Bombay High Court: 6 साल की क़ानूनी जंग के बाद सास-ससुर की जीत, बहू को बंगले से किया बेदखल, 7 साल का किराया चुकाने का आदेश
Bombay High Court: बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में सीनियर सिटिज़न दंपत्ति को राहत देते हुए बेटे और बहू को उनके ही बंगले से बेदखल करने की इजाजत दे दी है।
Bombay High Court: बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में सीनियर सिटिज़न दंपत्ति को राहत देते हुए बेटे और बहू को उनके ही बंगले से बेदखल करने की इजाजत दे दी है। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि बहू को अब फरवरी 2019 से जुलाई 2025 तक का किराया 20,000 प्रति माह के हिसाब से चुकाना होगा। मामला घरेलू हिंसा के आरोपों और संपत्ति के गलत कब्जे से जुड़ा हुआ था, जिसमें कोर्ट ने बहू की दलीलों को खारिज कर दिया।
बहू ने लगाए थे घरेलू हिंसा के आरोप
इस केस की शुरुआत 2016 में हुई जब बहू ने अपने पति और ससुराल वालों पर घरेलू हिंसा, दहेज उत्पीड़न (498A) और वैवाहिक विवादों से जुड़े केस दर्ज किए। इसके जवाब में सास-ससुर ने दावा किया कि अब वे अपने ही घर में तनाव और उत्पीड़न झेल रहे हैं और बेटा-बहू जबरन उनकी संपत्ति पर कब्जा जमाए हुए हैं।
ट्राइब्यूनल से हाई कोर्ट तक पहुंचा मामला
बुजुर्ग दंपत्ति ने 2019 में Senior Citizen Welfare Tribunal में याचिका दायर की, जिसने 30 दिन में घर खाली करने का आदेश दिया। लेकिन बहू ने इस आदेश को 2020 में एपलेट ट्राइब्यूनल में चुनौती दी, जिसने पहले आदेश को रद्द कर दिया। इसके बाद दंपत्ति ने बॉम्बे हाई कोर्ट का रुख किया।
हाई कोर्ट ने क्या कहा?
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बहू को घर में सिर्फ रहने की अनुमति दी गई थी, स्वामित्व का अधिकार नहीं। जब बहू ने खुद अपने ससुराल वालों पर आपराधिक मामले दर्ज किए, तब वह उस घर में रहने का नैतिक और कानूनी अधिकार खो चुकी थी। कोर्ट ने कहा कि बहू ने अदालत के आदेश की अनदेखी की और अनावश्यक रूप से संपत्ति पर कब्जा बनाए रखा।
बहू का क्या था तर्क, क्यों हुआ खारिज?
बहू के वकील ने कहा कि चूंकि घरेलू हिंसा केस पेंडिंग है, इसलिए वह ससुराल में रह सकती है। लेकिन कोर्ट ने पाया कि बहू के नाम पर पहले से तीन कमरों वाला एक फ्लैट है। ऐसे में वह बुजुर्ग दंपत्ति की संपत्ति पर कब्जा क्यों बनाए रखना चाहती है?
बेटा भी बेदखल
कोर्ट ने कहा कि संपत्ति पर बेटे का भी कोई हक नहीं, क्योंकि वह मां-बाप की निजी कमाई से खरीदी गई थी। इसलिए बेटे और बहू दोनों को 30 दिनों के भीतर बंगला खाली करना होगा। कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि यह मामला सिर्फ एक परिवार की लड़ाई नहीं है, बल्कि उन लाखों बुजुर्गों की आवाज है जो अपने ही बच्चों या उनके जीवनसाथियों से उत्पीड़न का शिकार होते हैं। इस फैसले को वरिष्ठ नागरिकों के अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।