Krishna Janmabhoomi Verdict: श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद पर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला! शाही ईदगाह को 'विवादित ढांचा' मानने से किया इनकार, जानिए पूरा फैसला
Krishna Janmbhoomi Verdict: मथुरा की ज़मीन एक फिर से सुर्खियों में है। श्रीकृष्ण जन्मस्थान और शाही ईदगाह मस्जिद के बीच दशकों पुराने विवाद में एक नई हलचल तब पैदा हुई, जब हिंदू पक्ष ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से आग्रह किया कि वह शाही ईदगाह को ‘विवादित ढांचे’ के तौर पर घोषित करे, ठीक वैसे ही जैसे अयोध्या में बाबरी मस्जिद को एक समय में समझा गया था।
Krishna Janmbhoomi Verdict: मथुरा की ज़मीन एक फिर से सुर्खियों में है। श्रीकृष्ण जन्मस्थान और शाही ईदगाह मस्जिद के बीच दशकों पुराने विवाद में एक नई हलचल तब पैदा हुई, जब हिंदू पक्ष ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से आग्रह किया कि वह शाही ईदगाह को ‘विवादित ढांचे’ के तौर पर घोषित करे, ठीक वैसे ही जैसे अयोध्या में बाबरी मस्जिद को एक समय में समझा गया था।
लेकिन शुक्रवार 5 जुलाई 2025 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वह दरवाज़ा बंद कर दिया, जिसकी उम्मीद हिंदू पक्ष कर रहा था। न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्र की एकल पीठ ने वह याचिका खारिज कर दी, जिसमें शाही ईदगाह को विवादित ढांचा घोषित करने की मांग की गई थी।
याचिका में क्या मांग रखी गई थी?
यह याचिका श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति न्यास के अध्यक्ष महेंद्र प्रताप सिंह की ओर से दाखिल की गई थी। याचिकाकर्ता का दावा था कि मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद भगवान श्रीकृष्ण के जन्म स्थान पर स्थित है, और यह उस प्राचीन मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी, जिसे मुगल शासक औरंगज़ेब ने गिरवाया था।
उनका कहना था कि यह मस्जिद एक 'विवादित ढांचा' है और इसे लेकर वैसी ही कानूनी प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए, जैसी अयोध्या में अपनाई गई थी। उन्होंने 1991 के ‘प्लेसेज़ ऑफ वर्शिप एक्ट’ को चुनौती देते हुए इसे धर्मनिरपेक्षता के विरुद्ध करार दिया।
मुस्लिम पक्ष की प्रतिक्रिया और कोर्ट की सुनवाई
मुस्लिम पक्ष ने इस याचिका का जबरदस्त विरोध किया। उन्होंने अदालत में कहा कि यह मामला सिर्फ एक भावनात्मक मुद्दा नहीं बल्कि इतिहास, समझौतों और कानून पर आधारित होना चाहिए। उनका तर्क था कि 1949 में हुए समझौते के तहत शाही ईदगाह मस्जिद और जन्मभूमि ट्रस्ट के बीच एक सहमति बनी थी, जिसे चुनौती देना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुना और 4 जुलाई को फैसला सुरक्षित रखने के बाद शुक्रवार को अपना आदेश सुनाया।
कोर्ट ने क्या कहा?
न्यायमूर्ति मिश्र ने अपने फैसले में कहा- “याचिका में कोई ऐसा ठोस कानूनी आधार या नया प्रमाण नहीं प्रस्तुत किया गया है, जिससे यह कहा जा सके कि शाही ईदगाह एक 'विवादित ढांचा' है। इस प्रकार की मांग मौजूदा कानून के दायरे में नहीं आती।” कोर्ट ने यह भी कहा कि पूर्व में लंबित मुकदमों और समझौतों को ध्यान में रखते हुए इस तरह की याचिका, न्यायिक व्यवस्था में अनावश्यक भ्रम और विवाद पैदा कर सकती है।
अब आगे क्या? क्या सुप्रीम कोर्ट जाएगा हिंदू पक्ष?
हालांकि हाईकोर्ट का यह फैसला स्पष्ट और निर्णायक है, लेकिन हिंदू पक्ष ने संकेत दिया है कि वे सुप्रीम कोर्ट का रुख करेंगे। उनके वकीलों का कहना है कि यह सिर्फ धार्मिक नहीं बल्कि सांस्कृतिक अधिकारों से जुड़ा मामला है, और न्याय की अंतिम उम्मीद अब देश की सबसे ऊंची अदालत से है।
वहीं मुस्लिम पक्ष ने हाईकोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। उनका कहना है कि इस फैसले से शांति और सौहार्द की दिशा में एक महत्वपूर्ण संदेश गया है।
क्या है पूरा मामला
यह मामला भारत के तीन सबसे संवेदनशील धार्मिक विवादों में से एक माना जाता है अयोध्या, काशी और मथुरा। अयोध्या में जहां सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ चुका है, वहीं वाराणसी (ज्ञानवापी) और मथुरा मामले में कई याचिकाएं अब भी इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित हैं।
- 1 अगस्त 2024 को हाईकोर्ट ने सभी याचिकाओं को एक साथ सुनने का आदेश दिया था।
- 5 मार्च 2025 को केंद्र सरकार और ASI को पक्षकार बनाए जाने की अनुमति दी गई थी।
- 28 अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने उस आदेश को उचित ठहराया था।
NPG Bonus
इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले ने स्पष्ट कर दिया है कि आस्था और कानून के बीच एक संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। शाही ईदगाह को ‘विवादित ढांचा’ घोषित करने की मांग को कानूनी और ऐतिहासिक दृष्टि से कमजोर मानते हुए खारिज करना इस बात का संकेत है कि अदालतें तथ्यों के आधार पर निर्णय देंगी, न कि भावनात्मक जनाक्रोश पर। बहरहाल, यह मामला यहीं खत्म नहीं हुआ है। कानूनी लड़ाई अब सुप्रीम कोर्ट के दरवाज़े पर दस्तक देने वाली है।