हैं, तो नारायण कवच का पाठ करने से उन समस्याओं का समाधान मिलता है.
5. आध्यात्मिक उन्नति: यह कवच व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति में भी मदद करता है. नियमित रूप से इस कवच का पाठ करने से व्यक्ति का मन शांत और संतुलित रहता है, जिससे वह भगवान की भक्ति में अधिक रमता है.
6. भय और चिंता से मुक्ति: यह कवच व्यक्ति को सभी प्रकार के भय और मानसिक चिंताओं से मुक्ति दिलाता है. इसके प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मकता का प्रवेश होता है.
नारायण कवच का पाठ करने की विधि(Narayan Kavach Path karne ki vidhi)
1. तिथि और समय का चयन: सबसे पहले, यह सुनिश्चित करें कि आप नारायण कवच का पाठ गुरुवार को करें. यह दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु से जुड़ा हुआ है और इस दिन इस कवच का पाठ अत्यधिक प्रभावशाली होता है.
2. स्वच्छता और पूजा: पाठ शुरू करने से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें और पूजा स्थान को स्वच्छ करें. भगवान विष्णु की तस्वीर या मूर्ति को स्थापित करें और उनके समक्ष दीपक और अगरबत्तियाँ जलाएं.
3. पूजा सामग्री: नारायण कवच के पाठ के दौरान भगवान विष्णु को शंख, चक्र, माला, तुलसी के पत्ते, और नाना प्रकार के फूल अर्पित करें.
4. ध्यान और समर्पण: नारायण कवच का पाठ करते समय पूरे मनोयोग से ध्यान केंद्रित करें और भगवान विष्णु से प्रार्थना करें कि वे आपके जीवन के सभी कष्टों को दूर करें और आपको सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करें.
5. नियमितता: यदि आप नारायण कवच का पाठ नियमित रूप से करते हैं, तो इसके लाभ अधिक प्रभावी होते हैं. खासकर गुरुवार को इस पाठ का अधिक महत्व है.
नारायण कवच पाठ करने के नियम(Narayan Kavach path karne ke niyam)
नारायण कवचम का जाप करने के लिए साधक को कुछ नियमों का पालन करना चाहिए. सबसे पहले, साधक को उत्तर दिशा की ओर मुख करके भगवान के पवित्र नामों का जप करना चाहिए, ताकि उसकी वाणी शुद्ध हो सके. इसके बाद, मौन व्रत धारण करते हुए साधक को नारायण का ध्यान करना चाहिए और फिर प्रणव मंत्र (ॐ) का उच्चारण करते हुए शरीर के आठ महत्वपूर्ण अंगों को स्पर्श करना चाहिए, ताकि पूरे शरीर में ऊर्जा का संचार हो और मन की एकाग्रता बढ़े. इस विधि से नारायण कवचम का जाप करने से व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक शांति, सुरक्षा और समृद्धि प्राप्त होती है.
नारायण कवच मंत्र संस्कृत में
ॐ हरिर्विदध्यान्मम सर्वरक्षां न्यस्ताङ्घ्रिपद्मः पतगेन्द्रपृष्ठे।
दरारिचर्मासिगदेषुचापाशान् दधानोsष्टगुणोsष्टबाहुः।।
जलेषु मां रक्षतु मत्स्यमूर्तिर्यादोगणेभ्यो वरूणस्य पाशात्।
स्थलेषु मायावटुवामनोsव्यात् त्रिविक्रमः खेऽवतु विश्वरूपः।।
दुर्गेष्वटव्याजिमुखादिषु प्रभुः पायान्नृसिंहोऽसुरयुथपारिः।
विमुञ्चतो यस्य महाट्टहासं दिशो विनेदुर्न्यपतंश्च गर्भाः।।
रक्षत्वसौ माध्वनि यज्ञकल्पः स्वदंष्ट्रयोन्नीतधरो वराहः।
रामोऽद्रिकूटेष्वथ विप्रवासे सलक्ष्मणोsव्याद् भरताग्रजोsस्मान्।।
मामुग्रधर्मादखिलात् प्रमादान्नारायणः पातु नरश्च हासात्।
दत्तस्त्वयोगादथ योगनाथः पायाद् गुणेशः कपिलः कर्मबन्धात्।।
सनत्कुमारो वतु कामदेवाद्धयशीर्षा मां पथि देवहेलनात्।
देवर्षिवर्यः पुरूषार्चनान्तरात् कूर्मो हरिर्मां निरयादशेषात्।।
धन्वन्तरिर्भगवान् पात्वपथ्याद् द्वन्द्वाद् भयादृषभो निर्जितात्मा।
यज्ञश्च लोकादवताज्जनान्ताद् बलो गणात् क्रोधवशादहीन्द्रः।।
द्वैपायनो भगवानप्रबोधाद् बुद्धस्तु पाखण्डगणात् प्रमादात्।
कल्किः कले कालमलात् प्रपातु धर्मावनायोरूकृतावतारः।।
मां केशवो गदया प्रातरव्याद् गोविन्द आसङ्गवमात्तवेणुः।
नारायण प्राह्ण उदात्तशक्तिर्मध्यन्दिने विष्णुररीन्द्रपाणिः।।
देवोsपराह्णे मधुहोग्रधन्वा सायं त्रिधामावतु माधवो माम्।
दोषे हृषीकेश उतार्धरात्रे निशीथ एकोsवतु पद्मनाभः।।
श्रीवत्सधामापररात्र ईशः प्रत्यूष ईशोऽसिधरो जनार्दनः।
दामोदरोऽव्यादनुसन्ध्यं प्रभाते विश्वेश्वरो भगवान् कालमूर्तिः।।
चक्रं युगान्तानलतिग्मनेमि भ्रमत् समन्ताद् भगवत्प्रयुक्तम्।
दन्दग्धि दन्दग्ध्यरिसैन्यमासु कक्षं यथा वातसखो हुताशः।।
गदेऽशनिस्पर्शनविस्फुलिङ्गे निष्पिण्ढि निष्पिण्ढ्यजितप्रियासि।
कूष्माण्डवैनायकयक्षरक्षोभूतग्रहांश्चूर्णय चूर्णयारीन्।।
त्वं यातुधानप्रमथप्रेतमातृपिशाचविप्रग्रहघोरदृष्टीन्।
दरेन्द्र विद्रावय कृष्णपूरितो भीमस्वनोऽरेर्हृदयानि कम्पयन्।।
त्वं तिग्मधारासिवरारिसैन्यमीशप्रयुक्तो मम छिन्धि छिन्धि।
चर्मञ्छतचन्द्र छादय द्विषामघोनां हर पापचक्षुषाम्।।
यन्नो भयं ग्रहेभ्यो भूत् केतुभ्यो नृभ्य एव च।
सरीसृपेभ्यो दंष्ट्रिभ्यो भूतेभ्योंऽहोभ्य एव वा।।
सर्वाण्येतानि भगन्नामरूपास्त्रकीर्तनात्।
प्रयान्तु संक्षयं सद्यो ये नः श्रेयः प्रतीपकाः।।
गरूड़ो भगवान् स्तोत्रस्तोभश्छन्दोमयः प्रभुः।
रक्षत्वशेषकृच्छ्रेभ्यो विष्वक्सेनः स्वनामभिः।।
सर्वापद्भ्यो हरेर्नामरूपयानायुधानि नः।
बुद्धिन्द्रियमनः प्राणान् पान्तु पार्षदभूषणाः।।
यथा हि भगवानेव वस्तुतः सद्सच्च यत्।
सत्यनानेन नः सर्वे यान्तु नाशमुपाद्रवाः।।
यथैकात्म्यानुभावानां विकल्परहितः स्वयम्।
भूषणायुद्धलिङ्गाख्या धत्ते शक्तीः स्वमायया।।
तेनैव सत्यमानेन सर्वज्ञो भगवान् हरिः।
पातु सर्वैः स्वरूपैर्नः सदा सर्वत्र सर्वगः।।
विदिक्षु दिक्षूर्ध्वमधः समन्तादन्तर्बहिर्भगवान् नारसिंहः।
प्रहापयँल्लोकभयं स्वनेन ग्रस्तसमस्ततेजाः।।